इतिहास यूंही ही नहीं रचा जाता – डॉ दिव्या गुप्ता

Share on:

इतिहास यूँही ही नहीं रचा जाता,
कुछ नया , परे हटने की सोच रखकर,
नवीन कर गुज़रने से इतिहास रचा जाता है
आज, ऐसा ही कुछ होने जा रहा है
चिकित्सा शिक्षा राष्ट्र भाषा में !!!!!
अकल्पनीय,
किन्तु सत्य!
एक ऐतिहासिक युगपुरुष ने इस विषय की परिकल्पना रखी , तो दूसरे ने उसे साकार कर दिखाया !!!!
वो कॉलेज की यादें ताज़ा हो आईं

Aslo Read – 8th Pay Commission Update : जल्द आ सकता है आठवां वेतन आयोग, जानिए कितनी गर्म होगी केंद्रीय कर्मचारियों की जेब

जब हमारे साथ PMT की परीक्षा देकर गाँव से लड़के 1st year में मेडिकल की पढ़ाई के लिए आये थे
गाँव छोड़कर शहर आना , हॉस्टल में रहना, औऱ किसी विचित्र विदेशी भाषा में पढ़ाई करना
औऱ वो भी इतनी कठिन पढ़ाई !!
बेचारे दबे घुटे से क्लास में बैठे रहते थे
कुछ समझ नहीं आता था
कुछ थे जो उनका मज़ाक भी बना देते थे
एक अजीब सी अनकही रेखा खिंची थी उनके औऱ शहर के बच्चों में…
कभी कभी हम समझा भी देते थे , मदद भी कर देते थे , लेकिन कब तक
कहते हैं ना,
अपनी लड़ाई तो खुद ही लड़नी पडती है !!!
हालाँकि मेरी पढ़ाई बचपन से अंग्रेजी माध्यम में हुई पर अपनी मातृ भाषा का प्रेम सर्वोपरि है
मुझे याद है मेरे ही साथ हुई एक घटना
Final year में सर्जरी का फाइनल viva था,
External औऱ internal दोनों प्रोफेसर साथ थे,
मरीज़ को case study बनाकर viva होता है
Viva शुरू हुआ, प्रश्न पर प्रश्न मुझपर दागे जा रहे थे,
मैं उत्तर देने में भूल गयी कि कितना समय बीत गया था
शायद वो मुझे अपने प्रश्नों के जाल में घेरना चाह रहे थे , पर मैंने भी रण नहीं छोड़ा था
फिर एक बहुत कंटीला सा प्रश्न आया , मानो कोई मिसाइल दागी गयी हो धाराशयी करने के लिए !!!
मैंने उत्तर देना शुरू करा पर ऐसा लगा मानों मैं अंग्रेज़ी में कांसेप्ट नहीं समझा पा रही थी
अटक रही थी
आता था , पता था
पर शब्द नहीं मिल पा रहे थे….
हिम्मत करके , एग्जामिनर से पूछा ,
यदि, आप आज्ञा दें तो क्या मैं आपको हिंदी में इस प्रश्न का उत्तर दे सकती हूँ ?
मुझे नहीं पता, उन्होंने क्या सोचा होगा, पर हाँ कह दिया
मैंने पूरी सहजता से उत्तर दे दिया
जो उन्हें भी संतुष्ट कर गया !
आज भी सोचती हूँ, हिम्मत करके नहीं पूछा होता तो शायद मार्क्स कट जाते
Concept समझना आवश्यक है , अपनी भाषा में हो तो औऱ अच्छा
कुछ लोगों के कुतर्क हैं कि research papers का क्या होगा

Research paper भी अब google translater से अपनी भाषा में उपलब्ध हो सकते हैं

जब विश्व भर के देश अपनी मातृ भाषा पर गर्व कर सकते हैं , तो हम क्यों नहीं
शिक्षा आवश्यक है
भाषा की अनिवार्यता नहीं
भाषा गर्व करने का विषय है
नीचा दिखाने का नहीं
दासता का हर वो लक्षण मिटा दीजिये
बेड़ियाँ तोड़ दीजिये
दासता शरीरिक ही नहीं
मानसिक ज़्यादा होती है

— डॉ दिव्या गुप्ता