अरुण दीक्षित
पिछले कुछ दिन से एमपी के सीएम चौतरफा निशाने पर हैं।कहीं वे आयोजन में अव्यवस्था के लिए मेहमानों से हाथ जोड़ कर माफी मांग रहे हैं तो कहीं उन्हें सार्वजनिक रूप से गालियां दी जा रही हैं।चौंकाने वाली बात यह है कि हर मोर्चे पर सीएम साहब अकेले दिख रहे हैं।शायद यही वजह है कि उन्हें खुद आगे आकर ट्वीटर पर अपनी पीड़ा जाहिर करनी पड़ी है। आम तौर पर यह माना जा रहा है कि सीएम अपने ही लोगों की अंदरूनी राजनीति के निशाने पर हैं।उनके अपने साथी उन्हें “नीचा” दिखाना चाहते हैं।
उनकी छवि खराब करना चाहते हैं।उनसे बदला लेना चाहते हैं।इसकी बहुत वजहें भी गिनाई जा रही हैं प्रथमदृष्टया उन पर यकीन भी किया जा रहा है.! लेकिन प्रदेश की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले कुछ “घाघ लोग” इस सबके पीछे एक और “कोण” देख रहे हैं।इनका मानना है कि सीएम अपनों के निशाने पर तो हैं ही लेकिन प्रदेश की नौकरशाही भी बहती गंगा में हाथ धो रही है।वह भी अपने सार्वजनिक अपमान का बदला परदे के पीछे रह कर ले रही है।
यह तो सब जानते हैं कि पिछले कुछ महीनों से सीएम साहब फिल्म नायक के एक दिन के मुख्यमंत्री की तरह ताबड़तोड़ फैसले कर रहे हैं।उन्होंने अब तक दर्जनों अफसरों के खिलाफ सार्वजनिक मंच से कार्रवाई का ऐलान किया है।भ्रष्टचारियों को जमीन में गाड़ देने की बात बार बार कहने वाले सीएम ने अब तक दो कलेक्टर हटाए हैं।इनमें से एक को हटाने का ऐलान उन्होंने मंच से किया तो वहां मौजूद लोगों ने मंच पर ही जश्न मनाया था।
इसके अलावा कुछ जिला आपूर्ति अधिकारी भी मंच से ही हटाए गए थे।डाक्टर, तहसीलदार और पटवारी से लेकर कई छोटे कर्मचारी सरेआम सीएम के गुस्से का शिकार हुए! कुछ और बड़े अफसर भी हटाए गए हैं।उनसे अचानक महत्वपूर्ण काम लेकर खाली बैठा दिया गया है।कुछ को कोल्ड स्टोरेज में डाला है तो कुछ के जूनियर को उनसे ज्यादा “पावर” दे दी है। इन “घाघ” लोगों की मानें तो बदले के इस खेल की शुरुआत इंदौर से हुई!
पिछले दिनों वहां अप्रवासी भारतीय सम्मेलन हुआ था।केंद्र सरकार के इस प्रतिष्ठित आयोजन की मेजबान एमपी की सरकार थी। सरकार ने अपने स्तर पर शानदार बंदोबस्त करने के लिए हरसंभव प्रयास भी किए!अरबों रुपया खर्च करके अंतर्राष्ट्रीय स्तर की व्यवस्थाएं की गईं।दुनियां भर से आए लोग इसमें शामिल हुए! लेकिन प्रधानमंत्री की मौजूदगी में कुछ नाराज मेहमानों ने हंगामा कर दिया!नतीजा यह हुआ कि सीएम साहब को मंच से ही मेहमानों से माफी मांगनी पड़ी।
यही नहीं बाद में निवेशकों के दो दिनी सम्मेलन में भी अव्यवस्था हुई।सम्मेलन में आए कुछ निवेशकों ने मीडिया के सामने अपना गुस्सा जाहिर किया। इन दोनों आयोजनों का जिम्मा नौकरशाही का था।अफसर व्यवस्था संभाल नही पाए और माफी सीएम को मांगनी पड़ी।दुनियां भर में उनकी ही बदनामी हुई। क्योंकि जिन अफसरों के भरोसे यह आयोजन किए गए उन्हें कौन जानता है? ऐसा ही भोपाल के करणी सेना के आंदोलन में हुआ!एक दिन की अनुमति थी। लेकिन आंदोलनकारी चार दिन तक जमे रहे।
उनकी वजह से राजधानी के लाखों लोग परेशान हुए।राजधानी के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी हालात को संभाल ही नही पाए!एक दर्शक की तरह तमाशा देखते रहे। इसी आंदोलन के दौरान वह हुआ जो प्रदेश क्या देश के इतिहास में भी शायद कभी नही हुआ होगा।आंदोलनकारियों ने कैमरे पर सीएम को अभद्र गलियां दीं।उनके प्रति अपशब्द कहे।उनका सार्वजनिक अपमान किया।यह सब पुलिस और प्रशासन के अफसरों के सामने हुआ।बाद में सोशल मीडिया में वायरल किया गया।लेकिन किसी ने कोई कदम नहीं उठाया।
हंगामा होने के बाद पहले कुछ आंदोलनकारियों के खिलाफ बेनामी मुकदमा दर्ज किया गया।पुलिस धरने पर बैठे नेताओं के नाम एफआईआर लिखने से बचती रही।बाद में जब किरार और धाकड़ समाज ने हंगामा किया तो भोपाल पुलिस एक आरोपी को हरियाणा से पकड़ लाई। घटना के दो दिन बाद एक हेड कांस्टेबल की शिकायत पर सीएम को गाली दिए जाने का मामला दर्ज हुआ।लेकिन अभी तक मुख्य सूत्रधार के खिलाफ कोई मामला दर्ज नही हुआ है।यह स्थिति तब है जब भोपाल में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू है।
इन लोगों की मानें तो इस समय प्रदेश की नौकरशाही दो पालों में खड़ी है।एक पाले में वे हैं जो साहब के करीबी हैं और दूसरे में वे जिन पर “तिरछी नजर” है। यह सब जानते हैं कि चुनावी साल है!चुनाव जीतने के लिए सीएम साहब को हर उपाय करना है।ऐसे में उनकी छवि को लगने वाले हर धक्के का अपना खास असर होगा। अभिमन्यु की तरह अपनों से घिरे सीएम को भले ही “बाहरी” लोगों का साथ मिल रहा हो पर भीतर तो उन्हें अकेले ही लड़ना है।क्योंकि कोई भी उनका साथ नहीं दे रहा है। सीएम की कुर्सी पर सबसे लंबे समय तक रहने का रिकॉर्ड बनाने वाले नेता का यह हाल अपने आप में एक मिसाल है!हो भी क्यों न!अपना एमपी गज्जब जो है।है कि नहीं ?