ईश्वर उपस्थित है! स्पर्श पाने के लिए श्रद्धा चाहिए 

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श्रवण गर्ग

अमेरिका में ईस्ट कोस्ट पर वर्जीनिया के एक स्कूल के कोई सौ बच्चों ने आठ हज़ार मील दूर मनवाधिकारों की रक्षा की लड़ाई लड़ने के आरोप में चीनी सरकार द्वारा सख़्त पहरे के बीच हॉंगकॉंग की एक जेल में अगस्त 2020 से बंद एक अरबपति मीडिया मलिक को अपने आत्मीय समर्थन के पोस्टकार्ड लिखकर भेजे हैं। बच्चे मीडिया मालिक को नहीं जानते हैं।मीडिया मलिक धार्मिक वृत्ति के हैं और ईश्वर की उपस्थिति में गहरा यक़ीन रखते हैं।

मीडिया मलिक पर आरोप हैं कि उन्होंने हॉंगकॉंग में चल रहे चीन से आज़ादी के आंदोलन के दौरान बीजिंग के तियानमेन स्क्वायर पर साल 1989 में (15 अप्रैल से 4 जून तक) हुए विशाल छात्र-विद्रोह के शहीदों की स्मृति में मोमबत्ती जलकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की थी। मीडिया उद्योगपति हॉंगकॉंग की सर्वाधिक सुरक्षा वाली स्टेनली जेल की एक कोठरी के एकांतवास में बंद हैं। वे ख़ाली समय में रेखाचित्र बनाते रहते हैं। उनका बनाया ईसा मसीह का एक रेखाचित्र एक मानवाधिकार पत्रिका में प्रकाशित होने के बाद वर्जीनिया के स्कूल में पढ़ाई करने वाली एक छात्रा की माँ (एप्रिल पोन्नुरू )के ज़रिए बाक़ी बच्चों तक पहुँच गया। बच्चों ने फिर उसे पोस्टकार्डों पर प्रकाशित कर अपनी भावनाओं के साथ उन्हें हॉंगकॉंग की जेल के अधिकारियों के पास भिजवा दिया। दूसरे स्कूलों के बच्चे भी अब इस पोस्टकार्ड अभियान के साथ जुड़ रहे हैं।

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बच्चों को हाल ही में जानकारी दी गई कि अमेरिकी डाक सेवा को सौंपे जाने के कोई तीन महीनों में उनके भेजे गए पोस्टकार्ड उस कारागृह तक पहुँच गए जहां वे मीडिया मलिक बंद हैं। जेल अधिकारियों द्वारा मीडिया मलिक को एक दिन में सिर्फ़ एक ही पोस्टकार्ड पढ़ने की अनुमति दी गई है जिससे कि उनका बाहर की दुनिया से सम्पर्क बना रहे।

उद्योगपति का नाम जिम्मी लाई है और उनकी उम्र पचहत्तर साल से अधिक की है। वे (अब) चीनी आधिपत्य वाले हॉंगकॉंग के एक बड़े मीडिया समूह के मालिक और मानवाधिकार आंदोलनों के समर्थक हैं। प्रसिद्ध दैनिक ‘एपल डेली’ के संस्थापक-प्रकाशक जिम्मी को अगस्त 2020 में गिरफ़्तार कर लिया गया था। उनके ख़िलाफ़ चीन द्वारा हॉंगकॉंग पर थोपे गए राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानूनों के तहत मुक़दमे चल रहे हैं। बीच में उन्हें ज़मानत मिली थी पर उनकी रिहाई के पहले ही उसे निरस्त कर दिया गया। उन्हें कोई न्यायिक सहायता प्राप्त नहीं है। जिम्मी पर दबाव डाला जा रहा है कि वे अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को स्वीकार कर लें पर उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया। वे सजा भुगतने को तैयार हैं।

( तियानमेन स्क्वायर के ऐतिहासिक युवा विद्रोह (1989) के बाद से ही मन में इच्छा बनी हुई थी कि क्या जीवन में कभी एक बार भी उस स्थल को देखने का अवसर प्राप्त हो सकेगा ! छात्र-विद्रोह की घटना के कोई चौबीस साल बाद अवसर प्राप्त हो गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के साथ अक्टूबर 2013 में उनके मीडिया दल के एक सदस्य के रूप में पहले मॉस्को और फिर बीजिंग की यात्रा करने का मौक़ा मिला तो सबसे पहला काम तियानमेन स्कवायर को ठीक से देखने और उन क्षणों को जीने का प्रयास किया जब वहाँ सैंकड़ों छात्रों ने नागरिकों के समर्थन से एक क्रांति की शुरुआत की थी और अपना खून बहाया था। शी जिंगपिंग शायद उसी साल राष्ट्रपति बने थे। मॉस्को के भव्य क्रेमलिन में पुतिन को नज़दीक से देखने का अवसर प्राप्त हुआ था। दोनों ही नेता इस समय अपने मानवाधिकार दमनों के कारण दुनिया भर में चर्चा में हैं।)

ईश्वर के प्रति आस्था और उससे उत्पन्न होने वाले चमत्कार को लेकर मैंने एक आलेख चार साल पहले दीपावली के अवसर पर ही लिखा था। आलेख थाईलैंड के छोटे बच्चों की एक स्थानीय फुटबॉल टीम के सदस्यों की व्यथा और उनके अप्रतिम साहस पर केंद्रित था जो भारी बरसात से बचने के प्रयासों के चलते एक गहरी गुफा में क़ैद हो गए थे और केवल भगवान बुद्ध के प्रति अपने समर्पण और उनकी प्रार्थनाओं के बल पर ही मौत के साथ भी विनम्रतापूर्वक संघर्ष करते रहे और अंत में विजयी होकर बाहर आ गए।

जून 2018 में ग्यारह से सोलह साल की उम्र के बारह बच्चे और उनके एक पच्चीस-वर्षीय प्रशिक्षक उत्तरी थाईलैण्ड की थाम लुआंग गुफा में अठारह दिनों के लिए बंद हो गए थे। बाहरी दुनिया से उनका पूरा सम्पर्क टूट गया था। दो किलोमीटर लम्बी और आठ सौ मीटर से ज़्यादा गहरी गुफा के अंदर भी जगह-जगह पानी भरा हुआ था। गुफा में अंधेरे का ऐसा साम्राज्य था कि मज़बूत से मज़बूत व्यक्ति भी बग़ैर किसी ईश्वरीय चमत्कार के जीवित नहीं बच सकता था। पूरी दुनिया के विशेषज्ञ तीन दिनों तक बच्चों और उनके प्रशिक्षक की जानें बचाने में जुटे रहे और फिर एक-एक करके सभी को सुरक्षित बाहर निकल लिया गया।

वह कौन सी ताक़त रही होगी जो बच्चों को गुफा के अंधकार से जीवन की रोशनी में बाहर ले आई होगी ? फ़ुटबॉल टीम के ये नन्हें खिलाड़ी बिना किसी आहार और रोशनी के भी अपने बुद्ध की प्रार्थनाओं में लीन रहे और गुफा के बाहर पूरा थाईलैंड और दुनिया भर के करोड़ों लोग उनके जीवन के लिए प्रार्थनाएँ करते रहे। इनमें शायद वे लोग भी शामिल रहे होंगे जिनका ईश्वर और उसके अस्तित्व में यक़ीन नहीं था।

थाई बच्चों और उनके प्रशिक्षक ने स्वास्थ्य परीक्षण सम्बन्धी तमाम औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद जो पहला काम किया वह बौद्ध मंदिर में जाकर अपनी प्रार्थनाओं से ईश्वर का धन्यवाद ज्ञापन करने का था।

हॉंगकॉंग की जेल में बंद जिम्मी को भी सारी शक्ति ईश्वर के प्रति उनकी असीम आस्था से ही प्राप्त हो रही है। उनके बनाए रेखाचित्र को ही पोस्टकार्ड पर प्रकाशित कर भेजने के पीछे बच्चों की इसी भावना का दर्शन होता है कि वे वर्जीनिया से आठ हज़ार मील की यात्रा कर उनके साहस का समर्थन करने भावनात्मक रूप से हॉंगकॉंग के कारावास तक पहुँचे हैं। एप्रिल पोन्नुरू का कहना है कि दया के इस अभियान में भागीदारी का अनुभव बच्चों के लिए भावुकता के क्षणों से भरा हुआ है। बच्चे अपने पोस्ट कार्ड के जवाब में जिम्मी के किसी नए रेखाचित्र की प्रतीक्षा कर रहे हैं।( चित्र: बचाव कार्य के दौरान गुफा के मुख्य द्वार और ज़िम्मी के रेखांकन का )