कश्मीर यात्रा का दूसरा पड़ाव पहलगाम ….. श्रीनगर से कोई 95 किलोमीटर दूर…. श्रीनगर – जम्मू मार्ग अनंतनाग होते हुये एपल वेली के रास्ते पहाड़ियों से चारों ओर से घिरा पहलगाम बाबा अमरनाथ की यात्रा का एक अहम पड़ाव है। यहीं से बाबा अमरनाथ जाने वाले यात्रियों के लिए आधार शिविर बनाया जाता है… ऐसे रमणीय, दर्शनीय और धार्मिक यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव पहलगाम में बाबा अमरनाथ की यात्रा के दौरान उपयोग में लाए जाने वाले घोड़े खाली समय में पर्यटकों को पहलगाम की दुर्गम पहाड़ियों की सैर कराते हैं। सैलानियों को घोड़े पर बैठाकर दुर्गम पर्यटक स्थलों की सैर कराने वाले 22 साल के रिजवान बड़ी शान से कहते हैं… साब…. ये घोड़ा, जिस पर आप बैठे हैं न… मैट्रिक पास है… और मैने मज़ाक में पूछा … और तुम? वह हँसकर बोला… मैं तो मैट्रिक फेल हूँ। रिजवान ने बाद में बताया की दरअसल यहाँ पर चार – पाँच हजार घोड़े हैं जिनका उपयोग बाबा अमरनाथ की यात्रा पर आने वाले यात्रियों को दुर्गम पहाड़ी रास्तों से ले गुफा तक ले जाने और लाने के लिए किया जाता है। इन सभी घोड़ों को ऐसे पहाड़ी रास्तों से यात्रियों को लाने ले जाने का प्रशिक्षण दिया जाता है और श्राईन बोर्ड में इनका पंजीयन भी कराना होता है।
और रिजवान की बात पर यकीन उस समय हुआ जब घोड़े पर बैठकर बर्फ से ढँकी पहाड़ी पर ऊबड़ खाबड़ रास्ते से जहां हम पैदल भी नहीं चल सकते थे… घोड़े पर बैठकर आसानी से पहुँच गए। सच पूछा जाये तो रास्ता तो था ही नहीं और …. घोड़े….. रिजवान और उसके साथी बिलाल के ईशारों से चल रहे थे। अनेक अवसर ऐसे भी आए कि लगा अब गिरे कि तब गिरे….कभी कभी अचानक घोड़ा एकदम से नब्बे अंश के कोण से मुड़ जाता और कभी तेजी से आगे बढ़ता। लेकिन रिजवान और उसके साथी का घोड़ों पर जबर्दस्त विश्वास… । वे हमारी मन:स्थित को भाँपकर कहते… साब… डरो मत… घोड़ा पर सीधे बैठे रहो । आप नहीं गिरेंगे। इन घोड़ों को ऐसे रास्तों पर चलने का अनुभव है…। बर्फ से ढंके पहाड़ से नीचे उतरते हुए तो कई बार लगा… अब तो सचमुच ही गिर जाएँगे लेकिन रिजवान का साथ है… विश्वास है और जहां से यात्रा शुरू की थी … हम सकुशल वापस आ गए। बात ही बात में रिजवान ने बताया कि उन्हें एक बार ले जाने ( एक ट्रिप) का दो सौ रूपये मिल जाता है। मार्च में सरकारी काम भी शुरू हो जाता है वहाँ चार सौ रूपया एक दिन की मजदूरी मिलती है। मई जून में तो यहाँ कभी कभी पर्यटकों की संख्या एक दिन में दो तीन हजार तक हो जाती है। वैसे जब इनका क्रम आता है तभी पर्यटकों को ले जाने का मौका मिलता है लेकिन जब पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है तब एक दिन में दो बार भी नंबर आ जाता है। उन दिनों मजदूरी भी बढ़ जाती है। रिजवान ने बताया कि लाकडाऊन के बाद से तो पर्यटकों का आना पूरी तरह बंद हो गया था… अब कुछ संख्या में पर्यटक आने लगे हैं…दो तीन दिन में एक बार नंबर आ जाता है। बात ही बात में रिजवान ने बिना पूछे ही बताया…. साब…. धारा 370 हट गया … अच्छा है… अब तो पूरा हिंदुस्तान के साथ है… अब बहुत अच्छा लगता है । उसके चेहरे पर मुस्कान को देखकर लगा जैसे वह वास्तव में पर्यटन धर्म निभा रहा है… मैं इसलिए कह रहा हूँ… मैंने उसके पैर में पहने फटे जूते देखे और जहां हम किराये के जूते… ठंड से पूरी तरह बचाव के साथ घोड़े पर बैठकर बर्फीले…ऊबड़ – खाबड़ रास्तो से पहाड़ पर गए वहाँ रिजवान और उसका साथी पैदल… घोड़े की लगाम पकड़े और उन्हे नियंत्रित करते हुये फटे जूते पहने चल रहे थे…. हम तो सफ़ेद चादर से बिछे बर्फ के पहाड़ों को निहारने में मस्त थे…श्रीनगर वापस आए और आँख बंद कर पहलगाम में बिताई गई दोपहर के दृश्य को देखने का प्रयास किया तो रिजवान के फटे जूते पर नजरें ठहर गई…. जहां जूते और पैर के बीच बर्फ झांक रही थी ।
श्रीनगर से पहलगाम जाते समय रास्ते में कहवा पीना नहीं भूले… पंपोर में मिराज की दुकान पर कहवा पीने के बाद इसके बनाने की विधि के बारे में पूछने पर मिराज ने बताया…. इसमे दाल चीनी, अदरख, काली मिर्च, लौंग सहित 10-12 चींजे मिलाकर उबालते हैं। इसमें शहद भी मिलाते है। यह सर्दी खांसी के लिए बहुत अच्छा पेय है। कहवा को कप में डालने के बाद काजू… बादाम का चूरा भी मिलाना नहीं भूलते…इससे स्वाद भी बढ़ जाता है… । अनंतनाग और पहलगाम के बीच में सेब के बाग भी हैं लेकिन इन दिनों सेब की फसल समाप्त हो चुकी है… पेड़ों से पत्ते भी गिर चुके हैं… किसी किसी पेड़ में एक दो सेब जरूर दिखाई देते हैं लेकिन वो भी केवल देखने के लिए…. यदि आपकी सेब से लदे पेड़ देखने की ईच्छा है तो सितंबर – अक्टूबर में जाएँ.. और बर्फ का आनंद लेना है तो दिसम्बर – जनवरी से अच्छा और कोई मौसम हो ही नहीं सकता