कोरोना से लड़ने में सरकार ने जहां कई गलतियां की , वहीं जनता को भी प्रशिक्षित नहीं कर सकीं , जिसके चलते कोरोना से कई गुना बड़ी उसकी दहशत हो गई है, जबकि मौत का आंकड़ा पौने 2 प्रतिशत भी नहीं है. इससे कई गुना ज्यादा मौत सड़क दुर्घटनाओं, हत्याओं , गंभीर बीमारियों और अन्य आपदाओं के चलते हो जाती है. दरअसल मूल परेशानी 6 महीने में कोरोना की क्रोनोलॉजी न समझ पाने की है.. बार-बार घूम फिर कर लॉकडाउन व अन्य प्रतिबंध की बातें ज्यादा की जाती है, जबकि दुनियाभर में यह सिद्ध हो चुका है कि कोरोना तमाम प्रतिबंधों के बावजूद अपने पीक पर पहुँचेगा ही और बड़ी आबादी को संक्रमित करेगा और मौतें भी उसी अनुपात में होंगी. अब इस पर या तो लगातार छाती-माथा कूटते रहे या विदेशों की तरह इस महामारी की हकीकत और उससे होने वाले नुकसान की सच्चाई को स्वीकार कर ले. वैसे सच्चाई स्वीकार करने से बीमारी से लड़ने का मानसिक और शारीरिक बल बढेगा ही. लाख टके की बात ये है कि अप्रैल-मई में देश में जो सख्त लॉकडाउन लगाया, उससे हमने कोरोना संक्रमण का समय सिर्फ आगे ही बढ़ाया. जो पीक अप्रैल-मई में आना था, वह अब सितम्बर-अक्टूबर में नजर आ रहा है, जबकि इटली-अमेरिका जैसे देश उस वक्त ही पीक पर आकर अब उससे बाहर हो गए है. कुल मिलाकर बात यही है कि कोरोना से संक्रमित और मरने वालों का अधिकतम आंकड़ा हम 6 महीने में समेट ले या प्रतिबंधों के सहारे उसे बढ़ाते हुए साल-दो साल आगे ले जाएं.
अमेरिका में 70 लाख तक संक्रमितों की संख्या है और मरने वाले 2 लाख से ज्यादा ,जबकि वह दुनिया का सबसे साधनसम्पन्न देश है और उसकी स्वास्थ्य सुविधाएं भारत से 100 साल आगे की है. इसकी तुलना में हमारे देश में अभी तक 54 लाख से अधिक संक्रमित और 87 हजार से अधिक मौतें हुई हैं. भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता वैसे भी बेहतर है, क्योंकि हम सालों से मिलावटी, खाद्य पदार्थ, केमिकल से लेकर दूषित पानी और अन्य चीजों का सेवन करते रहे हैं और मलेरिया जैसी बीमारी तो है ही. कोरोना की क्रोनोलॉजी भी यही है कि वह अधिक से अधिक आबादी को संक्रमित करने के बाद ही घटेगा यानी हर्ड इम्युनिटी से , वैसे भी अभी वैक्सीन के जल्दी मिलने और कारगर होने की संभावनाएं भी कम ही नजर आ रही है. लिहाजा कोरोना के साथ ही रहना है तो रोते-धोते रहे या उसका दृढ़ता से मुकाबला करते हुए , ये आप की पसंद है , कोरोना तो अपना काम करेगा ही .. वैसे भी आए दिन कई लोग ये ज्ञान भी बांटते हैं कि भारत को चीन या पाकिस्तान से युद्ध कर लेना चाहिए. अगर ऐसा युद्ध होता है तो 6 महीने में जितने कोरोना से लोग मरे हैं, उतने या उससे ज्यादा 24 घंटे में ही मर सकते हैं, क्योंकि अब युद्ध भी हथियारों के अलावा परमाणु और वायरसों के जरिए लड़ा जाने लगा है..
कोरोना भी एक तरह का युद्ध ही है, जिसे हमारे दुश्मन देश चीन ने ही फैलाया है. तो इस युद्ध में भी बड़ी संख्या में लोग बीमार होंगे और मरेंगे भी, इस कटू सत्य को स्वीकार करना ही पड़ेगा. साथ में ये सत्य भी न भूले कि हमारी सरकारें शिक्षा और स्वास्थ्य को निजी हाथों में सौंप कर बेफिक्र हो गई. हम चुप रहे और शिक्षा-मेडिकल माफिया के हाथों लुटाते रहे ,तो अब इस पर हल्ला क्यों ? जितने अस्पताल और डॉक्टर हैं उन्हीं से इलाज करवाना पड़ेगा और बन्द स्कूलों की फीस भी चुकाना पड़ेगी , क्योंकि आज भी इस पर बहस करने की बजाय सुशांत, कंगना ज्यादा सुर्खियों में है और अब तो आईपीएल भी शुरू हो गए. लिहाजा जनता को कोरोना की क्रोनोलॉजी अब स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए, क्योंकि उसे खुद ही अपनी सुरक्षा करना है. सरकार तो कोरोना से पल्ला झाड़ते हुए चुनावों में व्यस्त हो गई. इसलिए अब कोरोना की दहशत खत्म कर उससे मुकाबला करने की जरूरत है. क्योंकि इसी दहशत का परिणाम लम्बा लॉकडाउन रहा , जिससे देश की अर्थव्यवस्था तो चौपट हो गई और कोरोना से मुक्ति भी नहीं मिल सकी उल्टा जहां से चले थे, उससे बदतर स्थिति में पहुंच गए हैं..बस सरकार पर इस बाद का दबाव रहे कि गरीब को इलाज और रोजगार मिलता रहे बाकि सक्षम तो थाली-कटोरी बजाने, न्यूज़ चैनलों पर चीन-पाकिस्तान की धुलाई के साथ सुशांत सिंह ड्रामा और अब आईपीएल देखते हुए ठीक हो ही जाएंगे.