उर्दू नाटकों ने 2024 में रूढि़यों को तोड़ते हुए सांस्‍कृतिक जुड़ाव को दिया बढ़ावा

srashti
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साल 2024 में दक्षिण एशिया में कहानी कहने की कला एक नए मुकाम पर पहुंची है। दर्शकों ने उन बेबाक कहानियों को खूब पसंद किया है, जिन्‍होंने नियमों को चुनौती दी और ज्‍यादा गहरे मानवीय सम्‍बंधों, सामाजिक जटिलताओं तथा सार्वभौमिक भावनाओं को खोजा है। यह साल भारत में पाकिस्‍तानी प्रतिभाओं को पसंद किये जाने के मामले में भी महत्‍वपूर्ण रहा है। फवाद खान, सनम सईद, हानिया आमिर, बिलाल अब्‍बास और सबा क़मर जैसे सितारों ने दिलों को जीता है। विवादों और प्रतिबंध की मांग के बावजूद, खासकर जि़न्‍दगी ओरिजिनल बरज़ख के साथ जो हुआ, इन कहानियों ने रूढि़यों को तोड़ा और सार्थक बातचीत को बढ़ावा दिया। इन्‍हें दुनियाभर से सराहना भी मिली और यही ताकत कहानी कहने की कला में होती है।

असीम अब्‍बासी की बरज़ख ने तो कमाल ही कर दिया। दर्शकों को उसकी दमदार कहानी और दार्शनिक गहराई बहुत पसंद आई। फवाद खान और सनम सईद की मुख्‍य भूमिकाओं वाली इस सीरीज में एक रहस्‍यमयी कहानी प्‍यार, नुकसान और विरासत जैसे सार्वभौमिक विषय लेकर आता है। यह दर्शकों को जीवन और मृत्‍यु के बीच की रहस्‍यमयी दुनिया में ले जाता है। अपनी भावनात्‍मक गहराई और दिलचस्‍प कहानी के चलते बरज़ख ने समीक्षकों से भी खूब प्रशंसा बटोरी, और इसे एशियन एकेडमी क्रियेटिव अवार्ड्स 2024 में बेस्‍ट ड्रामा सीरीज नॉमिनेशन प्राप्‍त हुए। इसे प्रोमैक्‍स एशिया अवार्ड्स 2024 में दो गोल्‍ड मेडल्‍स भी मिले और इस प्रकार दक्षिण एशिया में कहानी कहने की कला के अग्रणी के तौर पर इसकी स्थिति और मजबूत हुई।

‘बरज़ख’ की प्रोड्यूसर शैलजा केजरीवाल ने बेहद गर्व के साथ कहा, ‘‘पाकिस्‍तानी नाटकों को भारत में काफी सफलता मिली है, क्‍योंकि उनमें कहानी कहने की कला सरल, सार्वभौमिक तथा बहुत प्रासंगिक होती है। 2024 में ‘कभी मैं कभी तुम’, ‘अब्‍दुल्‍लापुर का देवदास’ जैसे हिट्स और जबर्दस्‍त ‘बरजा़ख’ ने भावनात्‍मक गहराई तथा सांस्‍कृतिक प्रासंगिकता के कारण दर्शकों को लुभाया। इसी के साथ तो फवाद खान की वापसी भी हुई है। भारतीय कंटेन्‍ट की आकांक्षी, पेचीदा और देखने में रोचक प्रकृति से उलट पाकिस्‍तानी नाटकों में परिवारों को जोड़ने वाले और सामाजिक मुद्दों को उठाने वाली कहानियां होती हैं। स्‍ट्रीमिंग का क्रमिक विकास होने के साथ यह प्रासंगिकता और प्रामाणिकता ज्‍यादा दर्शकों को आकर्षित कर सकती है। ऐसे में क्षेत्रीय मनोरंजन का क्षेत्र लंबे समय तक फलता-फूलता रहेगा।’’

बेहद पसंद किये गये दूसरे शोज़ में कभी मैं, कभी तुम भी शामिल है। इसमें हानिया आमिर और फहाद मुस्‍तफा की मुख्‍य भूमिकाएं हैं और इसकी अनूठी प्रेम कहानी दर्शकों के दिल में उतरी है। इसमें हीरोइन एक टॉपर है, जिसे किताबों से प्‍यार है, जबकि हीरो आलसी और लापरवाह स्‍वभाव का है। ‘अब्‍दुल्‍लापुर का देवदास’, ‘इश्‍क मुर्शिद’ और ‘मन जोगी’ में बिलाल अब्‍बास के वर्सेटाइल परफॉर्मेंस ने भी कहानी कहने की पाकिस्‍तानी कला की गहराई दिखाई है। ‘अब्‍दुल्‍लापुर का देवदास’ को तो जि़न्‍दगी ओरिजिनल के तौर पर जि़न्‍दगी के यूट्यूब प्‍लेटफॉर्म पर डेब्‍यू भी किया गया है। सबा क़मर ने भी ‘पागल खाना’ और ‘मिसेज एण्‍ड मिस्‍टर शमीम’ में जोरदार अभिनय किया है। इसमें उनके सह-कलाकार नौमान इजाज़ थे और वैवाहिक जीवन का हास्‍य तथा संघर्ष दिखाये गये थे। यह सारी कहानियाँ जि़न्‍दगी के पोर्टफोलियो में एक सुखद गहराई लेकर आईं।

पाकिस्‍तानी नाटकों ने सीमापार के अपने दर्शकों का मनोरंजन जारी रखा और जि़न्‍दगी ने उर्दू कंटेन्‍ट को टेलीविजन के माध्‍यम से भारतीय दर्शकों तक पहुँचाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। इस साल जि़न्‍दगी के डीटीएच प्‍लेटफॉर्म ने दर्शकों को सदाबहार नाटकों जैसे कि ‘हमसफर’, ‘जि़न्‍दगी गुलज़ार है’, ‘धूप छांव’, ‘बिन रोये’, और नये मशहूर ड्रामा, जैसे कि ‘कुछ अनकही’, ‘इश्किया’, ‘चीख’, ‘काबुली पुलाव’ आदि से खुश किया। इस प्‍लेटफॉर्म ने क्‍लासिक्‍स को आज के ओरिजिनल प्रोडक्‍शंस से मिलाकर कहानी कहने की कला को सीमापार ले जाने में अग्रणी के तौर पर अपनी स्थिति को मजबूत किया है। वह संवेदना को बढ़ावा देने और दुनियाभर में पसंद की जाने वाली कहानियां लेकर आने के लिये समर्पित है।