चमोली जिले में डॉक्टरों की मनमानी चरम पर है। स्वास्थ्य सेवाएं बद से बदतर होती जा रही हैं। यहां अस्पतालो में सरकारी अनुबंध पर नियुक्त डॉक्टर महीनों से बिना किसी छुट्टी या पूर्व सूचना के सरकारी अस्पतालों से गायब हैं। हैरानी की बात यह है कि यह मामला किसी एक या दो डॉक्टरों का नहीं है, बल्कि ज़िले के सभी अस्पतालों को मिलाकर कुल 36 डॉक्टर ग़ायब चल रहे हैं।
इनमें से उपजिला अस्पताल कर्णप्रयाग से 10, नंदानगर से 08 थराली से 05, नारायणबगड से 04, जोशीमठ से 03, पोखरी से 02, चमोली से 02 और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गैरसैंण एवं जिला चिकित्सालय गोपेश्वर से एक-एक अनुबंध पर तैनात डॉक्टरों का नाम सामने आया है। चमोली ज़िले के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. अभिषेक गुप्ता का कहना है कि ज़िले में तैनात बॉन्डधारी डॉक्टर सरकारी अस्पतालों से पिछले 2 महीनों से रफ़ूचक्कर हैं। उनके मुताबिक इन डॉक्टरों ने न तो किसी को सूचित किया और न ही किसी उच्चाधिकारी से अनुमति ली। सभी डॉक्टर छुट्टी लिए बिना ही लापता हैं।

वहीं चमोली के ज़िलाधिकारी डॉ. संदीप तिवारी ने बताया कि ज़िले के ज़िला चिकित्साधिकारी डॉ. अभिषेक गुप्ता ने उन्हें जानकारी देते हुए बताया है कि ज़िले से 36 बॉन्डधारी डॉक्टर बीते दो ढाई महीने से ड्यूटी पर मौजूद नहीं हैं। उन्होंने बताया कि सरकारी अस्पतालों से ग़ायब चल रहे सभी डॉक्टरों के ऊपर सख्त कार्रवाई करने को लेकर शासन से अनुमति मांगी गई हैं। डीएम ने कहा कि उक्त 36 डॉक्टरों से अनुबंध नीति के बॉन्ड की शर्तों के अनुसार वसूली कर मुक़दमा भी दर्ज किया जा सकता है।
उत्तराखंड सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के उद्देश्य से एक अनुबंध नीति लागू की थी, इस नीति के तहत श्रीनगर गढ़वाल मेडिकल कॉलेज और अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने वाले सभी छात्रों को एक बॉन्ड साइन करना अनिवार्य होता है। इस बॉन्ड के अनुसार, एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन छात्रों को 3 से 5 वर्षों तक उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में सेवाएं देना अनिवार्य होता है। अस्पतालों में डाक्टरों की कमी से परेशान लोगो का कहना हैं कि इस तरह ड्यूटी से गायब रहने वाले डाक्टरों के ऊपर कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए, उन्हें तत्काल ड्यूटी पर आने के आदेश दिए जाएं या फिर बॉन्ड की शर्त के मुताबिक उनसे अर्थदंड वसूला जाए। इसके साथ ही जब तक उनकी 18 महीने की सेवा पूरी न हो जाए, तब तक उन्हें किसी भी दूसरी सरकारी या निजी नौकरी की अनुमति न दी जाए। क्योंकि बांडधारी डाक्टरों की इस मनमानी से सवाल सिर्फ सरकार पर नहीं, बल्कि लोगो के स्वास्थ्य और भरोसे की रक्षा पर भी उठे हैं।