स्त्री का समर्पण!

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शाम को अपने अपने घरों तक पहुँचिये, तो जरा गौर कीजिएगा सज सँवर कर बैठे चमकते चेहरों पर! आप ध्यान से देखियेगा उन चेहरों में छिपे स्नेह और ममता को!

नजर दौड़ाईयेगा, उन जेवरों और गहनों पर, जिनकी चमक आज आपको कई गुनी लगेगी! और महसूस कीजियेगा उन सुंदर चेहरों पर छाए हुए प्रेम को!

करवाचौथ है आज! हमारे यूपी और बिहार की कई जगहों पर मनाया जाता है, कई जगहों पर नहीं भी मनाया जाता है! पर मनाना या न मनाना मुद्दा नहीं है, गौर करने वाली जो बात है वो है

स्त्री का समर्पण!

आज के दिन जब एक स्त्री दिनभर निर्जला व्रत रहती है तो भूखी सिर्फ वह नहीं रहती, बल्कि भूखी रहती है उसकी अंतरात्मा इस उद्देश्य से कि उसका सुहाग अमर हो! उसकी उम्र लम्बी हो!

आज के दिन जब स्त्री सजती है, तो नहीं सजते सिर्फ उसकी देह और उसका चेहरा, बल्कि सजती है उसकी आत्मा और उस आत्मा का हर एक अंश, हर एक क्षण में प्रार्थना करता है आपसे उनका साथ जन्म जन्म तक बना रहे!

सम्पूर्ण साजो श्रृंगार करके जब वह आईने में निहारती है स्वयं को तो इस बार वह स्वयं को नहीं आपके अक्श को देखती है! उसे स्वयं में आप नजर आते हैं!कभी पुछीयेगा उनसे! आज ही पूछ लीजियेगा, मुहूर्त शुभ है!

जब वह मुस्कुराती है तो न सिर्फ वह, बल्कि उसके आस पास की पूरी सृष्टि मुस्कुराती है! और मुस्कुराए भी क्यों न, इस सृष्टि की आधारस्वामिनी स्त्री ही तो हैं!

जब वह पूरी साज सज्जा के साथ मंगल गीत गाते हुए सखियों और घर की अन्य स्त्रियों के साथ छत पर खड़े होकर चाँद निकलने की प्रतीक्षा करती है, तो उसकी प्रतीक्षा में सिर्फ प्रतीक्षा ही नहीं होती, बल्कि उन घड़ियों में वह अपना सर्वस्व प्रेम आपपर समर्पित कर देना चाहती है!

छत पर चाँद के आगमन की प्रतीक्षा में जब चलनी लिए स्त्रियां लाइन में खड़ी रहती हैं तो ऐसा लगता है मानो चाँद के कई टुकड़े उससे मिलने की ललक में पंक्ति बनाये खड़े हैं।

स्त्री के अथाह समर्पण का त्योहार है करवाचौथ! परन्तु सीता माता जैसी नारियों के लिये!
पूतना और शूपर्णखा जैसी स्त्रियों के लिये नहीं!

ध्यान दीजियेगा देवियों! आपके अगल बगल में भी ढेर सारी पुतनाएँ और शूपर्णखाएं घूम रही हैं जो आपके हर पर्व और त्योहार पर आपको बरगलाती हैं और कहती हैं कि पुरुष की पूजा करने वाले इन ढकोसलों को बन्द करो! पुरुषों के लिये व्रत न रहो, भूखे मत रहो! छठ के दिन बड़ा सा सिंदूर न लगाओ! आदि आदि

यह मानसिक रूप से विक्षिप्त महिलाएं आप जैसी देवियों को अपने जैसी बना देना चाहती हैं! न सिर्फ इतना ही, बल्कि आपके हर पर्व और त्योहार पर चोट कर उसे मिटा देना चाहती हैं! आपके इतिहास को, आपकी परम्पराओं को और अंततः आपके गौरवशाली सनातन धर्म को भी!

अतः इनकी बातों पर गौर करने की आवश्यकता नहीं है!बल्कि आवश्यक है अपना हर पर्व धूम से मनाना! वरना कही ऐसा न हो कि आप देवियों के प्रेम और समर्पण का प्रतीक यह व्रत इतिहास के पाठ्यक्रमों तक सिमट कर रह जाये!

आज आपका दिन है!आप देवियों का….जो हमे जन्म देती हैं, पालती हैं, जीवन जीना सिखाती हैं और अंततः हमारी आयु लम्बी हो, इसके लिये कभी माँ के रूप में “जिउतिया” का व्रत रहती हैं, कभी गणेश चथुर्थी का व्रत रहती हैं, तो कभी पत्नी रूप में करवाचौथ और तीज का व्रत रहती हैं!