क्यों हर 12 वर्ष के बाद लगता है कुंभ, क्या है इसके पीछे का रहस्य

Rishabh
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हरिद्वार: हिन्दू धर्म के लिए कुंभ का मेला धर्मिक प्रयोजनों में सबसे महत्वपूर्ण होता है, क्योकी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मेले का आयोजन 12 वर्षो के अंतराल में केवल 4 खास स्थानों पर किया जाता है। इस बार कुंभ का आयोजन उत्तराखंड की धार्मिक राजधानी हरिद्वार में हो रहा है जो कि 83 साल बाद 12 की जगह 11 साल के अंतराल में होने जा रहा है। इस मेले की तैयारी में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है, और अभी तैयारी जोरो पर है। कुंभ में होने वाले चार शाही स्नानं बहुत ही महत्वपूर्ण मने जाते है जिनके लिए इस बार उत्तराखंड सरकार ने कोरोना वायरस के चलते काफी अच्छी की है। कुंभ मेला दुनिया भर में किसी भी धार्मिक प्रयोजन में से भक्तों का सबसे बड़ा संग्रहण है। कुंभ का मेला हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है। जो कि हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम जहां गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं।

इस बार कुंभ का मेला हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे होने जा रहा है, कोरोना महामारी के बावजूद यहाँ की सरकार ने काफी अचे प्रबंध किये है और कोरोना का पूर्ण ध्यांन रखकर सारी तैयारी की गयी है। कुंभ के मेले का महत्व इसलिए इतना अत्यधिक होता है क्योकि हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इन चारो प्रयाग का कुंभ मेलो में से प्रागराज का मेला सभी सर्वाधिक महत्व रखता है। बता दे कि कुंभ का अर्थ है- कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि का भी यही चिह्न है इतना ही नहीं कुंभ मेले की पौराणिक मान्यता अमृत मंथन से जुड़ी हुई है।

क्यों हर 12 वर्ष के अंतराल में होता है इसका आयोजन-
कुम्भ के आयोजन में हर एक स्थान को 12 वर्षो का समय लगता है, जिसके पीछे की कहानी समुद्र मंथन से जुडी है।देवताओं और राक्षसों ने समुद्र के मंथन और उसके द्वारा प्रकट होने वाले सभी रत्नों को आपस में बांटने का निर्णय किया। समुद्र के मंथन द्वारा जो सबसे मूल्यवान रत्न निकला वह था अमृत, उसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच संघर्ष हुआ। इसी के चलते अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वह पात्र अपने वाहन गरुड़ को दे दिया और जब असुरों ने जब गरुड़ से वह पात्र छीनने का प्रयास किया तो उस पात्र में से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरीं. तभी से प्रत्येक 12 वर्षों के अंतराल पर इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।