SFAC की फिर पोल खुली, फर्जी रिपोर्ट के आधार पर करोड़ों विदेशी संस्थान को बांटे

Shivani Rathore
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एसएफ़एसी (Small Business Agribusiness Consortium) की फिर पोल खुली है, और धीरे धीरे इनकी कार्य प्रणाली समझ मे आ रही है, की कैसे ये संस्थान भ्रष्टाचार का अड्डा बनता जा रहा है। यह अब समझ मे आता जा रहा है की देश के कृषि क्षेत्र के बदहाली के लिए काफी हद तक एसएफ़एसी ही जिम्मेदार है जो अच्छे अच्छे सरकारी परियोजनाओं को आंपने नकारेपन और अहंकार से बर्बाद कर रहे है।

यह कहना है भोपाल मे बसे एक एफ़पीओ एक्सपेर्ट शाजी जॉन का। शाजी जॉन एक पूर्व बैंकर, कृषि वैज्ञानिक और सॉफ्टवेर डेवलपर भी है और पिछले 11 वर्षों से एफ़पीओ सैक्टर के साथ जुड़े है। शाजी जॉन केंद्र सरकार के 1000- एफ़पीओ (कृषक उत्पादक संघठन) गठन कार्यक्रम पर पैनी नजर बनाए हुए है, और कार्यक्र्म की प्रगति जानने के लिए एसएफ़एसी (केन्द्रीय कृषि मंत्रालय का उपक्रम) एवं नाबार्ड से आरटीआई के माध्यम से जानकारी प्राप्त कर रहे है।

अभी तक शाजी जॉन 1200 से अधिक आरटीआई इन दोनों संस्थाओं को भेजे है, और प्राप्त हो रहे जवाब का विश्लेषण कर उसका प्रैस नोट बनाकर सबको एसएफ़एसी और नाबार्ड के कार्यों की सूचना आम जनता को देने का प्रयास कर रहे है। शाजी जॉन के अनुसार आरटीआई के जो जवाब प्राप्त हो रहे है, वो बहुत ही चौंकाने वाले है। कई अलग मुद्दो पर आधारित एसएफ़एसी और नाबार्ड के रिपोर्ट इससे पहले शाजी जॉन प्रकाशित कर चुके है। ताजी जानकारी तो बहुत ही हैरान और चिंता मे डालने वाली है।

एसएफ़एसी और एनपीएमए (National Project Management Agency)के बीच जनवरी 2021 मे अनुबंध करार हुआ था की एनपीएमए द्वारा, 4 वर्षो (दिसम्बर 2024) तक केंद्र सरकार की 10000 एफ़पीओ गठन परियोजना का पूर्ण प्रबंधन करेंगे, और 4 वर्षों मे 10000 टिकाऊ (Sustainable) एफ़पीओ बनाकर देने का परामर्श और सहयोग देंगे। अनुबंध करार (Contract Agreement) के अनुसार एनपीएमए को 16 कार्य बिन्दु निर्धारित थे, और इस कार्य बिन्दु से संबन्धित कार्य की निगरानी की ज़िम्मेदारी एसएफ़एसी की थी।

इससे पूर्व के प्रैस नोट मे शाजी जॉन ने एनपीएमए के कार्य पूर्ण ना करने पर रिपोर्ट प्रकाशित किया था, और वर्तमान अंक उसी से संबन्धित है। अनुबंध करार के अनुसार एनपीएमए के लिए 10 मुख्य डेलीवेरबल (Key Deliverables) निर्धारित थे। एनपीएमए की सेवाओं के भुगतान के लिए एसएफ़एसी के लिए यह आवश्यक था की वो जाँचे की समय अंतराल पर निर्धारित डेलीवेरबल एनपीएमए से प्राप्त हो रहा है या नहीं है। श्री शाजी जॉन ने आरटीआई के माध्यम से “अनुबंध करार मे निर्धारित डेलीवेरबल जो एसएफ़एसी को एनपीएमए से प्राप्त हुआ” की प्रति मांगी थी।

आरटीआई अधिनियम 2005, के अनुसार एसएफ़एसी के लिए यह अनिवार्य है की भारत का कोई भी नागरिक आरटीआई के अंतर्गत ये रिपोर्ट मांगने पर उसे उपलब्ध कराये। लेकिन शाजी जॉन के आरटीआई पर एसएफ़एसी ने अनुबंध करार मे निर्धारित मुख्य डेलीवेरबल की प्रति देने से इंकार कर दिया।

अब एसएफ़एसी का रिपोर्ट देने से इंकार करने के दो कारण हो सकते है..

1- एनपीएमए ने एसएफ़एसी को ये रिपोर्ट उपलब्ध नहीं कराये.
2- एनपीएमए ने एसएफ़एसी को जो रिपोर्ट उपलब्ध कराये, और जिसके आधार पर एसएफ़एसी हर महीने एनपीएमए को लाखों करोड़ो का भुगतान कर रहे है को बाहर दिखाने पर कई पोल खुल सकते है।

दोनों ही परिस्थिति एसएफ़एसी के नकारेपन की ओर इशारा करती है। बिना काम किए भुगतान हो रहा है, तो यह सीधे सीधे भ्रष्टाचार का मुद्दा है। लेकिन एसएफ़एसी के नकारेपन से ना सिर्फ देश को मौद्रिक हानि है, बल्कि पूरा 10000 एफ़पीओ योजना ही धराशायी हो गया है।

एसएफ़एसी को एनपीएमए से निम्न डेलीवेरबल अनिवार्य रूप से प्राप्त किया जाना निर्दिर्शित था..

1- विस्तृत परियोजना कार्य योजना / विस्तृत परियोजना कार्यान्वयन योजना ।
2- चयन मानदंडों के विवरण के साथ पहचाने गए समूहों की सूची और पहचानी गई मूल्य श्रृंखलाओं की सूची
3- सीबीबीओ के लिए विस्तृत एसओपी ।
4- मूल्य श्रृंखला विश्लेषण और पहचानी गई मूल्य श्रृंखलाओं में प्रमुख हस्तक्षेपों की योजना ।
5- मासिक प्रगति रिपोर्ट ।
6- एमआईएस डैशबोर्ड का निर्माण और रखरखाव ।
7- परियोजना के अंतर्गत विकसित प्रकाशन हेतु तैयार सूचना, शिक्षा एवं संचार (आईईसी) सामग्री ।
8- क्षमता निर्माण / ज्ञान प्रसार कार्यक्रम (प्रशिक्षण कार्यशालाएं, सेमिनार आदि) ।
9- परियोजना से संबंधित कार्य में कार्यान्वयन एजेंसियों की सहायता करना ।
10- डीएएंडएफडब्ल्यू (DA&FW)/एसएफएसी द्वारा सौंपा गया कोई अन्य परियोजना से संबंधित कार्य ।

एसएफ़एसी के पास इन 10 कार्यों का एनपीएमए से प्राप्त एक भी रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है या फिर जो उपलब्ध है, वो किसी को दिखाने लायक नहीं है। बिना किसी काम किए और बिना कोई रिपोर्ट दिये एनपीएमए को मार्च 2024 तक रु12.4 करोड़ रुपए के भुगतान किया गया है।

शायद इसलिए की एनपीएमए एक बहुराष्ट्रीय कंसल्टेंसी संस्था है, जो केंद्र सरकार और लगभग सभी प्रदेश सरकार के विभिन्न “प्रोजेक्टों” पर कार्य कर रहे है। इनमे इतनी काबिलियत है की बिना काम किए या फिर बिना रिपोर्ट दिये या फालतू/फर्जी रिपोर्ट देकर एसएफ़एसी और कृषि मंत्रलाय से अपना पैसा निकलवा ले। एसएफ़एसी के अधिकारियों का एनपीएमए के इस खेल मे संलिप्त होने का क्या अर्थ है और इनका क्या स्वार्थ रहा होगा???