Indore: स्त्री अस्मिता को लेकर अपने विचार रखते हुए मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि अब हमें दायरों की आवश्यकता नहीं है स्त्री विमर्श और पुरुष विमर्श जैसी विभाजन रेखा को तोड़ना होगा उन्होंने कहा कि बचपन में हमें दायरों में रहना सिखाया जाता था लेकिन मेरा यह कहना है कि स्त्री लेखन किसी का भी मोहताज नहीं है।
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उन्होंने कहा कि लेखन को कभी भी विभाजित नहीं किया जाना चाहिए उसी तरह से उन्होंने कहा कि उन्हें अभिमन्यु अनत जो कि मारीशस में रहते थे वह कभी प्रवासी नहीं लगे । उन्होंने कहा कि कहानियों में पात्र सबक सिखाते हैं ऐसा ही वास्तविक जीवन में भी होना चाहिए इस मौके पर उन्होंने सशक्त कविता का वाचन भी किया पहले कई महिलाएं पुरुषों के नाम से लेखन करती थी भारतेंदु की प्रेरणा मल्लिका रही है। स्त्री की जिजीविषा गुलाबों में से कांटे निकाल देती है। पहले महिलाएं लिखने के बाद उसे आटे के डब्बे में दबा देती थी लेकिन आज स्त्री लेखन मुखर होकर सामने आया है । लेखिकाओं की पूरी जमात जो कृष्णा सोबती से शुरू होती है उसका सिलसिला आज तक जारी है ।