वैसे तो वो बुलावा सिर्फ कुछ पत्रकारों का ही था मगर होते होते भी अच्छे खासे पत्रकार भोपाल में उमा भारती के बंगले बी सिक्स पर पहुंच गये थे। पिछले कुछ महीनों से उमा भारती लगातार खबरों में हैं कभी शराब दुकान में बोतलों पर पत्थर मारने तो कभी शराब दुकान पर गोबर फेंकने तो कभी दुकान के बाहर जाकर सिर्फ खड़े होने जिसे लोग धरना समझ लेते हैं। मगर ये सारे काम उमा जी कुछ कुछ दिनों के अंतराल से कर रहीं हैं। जो लोगों की समझ के परे हैं। यदि उनको शराब दुकानों का विरोध करना ही है तो लगातार विरोध करें, दुकानों पर जायें या सड़कों पर उतरें या फिर अपनी बीजेपी की सरकार के मुखिया से ही बोल कर इन दुकानों को बंद करवाएं। मगर जो करना है बिंदास करें अटक अटक कर या फिर एक कदम आगे दो कदम पीछे होकर क्यों कर रहीं हैं ये उमा जी की तासीर से मेल नहीं खाता। और यही बात तो उमा पत्रकारों को समझा रही थीं कि ये मेरी तासीर नहीं है कि थोडा थोडा विरोध करूं, मैं मानती हूं शराब नीति जन विरोधी महिला विरोधी है तो सरकार इसे बदले या बंद करे। ये मुझसे नहीं होता। अब यही उमा भारती की उलझन हैं वो बीजेपी की सम्मानीय वरिष्ठ नेता हैं। उन्होंने लोकसभा के छह और विधानसभा के दो चुनाव जीते है। ग्यारह साल तक केंद्र में मंत्री और नौ महीने तक मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। राम मंदिर आंदोलन की वो बड़ी शख्सियत हैं। जो बोलती हैं तो ठप्पे से बोलती हैं। बिना किसी के परवाह किये जो सही लगता है वो फैसले करती हैं और उसे निभाती हैं। संन्यासी जैसा हठ और बाल मन का मेल हैं वो। अचानक नाराज होना और फिर खूब स्नेह करना उनका स्वभाव है जो उनके करीब रहते है। वो इसे अच्छे से जानते हैं।

दरअसल उनकी पार्टी और मध्यप्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार ही उनकी उलझन का कारण हैं। वो इस बात पर दृढ प्रतिज्ञ हैं कि शराबबंदी होनी चाहिए यदि शराब पीना नहीं रोका गया तो आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश पंजाब जैसे नशे की गिरफत में उडता पंजाब हो गया था वैसे ही एमपी भी शराब के नशे में डूब कर गिरता मध्यप्रदेश हो जाएगा। सरकार की जो शराब नीति है उससे यहां के लोग चल फिर नहीं पायेंगे यूं ही सड़कों पर लेटे मिलेंगे खासकर गरीब मजदूर वर्ग जो एमपी में बहुतायत से है। उमा जी सबसे बडा ऐतराज अहातों से हैं। वो तर्क देती है जो शराबी अहातों से शराब पीकर गाड़ियों से घर जायेगे वो तो शराब पीकर गाडी चलाने का कानून तोड रहे हैं। इनको तो पुलिस को तुरंत पकडना चाहिये। क्यों अहाते खोलकर शराब परोसी जा रही है और इनको कानून तोड़ने पर विवश किया जा रहा है। ये नासमझी सरकार समझ बूझकर क्यों कर रही है। वो हवाला देती हैं कि केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी इस बात को मानते हैं। फिर इस बात को उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री शिवराज सिहं क्यों नहीं मानते। वो बताती हैं कि इस मुददे पर मुख्यमंत्री से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक से वो पिछले पांच महीने से से भी उनकी कई बात बात हो चुकी है मगर नतीजा वहीं ढाक के तीन पात। फिर ऐसे में वो क्या करें क्योंकि लुक छिपकर विरोध करना उनको आता नहीं। जो मन में है वो कहना है मगर अपने कंधे या विरोध का उपयोग कोई बीजेपी सरकार विरोधी करे वो उनको करने नहीं देना है। 2003 में अपने खून पसीने से सींची सरकार संकट में आये वो चाहती नहीं। शिवराज सात्विक मुख्यमंत्री है उनको किसी भी तरीके से परेशानी में वो डालना नहीं चाहती फिर रास्ता क्या है। ये उलझन और बेचैनी उनको बीमार कर रही है ये वो बताती हैं। यही साझा वो पत्रकारों से करना चाहती थीं। और ये बात वो पहली बार नहीं इन कुछ महीनों में कई बार कर चुकी हैं।
ये पत्रकार जब तक शाम को प्रेस पहुंचते उमा भारती की उलझन पर खबर लिखते उसके पहले ही उमा जी ने बीस से ज्यादा ट्वीट कर वो सारी बातें सार्वजनिक कर दीं। और चेता दिया कि अभी तो वो अकेले शराब की दुकानों और अहातों के सामने खडे होकर विरोध करेंगी और दो अक्टूबर गांधी जयंती पर भोपाल की सड़कों पर महिलाओं के साथ मार्च करेंगी और अपना विरोध सड़क पर उतर कर जताएंगी। उन्होंने ये भी साफ किया कि ये शराब का विरोध राजनीतिक नहीं सामाजिक विषय है और उनका व्यक्तिगत विषय भी नहीं हैं। इसलिये जो भी इसके समर्थन में अपने स्तर पर प्रयास करें। यही बात उन्होंने अगले ही दिन बीजेपी के अध्यक्ष को पत्र लिखकर भी बता दी ताकि सनद रहे।
अब आगे क्या फिर शराब दुकान पर उमा पत्थर मारेगी, गोबर फेंकेंगी या कुछ ऐसा करेंगी कि जिससे खबर बने या शराबी और शराब दुकानदार डरें। नहीं ये सब नहीं करेंगी उमा जी। विरोध के नये नये तरीके उन्होंने सोच रखे हैं जो आने वाले दिनों में देखने को मिलेगे। बस देखते जाइये क्योंकि उमा जी कोई काम छिपकर या बचकर नहीं करतीं यदि करतीं है तो बीमार पड जाती हैं। इसलिये शराब पर संग्राम आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश में देखने को मिलेगा। फिलहाल उमा अपनी उलझन से उबर जो गयी है।
– ब्रजेश राजपूत












