संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान ‘लाठी प्रदर्शन नहीं, वीरता की सीख देता है संघ’

Abhishek singh
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष की शुरुआत इंदौर में “स्वर शतकम्” आयोजन से हुई। इस कार्यक्रम में एक हजार से अधिक स्वयंसेवकों ने जयघोष का प्रदर्शन किया। इसके अलावा, स्वयंसेवकों ने सौ के अंक की आकार में मानव आकृति भी बनाई।

समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत भी उपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि संघ के कार्यक्रमों का उद्देश्य मनुष्य के अच्छे गुणों को बढ़ाना है। भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि संघ लाठी चलाना प्रदर्शन के लिए नहीं सिखाता, बल्कि यह एक कला है। लाठी चलाने से व्यक्ति में वीरता का विकास होता है और डर का अहसास समाप्त हो जाता है।

संघ में घोष दलों का इतिहास, संगीत और देशभक्ति का संयोजन

आरएसएस में घोष दलों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि सभी लोग संगीत के प्रेमी होते हैं, लेकिन सभी इसे साधना नहीं कर पाते। भारतीय संगीत में घोष दलों की परंपरा नहीं रही है। शुरुआत में संघ के स्वयंसेवकों ने नागपुर के कामठी केंटोनमेंट बोर्ड में सेना के वादकों की धुनों को सुनकर अभ्यास किया। संगीत वादन का भी देशभक्ति से गहरा संबंध है। अन्य देशों में भी देशभक्ति का प्रदर्शन संगीत के माध्यम से किया जाता है। हम दुनिया से पीछे न रहे, इसलिए हमने घोष दलों की उपयोगिता को समझा और संघ में इसकी शुरुआत की।

राष्ट्र निर्माण की दिशा में संघ का योगदान

संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि संघ के कार्यक्रम केवल प्रदर्शन के लिए नहीं होते। इन कार्यक्रमों के माध्यम से मनुष्य की संस्कृति, स्वभाव और संस्कार का निर्माण होता है। उन्होंने यह भी बताया कि इस जयघोष का प्रदर्शन इसलिए किया गया, ताकि समाज इसे समझे और उसकी जड़ तक पहुँच सके। भागवत ने कहा कि लोग राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से संघ से जुड़ते हैं, और अगर समाज में राष्ट्र निर्माण का भाव जागृत होता है, तो एक दिन पूरी दुनिया में सुख और शांति का युग आएगा।

समारोह के मुख्य अतिथि, लोक गीत कलाकार कालूराम बामनिया ने कहा कि कर्म सबसे महत्वपूर्ण है और हमें अपने कर्तव्यों को निभाना चाहिए। उन्होंने बताया कि कर्म ही इंसान को महान बनाता है। इस अवसर पर मंच पर मालवा प्रांत के सर संघ चालक प्रकाश शास्त्री और डॉ. मुकेश मोड़ भी उपस्थित थे।

45 मिनट तक घोष दल की प्रस्तुति में धुनों का संगम

मालवा प्रांत के 28 जिलों के स्वयंसेवकों ने बैंड, बांसुरी और ट्रंपेट पर विभिन्न धुनों का प्रदर्शन किया। बांसुरी पर “मेरी झोपड़ी के भाग खुल जाएंगे,” “राम आएंगे” और “नमः शिवाय” जैसे भजनों की धुन भी प्रस्तुत की गई। 45 मिनट तक चलने वाली धुनों की प्रस्तुति के बाद, वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए।