मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज़ हो चुकी है। इन तीन प्रदेशों में नवंबर-दिसम्बर में चुनाव होने को हैं, ऐसे में यहां सभी दल अपना-अपना ज़ोर आज़मा रहे हैं। आगामी विस चुनाव को ध्यान में रखते हुए सभी दल, अपनी रणनीति बनाने में लगे हुए हैं। वहीं बात केवल मध्य प्रदेश की करें तो यहां होने वाले ज्यादातर सर्वे में बीजेपी पिछड़ती हुई नजर आ रही है। अब मौजूदा स्थिति अन्य दलों को तो उत्साहित कर रही है, वहीं बीजेपी के लिए सर का दर्द बनी हुई है, और इससे बाहर निकलने के लिए बीजेपी हर तरह के हथकंडे अपनाने को तैयार है।
यूं तो इन चुनावों के लिए सभी दल सोच समझकर मुद्दों का चुनाव कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही प्रमुख दल, इस विधानसभा चुनाव में अपनी पुरानी गलतियां नहीं दोहराना चाहते हैं। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी अपने लिए सत्ता तक का रास्ता चुन रही है और विकास यात्रा के साथ अपनी चुनावी तैयारियों में जुट गई है, वहीं राहुल गांधी की सफल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से उत्साहित कांग्रेस भी विधानसभा 2023 के लिए कमर कस चुकी है। इसी के साथ दोनों पार्टियां अपने अपने चुनावी मुद्दों के चयन में भी काफी सतर्कता बरत रही हैं।
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जाहिर है, चुनाव आते ही कुछ मुद्दे जैसे बेरोज़गारी, महंगाई, किसान और महिला सशक्तिकरण, खुद-ब-खुद ट्रेंड में आ जाते हैं। 2018 में कांग्रेस ने किसान और कर्ज़ माफी के नाम पर ही मध्यप्रदेश में मतदाताओं को आकर्षित करने में सफलता हासिल की थी। इसलिए अब भी कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस इस बार भी इन्ही मुद्दों को थामे रखना चाहेगी, हालांकि उम्मीद है इन चुनावों में कांग्रेस, रोजगार के लिए तड़प रहे युवाओं के साथ, बेरोजगारी के मुद्दे को जमकर भुनाएगी। भाजपा की बात करें तो मध्यप्रदेश में पार्टी हर सर्वे में जीत से दूर नज़र आ रही है। इसकी एक वजह एंटी इनकम्बेंसी को भी माना जा सकता है।
राजनीतिक रणनीतिकार अतुल मलिकराम के अनुसार, इतने सालों तक सत्ता में बने रहने के बावजूद कुछ मुद्दों पर बीजेपी अब भी कमज़ोर ही बनी हुई है। प्रदेश में जारी बीजेपी की विकास यात्रा का, खासकर ग्रामीण इलाकों में बहिस्कार, इस बात का सबूत है कि मौजूदा सरकार से वो मतदाता खफा है जो असल में पोलिंग बूथ तक वोट देने पहुंचता है। शायद इसीलिए शिवराज सरकार साहित्य कला से लेकर महिला और युवाओं को आर्थिक लाभ लेकर लुभाने में जुटी है।
ऐसे में यह कहना भी गलत नहीं होगा कि कांग्रेस या अन्य सभी दलों का, बीजेपी को घेरने के लिए इस बार सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार ही होगा। बेरोज़गारी के बढ़ते ग्राफ को हथियार बनाकर राजनैतिक दल सत्ता की रेस में आगे निकलना चाहते हैं। यही एक मुद्दा है जिसे बीजेपी अपना हथियार नहीं बना पा रही है। इसमें भी कोई शक नहीं कि अब कांग्रेस सत्ता में आने के लिए किसानों को अपनी सीढ़ी बनाने के बजाय, ऐसा मुद्दा तलाशना चाहेगी जिसका बीजेपी के पास कोई तोड़ न हो।
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विधानसभा चुनाव में जहां एक तरफ बीजेपी के लिए जीत का मुद्दा पिछड़ा वर्ग, दलित और आदिवासी समाज हो सकते हैं वहीं, कांग्रेस का मुख्य दांव केवल बेरोज़गारी के रास्ते युवाओं पर ही सधा होगा। और इस बार बीजेपी को घेरने के लिए और सत्ता तक अपना रास्ता बनाने के लिए कांग्रेस इस एक मुद्दे को अपना चुनावी मुद्दा बनाएगी। जो उन्हें जीत की सीढ़ी तक ले जाने का काम करेंगे।