जहा कभी टेबल तक नही लगती थी, वहां कांग्रेस पूरे दमखम लड़ी चुनाव

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नितिनमोहन शर्मा

औसत इंदौरी ये कल्पना ही नही कर सकता कि भाजपा के कद्दावर नेता चंदू शिंदे को अपने ही इलाके में जान के लाले पड़ जाए। वो भी चलते चुनाव में वोटिंग वाले दिन। थोड़ी बहुत राजनीतिक समझ रखने वाला ये स्वप्न में भी नही सोच सकता कि विधानसभा 2 में कांग्रेसी भाजपा के कार्यालय पर लाठी डंडों के साथ आकर हमला कर दे और सिर तक फोड़ दे। भाजपा के सीनियर पार्षद उम्मीदवार को चप्पल दिखाने और कार पर हमला होने का तो विचार ही नही आ सकता। क्या ये कोई सोच भी सकता है कि जिस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की टेबल तक नही लगती. वहां कांग्रेस आधा दर्जन वार्डो में चुनाव जीतने की कगार पर पहुंच जाए?

ये सब हुआ नही, हो चुका। वह भी उस क्षेत्र में जो शहर ही नही अंचल ओर प्रदेश की राजनीति में ” रमेश कैलाश ” का गढ़ कहा जाता है। जो “दादा दयालु ” का मजबूत किला कहा जाता है। जहाँ कांग्रेस को बूथ पर बैठाने के लिए कार्यकर्ता तो दूर गली मोहल्लों में मतदान वाले दिन टेबल तक लगाने वाले नही मिलते थे। उस क्षेत्र में इस निगम चुनाव में जो हुआ वो स्वालं कर रहा है कि इस क्षेत्र का ” तिलिस्म” क्या टूटने जा रहा है?? क्या “दयालु” का किला दरकने वाला है?? क्या वाकई यहां से कांग्रेस एक- दो नही, 6 वार्ड जीत रहीं है? इस पूरे चुनाव में एक के बाद एक घटी घटनाओं ने इन सब सवालों को ताकत दी है।

निगम चुनाव में यहां कांग्रेस ने दमखम से चुनाव लड़ा। भाजपा के कई दिग्गज ओर नामचीन नेताओ के पसीने छुड़वा दिए। जहा भाजपा का नाम ही काफी होता था ओर जहां कांग्रेस का नामलेवा कोई नही था, वहां कांग्रेस इस बार अपनी जीत के दावे के रही है। जमीन पर भी कांग्रेस ने भाजपा के सामने “दु पर दु ” की स्थिति में रही और कई जगह पर तो उसने भाजपाइयों को ” दुड़की ” भी लगवा दी। खातीपुरा ओर रविदास नगर की घटनाओं ने कांग्रेस के पुराने तेवरों की याद भी दिला दी जो कभी इस इलाके में पार्टी के रहे थे। लेकिन 3 दशक से यहां पर सिर्फ कमल दल का ही “बोलबाला” था।

चनावो के समय कांग्रेस सिर्फ उपस्थिति दर्ज कराने के लिए मैदान में रहती थी। इस बार कांग्रेस चंदू शिंदे गणेश गोयल सुरेश कुरवाड़े जैसे दिग्गज नेताओं को हराने का दावा कर रही है। वह भी उस विधानसभा में जहा से भाजपा विधायक रमेश मेंदोला 90 हजार तक वोटो से चुनाव जीत लेते है। बीता चुनाव भी 60-70 हजार की लीड वाला था। तीन साढे तीन साल में ही ऐसा क्या हो गया कि यहाँ कांग्रेस अचानक लड़ाई में लौट आई?? ये सवाल इलाके के लोगो के साथ साथ अहिल्या नगरी के बाशिंदों के लिए भी जिज्ञासा का विषय हो गया है। भाजपा के अंदरखाने में भी ये चिंतन मनन का विषय हो गया है तो इलाके के क्षत्रपों के भविष्य पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है।

कांग्रेस ने 6 वार्डो में घेरा भाजपा को, जीत की आस

कांग्रेस ने यहां के सभी 18 वार्डो पर इस बार दमखम के साथ न केवल चुनाव लड़ा बल्कि 6 वार्ड में जीत को लेकर आश्वस्त भी है। कांग्रेस को वार्ड 20 21 22 23 30 ओर 36 में अपने लिए जीत दिख रही है। वार्ड 20 में भाजपा से कमला इंद्रबहादुर सिंह मैदान में थी। भाजपा यहां से हमेशा खाती समाज से टिकट देती आई है। इस बार राजपूत समाज से भाजपा का टिकिट गया। नतीजतन इलाके की खाती बिरादरी एक जुट हो गई।

अब भाजपा के लिए यहां सांसे ऊपर नीचे हो रही है। वार्ड 21 में भाजपा के बड़े नेता गणेश गोयल कांग्रेस के इलाके के एकमात्र क्षत्रप चिंटू चौकसे के सामने जाकर फंस गए है। यहां हार जीत बेहद ” महीन” बताई जा रही है और मतदाताओं की माने तो चौकसे तीसरी बार भाजपा के किसी दिग्गज को चुनाव में पटखनी देने जा रहे है। इसके पहले वे कल्याण देवांग उमाशंकर तरेटिया को हराकर पार्षद बन चुके है।

वार्ड 22 में कांग्रेस के दूसरे क्षत्रप राजू भदौरिया मैदान में थे और उनका मुकाबला ” रमेश-कैलाश” केम्प के ” नाक के बाल ” चंदू शिंदे से रहा। शिंदे की राजनीति वार्ड बदलकर जीत जाने वाली रही है। लेकिन इस बार की उनकी वार्ड बदली ने उनका न केवल चुनाव बल्कि सम्पूर्ण वजूद ही बदल दिया। चुनाव वाले दिन जिस तरह से महिलाओ ने उन्हें घेरा, चप्पल दिखाई, अपशब्दों की बौछार लगाई ओर जानलेवा हमला हुआ…उसने न केवल शिंदे को बल्कि विधानसभा 2 की पूरी भाजपा को अंदर तक झकझोर दिया। शिंदे केम्प ने इस पूरी घटना को क्षणयंत्र बताया।

केम्प का कहना है हम तो चुनाव जीत रहे थे। इससे घबराकर कांग्रेस ने शिंदे के चरित्र हनन का क्षणयंत्र रचा। दोपहर बाद कार पर हमला इसी क्षणयंत्र का हिस्सा था ताकि वोटिंग प्रभावित हो। भदौरिया समर्थको दावा है कि हम यहां चुनाव जीत रहे है।वार्ड 23 में कांग्रेस प्रत्याशी का निजी मैनेजमेंट अंतिम समय तक जमीन पर मजबूत था और पहली बार नंदानगर से जुड़े क्षेत्र की सभी गलियों में न केवल कांग्रेस की टेबले लगी बल्कि इस भाजपाई गढ़ में वोट भी टूटा। कांग्रेस यहां से भी उम्मीद से है।

इसी प्रकार भाजपा के लिए 30 नम्बर वार्ड में भी मनीषा गागोरे की जीत को लेकर आश्वस्ति का भाव मजबूत नहीं। अजा वर्ग के इस वार्ड से कांग्रेस जीत का दावा कर रही है।भाजपा के एक ओर दिग्गज सुरेश कुरवाड़े का मुकाबला भी फंस गया है। निपानिया वाले वार्ड 36 में लड़ने पहुंचे कुरवाड़े मतदान वाले दिन तक अपने ऊपर लगे बाहरी प्रत्याशी के ठप्पे को मिटा नही पाये थे। कांग्रेस यहां से महेश पंचोली की जीत तय मानकर चल रही है।

मेंदोला नही चाहते थे पुराने लड़े

यहां मेंदोला की मंशा थी कि जो दो तीन बार चुनाव लड़ लिए वे नेता इस बार चुनाव न लड़े ओर नए को टिकिट लेने देवे। इस मुद्दे पर यहां मेंदोला ओर कैलाश विजयवर्गीय के बीच अंतर्विरोध भी उभरकर सामने आया। आखिरकार मेंदोला को हथियार डालना पड़े। आज उन्ही पुराने नेताओ के कारण इलाके में कांग्रेस लौटती नजर आ रही है ओर वो गणेश गोयल चंदू शिंदे सुरेश कुरवाड़े जैसे दिग्गज नेताओं के वार्ड जीतने के दांवे कर रही है।

कार्यालय पर हमला, फिर भी चुप्पी?

पटेल परिवार की राजनीति विरासत का केंद्र खातीपुरा इस बार चर्चा में रहा। आमतौर पर यहां से विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी लीड मिलती है। अपने कार्यालय पर हुए हमले के बाद भी पार्टी की चुप्पी इसी कारण है। पार्टी का मानना है कि छोटे चुनाव के लिये विधानसभा लोकसभा जैसे बड़े चुनाव दांव पर नही लगाये जा सकते। लिहाजा भाजपाई खेमा चुनाव कार्यालय पर हुए हमले ओर लाठियों से पड़े सिर के वार भी भूलकर मनमसोस कर चुप बैठ गया। बड़े नेताओं ने भी इसको ज्यादा हवा नही दी। हालांकि इस क्षेत्र का मूड भांपने वालो का दांवा है कि छोटे चुनाव के इस झगड़े ने क्षत्र में बड़े झगड़े की नींव रख दी है।

चंदू के खिलाफ बड़ा क्षणयंत्र

खुलासा फर्स्ट की आशंका सही थी कि वोटिंग वाले दिन वाकई शिंदे की जान खतरे में थी। शिंदे को इसका रत्तीभर भी इल्म नही था। वे सहज वार्ड में घूम रहे थे और अचानक भीड़ द्वारा घेर लिए गए। भीड़ भी उग्र जो उनके वाहन के शीशे तो तोड़ ही रही थी बल्कि कार पलटाने का प्रयास कर रही थी। शिंदे वाहनरिवर्स लेकर वहां से बमुश्किल निकल पाये। सवाल फिर वही की कांग्रेस में इतनी हिम्मत कहा से आ गई कि वो रमेश कैलाश केम्प के सबसे मजबूत सिपहसालार पर जानलेवा हमला बोल दे??