नितिनमोहन शर्मा
अतिथि…तुम अब कब आओगे? अच्छा नही लग रहा तुम्हे जाते देखना। कितनी जल्दी बिदा की बेला आ गई। पता ही नही चला कब तीन दिन पंख लगाकर फ़ुर्र हो गए। वक्त को चाहकर भी हम रोक नही पाये। न आपको। तुम आये तो उत्सव मन गया। तुम्हारे कदम पड़े तो बेमौसम त्यौहार मन गया। तुम्हारी अगवानी में समूचा शहर ऐसे रोशन था, जैसे दीपावली हो। सजे सँवरे चौक-चौबारे राह-रास्तों, दरों-दीवार…तुम्हारे आगमन पर झूम उठे थे। गली मोहल्लों तक मे तुम्हारे आने का शोर था। घरों की चर्चा के केंद्र में तुम ही तुम थे कि कहा से आये..क्या कर रहे है अब…आज कहा जाएंगे..क्या खाएंगे…!!
तुम थे तो रोशन था राजबाड़ा। एक नही अनेक रंगों में। गोपाल मंदिर तो जैसे अपनी बुजुर्गियत झाड़कर एक दम नोजवान हो गया था। पहचान में ही नही आ रहा था कि ये वो ही “गोपाल लाल प्यारे” का ठिकाना है, जो बस जमीदोंज ही होने वाला था। 200 बरस पुराना सराफा सबसे ज्यादा इठलाया। अपनी चमक दमक के लिए नही, लज़ीज़ व्यंजन ओर स्वाद-महक के साथ इतराया। अथिति तुम थे तो यहां तिल रखने की जगह नही थी। छप्पन के तो कहने ही क्या? सबकी आंख का तारा थी छप्पन की रौनक और रंगत। देश के विदेश मंत्री यहां इतनी सहजता से पान खा लेते है, जितनी सहजता से गुयाना ओर सूरीनाम के राष्ट्राध्यक्ष ने यहां चाय सुडुक ली थी।
सुपर कॉरिडोर से लेकर बीसीसी तक का नया इन्दौर तो लग ही नही रहा था कि ये अपना शहर है। किसी विदेश को मात करते शहर के इस हिस्से की सजावट और रोशनी की लड़िया बरसो बरस तुम्हारी याद दिलाती रहेगी। लालबाग में आपके लिए प्रदेश और अंचल की सांस्कृतिक विरासत का उत्सव भी आपको याद कर रहा है। शहर के बाजार और दुकानदारों के लिए भी आप यादगार हो गए हो।
शहर के देवालय में गूंजते घण्टियों का नाद सदा तुम्हारी आमद की आहट देगा। अगल बगल के तीर्थ क्षेत्र तक आपकी आवाजाही हुई। बहुत अच्छा लगा। पर ये तो बता दो कि अतिथि तुम अब कब आओगे? तुम्हारे आने से हमने भी त्यौहार मना लिया। हम ओर हमारा इन्दौर तो उत्सव प्रिय है। तुम आये तो हमने भी त्यौहार मना लिया। पर अब तुम बिन सब सुन है। सूनापन। तभी तो तुम्हारी बिदाई के पल में मेजबान की आंखे नम है।
वैसे तो ‘ मिजमानी ‘ में जी जान लगा दिया था। फिर भी कुछ कमी रह ही जाती है। यहां भी रही होंगी। जैसे प्रदेश के सह्रदय मुख्यमंत्री ने ह्रदय से कमियों के लिए माफी मांगी, वैसे हम इंदोरियो को भी क्षमा कर देना अगर कोई भूल चुक हुई हो तो। ख़ुलासा फर्स्ट ने पहले पहल ही इस समूर्ण आयोजन को एक बेटी के ब्याह की संज्ञा दे दी थी। हमारे लिए ये आयोजन बीटिया के ब्याह जैसा ही था। तभी तो कल बिदाई बेला के सीएम शिवराज सिंह ने भी इसे बेटी का ब्याह बताया।
हम घराती थे। आप बराती। बेटी की बिदाई के पल पर जो हालात घराती की होती है, वैसी ही इन्दौर की है। निश्चित ही कुछ कमियां रही होगी। जैसे ब्याह में तमाम एहतियात के बाद रह जाती है। आपने नुक्स नही निकाला। ह्रदय से आभार। पर ये आपका बड़प्पन है। लेकिन हमे पता है कमियां हुई। दिल से इस इन्दौर और इंदोरियो को भी माफ़ कर देना। जैसे हमारे सीएम ने मांफी मांगी। उनका रुंधा गला और नम आंखे इस बात की गवाह थी कि वे आपके साथ, आपकी सहजता, सरलता से गदगद थे और आपके बिछोह से गमगीन।
हम सब उम्मीद से है कि तुम जरूर लौटकर आओगे। भरोसा है अपनी मेजबानी पर। अपने अतिथि देवो भवः के भाव पर। अपने इंदौरी संस्कार पर। हमारे खानपान, मौजमस्ती पर। हमारी उत्सवप्रियता पर। भरोसा है लौटोगे…हर हाल में फिर इन्दौर।
…बस तुम ये बता दो अतिथि कि तुम अब कब वापस आओगे..??