लेखक -आनंद शर्मा
सामान्यतः प्रशासनिक कामकाज के क्षेत्र को नीरस समझा जाता है । धारणा ये है कि हम सब यांत्रिक तरीके से अपने कामों में लगे रहते हैं , पर ये पूरा सच नहीं है । वस्तुतः मैंने ऐसे अनेक अधिकारी देखे हैं जो तनाव के क्षणों में भी अपने ह्यूमर से वातावरण को सहज बनाए रखते हैं । मेरी इंदौर पदस्थापना के दौरान तत्कालीन कलेक्टर श्री राघवेन्द्र सिंह भी ऐसे ही दिलखुश अफसर थे जो अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपने हंसी मजाक के लिए भी बड़े प्रसिद्द थे । कामकाज के अलावा ये चुटकियाँ और ह्यूमर कभी कभी फाइलों में भी देखने को मिल जाया करता हैं । ऐसा ही एक वाकया बड़ा पुराना है , तब मैं नरसिंहपुर में उप जिलाधीश के पद पर पदस्थ था , साल रहा होगा 1991 , मेरे कलेक्टर थे श्री ए.के.मंडलेकर ,बड़े ही जहीन और बेहद हाज़िरजवाब ।
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उन दिनों मैं जिला जनगणना अधिकार का काम भी देख रहा था । जनगणना के कार्य की जिम्मेदारी मेरी वरिष्ठता के हिसाब से बड़ी थी इसलिए मैं कुछ ज्यादा ही सतर्कता से अपने इस दायित्व को निभा रहा था । उन दिनों वहां एक कवि महोदय थे , जो सांड उपनाम लिखते थे । ये महाशय कवि होने के साथ साथ शासकीय शिक्षक भी थे , लिहाजा इनकी ड्यूटी भी जनगणना में लग गयी | इन्होने ड्यूटी से मुक्ति हेतु विभिन्न आधारों पर दो तीन बार निवेदन किया , जिसे मैंने हर बार ये जान कर अस्वीकृत किया कि ड्यूटी से छूट के कोई ठोस कारण नहीं थे | आखिर में इन सज्जन ने ये कह के कलेक्टर को आवेदन दिया की जनगणना के दौरान ही उन्हें दो कवि सम्मेलनों में कविता पाठ करने जाना है अतः जनगणना कार्य से मुक्ति दी जावे | कलेक्टर से आवेदन मेरे पास मेरे अभिमत के लिए आया । मुझे इन महाशय पर बड़ा ही गुस्सा आया कि इतने रिजेक्शन के बाद भी ये मान ही नहीं रहे हैं ।
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मैंने एक लम्बी टीप लिखीजिसमें जनगणना के राष्ट्रीय महत्त्व और शासकीय सेवकों के उसके प्रति दायित्व बोध का व्यापक वर्णन था और अंत में ये सिफारिश थी कि कवि सम्मलेन तो होते ही रहते हैं , जनगणना तो दस साल में एक बार होती है अतः इन्हें मुक्त करना उचित ना होगा । मैंने अपने दस्तखत किये और फाइल कलेक्टर को मार्क कर दी | दुसरे दिन जब फाइल वापस आई तो उसमे श्री मंडलेकर साहब ने केवल एक लाइन का आदेश लिखा था “ मुक्त करें और मुक्त हों ” | मुझे पढ़ कर हँसी छूट गयी और मैंने तुरंत उन्हें मुक्त करने का आदेश निकाल दिया | बाद में पता लगा की वे रोज कलेक्टर के बंगले जा कर उन्हें कवि सम्मलेन में भाग न ले पाने की अपनी व्यथा कविता के उद्धरण सहित सुनाया करते थे सो कलेक्टर साहब ने सोचा रोज़ कविता सुन कर जनगणना कराने से छुट्टी देना बेहतर है ।