(प्रवीण कक्कड़)
महिलाएं अपने जीवन में अलग-अलग किरदार निभातीं हैं। इन किरदारों में अलग-अलग जिंदगी जीती हैं कई बार इन किरदारों को निभाने में अपना असली किरदार भूल जाती हैं। उन्हें हमेशा लगता है कि वह किसी न किसी पर निर्भर हैं। महिलाओं के जीवन में समस्या है कि वह खुद को मझधार की नैया समझती हैं, जबकि वह मझधार की नैया को पार लगाने वाली पतवार हैं। उनकी इस पतवार से ही परिवार, समाज और देश की नैया पार हो रही है।
महिलाएं जब ही सशक्त हो सकती हैं जब वह खुद इस बात को ठान लें। आज महिलाओं की उड़ान ने समाज की सोच और उन्हें नीचा दिखाने वाले स्रोत दोनों को बदलकर रख दिया है।अपनी उड़ान में बेड़ी बनने वाली जंजीरों को वह अपना शस्त्र बनाकर हर मैदान फतह कर रही हैं।
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्रेम प्रकट करते हुए, महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों एवं कठिनाइयों की सापेक्षता के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। प्रसिद्ध जर्मन एक्टिविस्ट क्लारा ज़ेटकिन के जोरदार प्रयासों के बदौलत इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस ने साल 1910 में महिला दिवस के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप और इस दिन पब्लिक हॉलीडे को सहमति दी। इसके फलस्वरूप 19 मार्च, 1911 को पहला IWD ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और जर्मनी में आयोजित किया गया। हालांकि महिला दिवस की तारीख को साल 1921 में बदलकर 8 मार्च कर दिया गया। तब से महिला दिवस पूरी दुनिया में 8 मार्च को ही मनाया जाता है।
आज महिलाएं चार दीवार से बाहर निकलकर अपनी पहचान बना रही हैं और हर क्षेत्र में अपनी सफलता के परचम लहरा रही हैं। हमें भी यह तय करना होगा कि अपने घौंसले कि चिड़िया के परों को बांधेंगे नहीं, क्योंकि यह चिड़िया उड़ना चाहती हैं। यह पढ़ेगी भी और उड़ेगी भी। बस हमें इसकी उड़ान को अपने हौंसले की हवा देना होगी।