बॉम्बे हाई कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी को अंतरिम जमानत देने से इंकार कर दिया है। वहीं इसकी जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा। दरअसल, इस मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस धनन्जय वाई चंद्रचूड और जस्टिस इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने आत्महत्या के लिए उकसाने के 2018 के मामले में अर्नब की जमानत याचिका को लेकर राज्य सरकार ये जानना चाह है कि क्या अर्नब को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी, क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से जुड़ा मामला है।
इसी पर बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारतीय लोकतंत्र में असाधारण सहनशक्ति है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको नजरअंदाज करना चाहिए। वहीं जस्टिस चंद्रचूड़ का कहना है कि उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर सांविधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे। वहीं बेंच ने कहा कि सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे।
जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि हम लगातार ऐसे मामले देख रहे हैं जहां उच्च न्यायालय लोगों को जमानत नहीं दे रहा और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने में नाकाम रहा है। इसी के साथ अर्णब गोस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई जांच की मांग की है। गौरतलब है कि बता दे कि, 4 नवंबर को अर्नब गोस्वामी को आत्महत्या के लिए उकसाने के दोहरे मामले में गिरफ्तार किया गया था। गोस्वामी पर अरोप है कि, आर्किटेक्ट अन्वय नाइक और उनकी मां कुमुद नाइक को गोस्वामी ने कथित तौर पर बकाया रकम का भुगतान करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उन दोनों ने 5 मई, 2018 को आत्महत्या कर ली थी।