Jayram Shukl Article
न हो कमीज तो पांवो से पेट ढक लेंगे
जयराम शुक्ल लोकभाषा के बडे़ कवि कालिका त्रिपाठी ने कभी रिमही में एक लघुकथा सुनाई थी। कथा कुछ ऐसी थी कि..दशहरे के दिन ननद और भौजाई एक खेत में घसियारी
राष्ट्रीय प्रथम, यही हमारा धर्म – जयराम शुक्ल
खानवा के युद्ध में राणा सांगा के हमलों से पस्त बाबर ने अपने जासूसों को आदेश दिया कि यह पता लगाकर बताएं कि दुश्मन (राणा सांगा) की फौज की कमजोर
हकीकत और अफसाने के बीच ‘मेयर की चेयर’
जयराम शुक्ल राजनीति का मूल चरित्र और आत्मा एक ही होती है, वह राजनीतिक दलों के रूप में सिर्फ चोला ग्रहण करती है। दिलचस्प यह कि इस बार महापौर के
अपन के गुरदेव तो बजरंगी हैं!
जयराम शुक्ल रामकथा की पोथी-पोथन्ना रचने वाले गोस्वामीजी के लिए बजरंगबली देवता, ईश्वर नहीं, बल्कि गुरु हैं। तो उन्हीं की देखादेखी अपन ने भी बजरंगबली को गुरुदेव मान लिया। वास्तव
क्या पत्रकारिता वाकई ‘पेन प्रस्टीट्यूट’ बन गई
जयराम शुक्ल भारत में पहले अखबार ‘बंगाल गजट’ का निकलना एक दिलचस्प घटना थी। वह 1780 का साल था ईस्ट इंडिया कंपनी वारेन हेस्टिंग के नेतृत्व में मजबूती के साथ
भेड़िए हाँक रहे भेड़ों के काफिले
जयराम शुक्ल हाल ही हमारे आसपास घटी दो घटनाएं किसी भी विवेकी व्यक्ति को विचलित कर देने वाली हैं। पहली- रामकथा का प्रवचन करने आए एक महंत जी व्यासगादी में
World Water Day : एक ही रास्ता, पानी को गिरफ्तार करो
जयराम शुक्ल इजराइल की गैलीना मनुस्किन मेरी सोशल मीडिया मित्र हैं। वे पूरी दुनिया घूमती हैं पर भारत से उनका खास लगाव है। वे ये इतिहास जानती हैं कि यहूदियों
सामाजिक परिवर्तन के पुरोधा, कांशीराम जी को याद करते हुए
जयराम शुक्ल यह सही है कि देश में जाति के आधार पर शोषण और अत्याचार हुए हैं। इस सिलसिले ने ही अँबेडकर साहब (Ambedkar Saheb) की प्राणप्रतिष्ठा की और राजनीति
चुनावी लोकतंत्र का सफर, इस पतन का मुकाम कहाँ!
जयराम शुक्ल चुनाव मेरे लिए हमेशा से कौतूहल का विषय रहे हैं। मीडिया में आने के बाद तो समझिए किसी जश्न से कम नहीं। बिना मगजमारी के विषयवस्तु मिल जाता
हम पाखंडी जनम जनम के!
जयराम शुक्ल “लछमी देवी दर दर भटकें बेबस निर्धन चार टके को दुर्गा पर गुंडे लहटे हैंं निर्बल अबला जान समझ के। सरस्वती को दिया मजूरी डाट दपटकर बेलदार ने,
यूपी चुनाव पर यूक्रेन इफेक्ट
जयराम शुक्ल रूस-यूक्रेन के युद्ध की सुर्खियों ने उत्तरप्रदेश के चुनाव की चर्चा को चंडूखाने में धकेल दिया। 7×24 मीडिया पर यूक्रेन की तबाही और उसके ऊपर चील्ह की भाँति
और अंततः ‘खाकसार’ जिन्दगी का ‘हादसा’ रचकर खाक में जा मिला!
जयराम शुक्ल कोई चार दिन पहले ही भास्कर में छपने वाले ‘परदे के पीछे में’ अपने स्तंभ को स्थगित करते हुए वादा किया था कि फिलहाल विदा ले रहे हैं
कभी अलविदा न कहना
जयराम शुक्ल यह मेरे जैसे न जाने कितने प्यासे पाठकों के लिए भावुक क्षण है। जयप्रकाश चौकसे जी का कालम ‘परदे के पीछे’ कल से पढ़ने को नहीं मिलेगा। दैनिक
संवेदनाओं की मरुभूमि में हमारी पत्रकारिता
जयराम शुक्ल अतीत की जुगाली अमूमन हताशा की परिचायक होती है लेकिन वर्तमान की नापजोख के लिए उससे प्रामाणिक पैमाना दूसरा नहीं हो सकता। समाज के मूल्य और कीमतों को