महाकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कालजयी रचना साकेत मे उर्मिला के महान चरित्र का वर्णन किया है। उर्मिला का परिचय हमें हमारे पवित्र धर्म ग्रंथ रामायण/रामचरितमानस में सीता की बहन और लक्ष्मण की पत्नी के रूप में मिलता है।माता कैकई की जिद और पिता दशरथ के आदेशानुसार जब राम, लक्ष्मण और जानकी वन को जा रहे थे तब उर्मिला के कर्त्तव्य बोध ने उसे प्रेरित किया और इन सबकी अनुपस्थिति में उर्मिला ने अपनी तीनों सास कौशल्या कैकई एवम सुमित्रा, श्वसुर दशरथ और परिवार के अन्य सदस्यों की देखभाल करने का बीड़ा उठाया। उर्मिला ने यह भी विचार किया था कि लक्ष्मण अपने अग्रज के साथ दास के रूप में जा रहे हैं और उनकी सेवा में व्यस्त रहेंगे। ऐसे समय में मेरी (उर्मिला की) उपस्थिति कहीं मोहवश उनको (लक्षमण को) कर्तव्य -पथ से विरक्त न कर दे इसीलिए भी उर्मिला ने वन न जाने का निश्चिय किया था।
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परिवार की देखभाल को ही सर्वोपरि मान उर्मिला ने विरह – व्यथा को चुना। इससे उद्दात चरित्र नारी और क्या होगी ? जिस पति से नवब्याहता पत्नी क्षण भर भी दूर नहीं रहना चाहती उससे चौदह वर्षों तक पृथक रहकर परिवार की देखभाल करना एक नारी के विशाल आत्मबल का परिचायक है। उर्मिला को त्याग की देवी कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। उर्मिला के इस त्याग के बिना लक्ष्मण कभी अपने कर्तव्य – पथ को पूर्ण नहीं कर सकते थे।
रामायण / रामचरितमानस में उर्मिला के इस महान चरित्र का अपेक्षाकृत बहुत कम चित्रण किया गया है। जबकि वह एक अत्यन्त उत्कृष्ट एवं सर्वश्रेष्ठ नारी पात्र हैं। उर्मिला का त्याग सम्भवतः मानस के पात्रों मे सर्वोच्च है। उर्मिला समान और कोई नारी पात्र संभवतया अन्य किसी ग्रंथ या साहित्य में आज तक पढ़ने में नही आया। वस्तुत: एक नारी ही परिवार को जोड़े रखने में सक्षम है इस बात को पुरुष प्रधान समाज ने कभी स्वीकार नहीं किया।
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मेरी अल्प जानकारी में भारतीय साहित्य में एक भी रचना इस मूल बात को केंद्र में रखकर नहीं लिखी गई है। वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख देश को मजबूत बना सकें। आज जरूरत है अपने बेटों को राम लक्ष्मण जैसे सशक्त बनने की और अपनी बेटियों को उर्मिला जैसी सोच रखने की शिक्षा प्रदान करना।