Rohingya Crisis in India : म्यांमार में सेना की जुंटा सरकार और विद्रोही संगठनों के बीच जारी संघर्ष के कारण देश का लगभग 40% हिस्सा अब भी सैन्य सरकार के नियंत्रण में नहीं है। बाकी के क्षेत्रों पर अराकान आर्मी जैसे विद्रोही गुटों का कब्ज़ा है, जो सैन्य सरकार के खिलाफ संघर्षरत हैं। इन परिस्थितियों ने एक बार फिर रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या को उत्पन्न किया है, जिससे न सिर्फ बांग्लादेश, बल्कि भारत भी प्रभावित हो रहा है।
रोहिंग्या शरणार्थियों की बढ़ती संख्या
म्यांमार में हिंसा और सैन्य शासन के कारण लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है। हाल ही में बांग्लादेश में 60,000 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों ने शरण ली है। इससे पहले 12 लाख रोहिंग्या बांग्लादेश में ही रह रहे थे, और अब भारत में भी इनकी संख्या 40,000 से अधिक हो गई है। यह सवाल उठता है कि क्यों ये शरणार्थी बांग्लादेश की सीमा पार कर भारत आते हैं, जबकि यह यात्रा उनके लिए खतरनाक और जोखिमपूर्ण होती है।
रोहिंग्या शरणार्थियों की उत्पत्ति और उत्पीड़न
रोहिंग्या म्यांमार के रखाइन प्रांत के मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, जो दशकों से हिंसा, भेदभाव और उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। म्यांमार में बौद्धों की बहुसंख्या है, और रोहिंग्या को देश के 135 आधिकारिक जातीय समूहों में शामिल नहीं किया गया। 1982 से उन्हें नागरिकता से वंचित कर दिया गया, जिसके बाद उनके खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ गईं।
सैन्य तख्तापलट और विस्थापन की स्थिति
2021 में म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट के बाद स्थिति और बिगड़ गई, और 2023 में म्यांमार से 13 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए। यह संख्या 26 लाख तक जा पहुंची, जिसमें 10 लाख से अधिक ‘स्टेटलेस’ रोहिंग्या शरणार्थी हैं, जो बांग्लादेश में रह रहे हैं।
बांग्लादेश में शरणार्थियों की स्थिति
बांग्लादेश में अधिकांश रोहिंग्या शरणार्थी कॉक्स बाज़ार के कुटुपलोंग और नयापारा शिविरों में रहते हैं, जो दुनिया के सबसे बड़े और सबसे घनी आबादी वाले शिविरों में से एक हैं। इन शिविरों में 95% शरणार्थी परिवार मानवीय सहायता पर निर्भर हैं, और आधे से अधिक शरणार्थी 18 वर्ष से कम उम्र के हैं। यहां शरणार्थियों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के सीमित अवसर हैं।
भारत में बढ़ती रोहिंग्या शरणार्थी संख्या
भारत में भी रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या बढ़ रही है, खासकर जम्मू, हैदराबाद, नूंह और दिल्ली में। 2017 में म्यांमार में सैन्य कार्रवाई के बाद भारत में शरण लेने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या बढ़ गई। इन शरणार्थियों में से अधिकतर बिना दस्तावेजों के हैं, और इनका जीवन कई प्रकार की समस्याओं से घिरा हुआ है।
भारत में शरण लेने के कारण
भारत में शरण लेने के कई कारण हैं, जिनमें म्यांमार में जारी जातीय हिंसा और उत्पीड़न सबसे प्रमुख है। 2017 में म्यांमार की सेना द्वारा शुरू की गई कार्रवाई में सैकड़ों रोहिंग्या मुसलमान मारे गए और उनके गांव जलाए गए। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस अत्याचार की कड़ी आलोचना की थी, और संयुक्त राष्ट्र ने इसे ‘जातीय सफाया’ का उदाहरण करार दिया था। बांग्लादेश में स्थित शरणार्थी शिविरों में भी हालात बिगड़ने के कारण, कई रोहिंग्या बांग्लादेश की सीमा पार कर भारत पहुंचने का प्रयास करते हैं।
रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश की सीमा पार कर भारत के दो मुख्य रास्तों से आते हैं। पहला रास्ता पश्चिम बंगाल से होकर और दूसरा रास्ता मिजोरम और मेघालय के जरिए है। इन शरणार्थियों को भारतीय सीमा तक पहुंचने के लिए कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे दस्तावेजों की कमी और भाषा की अड़चन। इसके बावजूद, वे किसी भी खतरे को उठाकर भारत पहुंचने को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि वे इसे अपनी सुरक्षा और बेहतर जीवन के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प मानते हैं।