शिमला: हिमाचल प्रदेश वहां मिलने वाली जड़बुटियो के लिए मशहूर है और कुछ समय से यहां जड़ीबूटियां और औषधीय विलुप्त होती जा रही है, जिनका सरंक्षण जरुरी हो गया है और इसके लिए शिमला प्रेस क्लब में आयोजित एक कार्यशाला के दौरान बोर्ड के अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी औषधीय पौधों से लेकर भोज पत्र और देवदार के सैकड़ों वर्ष पुराने पेड़ों को राज्य का बायोडाइवर्सिटी बोर्ड संरक्षित करेगा। इनके संरक्षण के लिए प्रदेश में 5 स्थानों पर हैरीटेज साइट्स बनाई जाएंगी।
औषधियों के सरंक्षण के लिए बोर्ड ने विस्तृत खाका तैयार किया है और इतना ही नहीं इस बोर्ड में जड़ी-बूटियों और अन्य प्राकृतिक उत्पादों का वैज्ञानिक तरीके से दोहन किया जाएगा ताकि इन्हें संरक्षित किया जा सके, साथ ही पंचायतों और स्थानीय लोगों से मिलकर उत्पादन को और बढ़ाया जाएगा, इससे पंचायतों को आर्थिक लाभ मिलेगा और उत्पादन करने वाले लोगों को अच्छी कीमत मिलेगी।
विलुप्त हो रही औषधियों को लेकर सीनियर साइंटिफिक प्रोफेशनल डॉ. पंकज शर्मा ने बताया कि हिमाचल में पौधों की 22 प्रजातियां और जानवरों की 16 स्पीशिज खतरे में हैं। प्रदेश में जड़ी-बूटियों की बात करें तो ऊंचाई वाले इलाकों में मिलने वाली पतीश, मनू ,हाथ पांजा, निचले इलाकों में मिलने वाली सालाम मिश्री (च्वयन प्राश में इस्तेमाल होती है) खतरे में हैं इस कारण इनका सरंक्षण अति आवश्यक हो गया है।
बायोडाइवर्सिटी हैरिटेज साइट चिन्हित की गई है और यहां पर करीब 800 पुराने देवदार के पेड़ हैं, इन पेड़ों के अलावा पूरे जंगल को संरक्षित किया जाएगा। इसके अलावा मंडी जिले के कमरूनाग, चंबा जिले के पांगी में सूराल भटोरी, हुडन भटोरी और लाहौल-स्पिती के नैन गाहर में हैरीटेज साइट का निर्माण किया जायेगा। शुभ्रा बनर्जी ने बताया कि पांगी में भोज पत्र के जंगल को संरक्षित किया जाएगा और इन साइट्स को इस तरीके से विकसित किया जाएगा, जिससे न केवल जागरूक हों, पर्यटन की संभावनाएं बढ़ें और साथ ही व्यावसायिक गतिविधियां शुरू हों ताकि संबंधित पंचायतों और स्थानीय लोगों की आय हो।