राजेश ज्वेल
कौन बनेगा इंदौर का महापौर. इसको लेकर संघ -भाजपा में मंथन जारी है. कांग्रेस का तो उम्मीदवार मैदान में उतर चुका है, मगर भाजपा में हर बार की तरह दिल्ली दरबार से ही अंतिम मोहर लगेगी. संघ समर्थित डॉ. निशांत खरे फिलहाल दौड़ में आगे बताए जा रहे हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का भी पूरा समर्थन है. आज मुख्यमंत्री दिल्ली जाकर अमित शाह सहित अन्य दिग्गजों से मुलाकात भी कर रहे हैं.घोषणा होने तक सोशल मीडिया और समाचार-पत्रों में अटकलबाजी जारी रहेगी. सूत्रों का कहना है कि संघ खरे के नाम पर पूरी तरह से सहमत है
वहीं विधायक रमेश मेंदोला सहित अन्य नामों पर पार्टी के साथ संघ में भी अलग नजरिया हैं. रमेश मेंदोला को जहां सबसे मजबूत उम्मीदवार बताया जा रहा है और यह बात सच भी है. मगर भाजपा- संघ की राजनीति को नजदीक से समझने वालों का कहना है कि गुटबाजी और कुछ अन्य विशेष कारणों के चलते मेंदोला जी की दावेदारी कमजोर पड़ जाती है. भोपाल से कृष्णा गौर के नाम को लेकर भी इसीलिए विरोध हो रहा है, क्योंकि अगर विधायक को टिकट दिया गया तो फिर यही क्राइट एरिया इंदौर में रमेश मेंदोला के लिए बनाया जाएगा.
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लिहाजा विधायकों को टिकट ना देने के पक्ष में मुख्यमंत्री भी सहमत हैं, क्योंकि अगले ही साल विधानसभा का चुनाव होना है, जिसमें मेंदोला जैसे मजबूत विधायकों को तो टिकट मिलेगा ही. हालांकि मेंदोला के साथ मंत्री पद को लेकर भी इसी तरह की कवायद हुई थी और सांवेर उपचुनाव तगड़े मतों से जिताने के चलते मेंदोला को मंत्री बनाए जाने का भी हल्ला खूब मचा मगर ऐन वक्त तक नाम चलने के बाद महू की विधायक उषा ठाकुर को मौका मिल गया. सिंधिया खेमे से तुलसीराम सिलावट का मंत्री पद तो पक्का था ही.
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जिस तरह मेंदोला लाख चाहकर भी मंत्री नहीं बन सके, उसी तरह संभव है कि महापौर का टिकट भी उनके हाथ से फिसल जाए. गौरव रणदिवे, सुदर्शन गुप्ता, गोलू शुक्ला, गोविंद मालू से लेकर अन्य नाम भी अंतिम दौड़ से लगभग बाहर बताए जा रहे हैं. अलबत्ता मनोज द्विवेदी, पुष्यमित्र भार्गव और डॉ. निशांत खरे जैसे नामों को ही तवज्जो देने की चर्चा है और उसमें फिलहाल डॉ. निशांत खरे दौड़ में सबसे आगे बताए जा रहे हैं. हालांकि संघ को थोड़ी-सी हिचक पहचान को लेकर थी.
हालांकि कोरोना काल और उसके बाद स्टार्टअप जैसे कई मामलों में उनकी सक्रियता रही है , साथ ही भाजपा को चूंकि सत्ता का फायदा मिलेगा , वहीं संगठन भी मजबूत है और फिर संघ अपने उम्मीदवार के लिए भी पूरी ताकत झोंक देगा. लिहाजा इस नेटवर्क का फायदा डॉ. खरे को मिलेगा. दूसरी तरफ इंदौर निगम के खाते में चूंकि 5 बार स्वच्छता में अव्वल आने से लेकर अन्य उपलब्धियां भी हैं, उसका पूरा लाभ भाजपा पार्षदों के साथ महापौर उम्मीदवार को भी अधिक फायदा होगा.
रही सेबोटेज की बात, तो अब ताई के चुनाव वाली स्थितियां नहीं है. उसके बाद तो गंगा में बहुत पानी बह गया और अब किसी भाजपाई की मजाल नहीं कि वह इस तरह सेबोटेज कर सके, क्योंकि आगे भी चुनाव लडऩे से लेकर तमाम फायदे हैं, क्योंकि देश-प्रदेश में सरकार तो भाजपा की ही है. कुल मिलाकर अंतिम घोषणा दिल्ली दरबार से मंजूरी के बाद ही होगी और मुख्यमंत्री एक बार फिर अपने सपनों के शहर इंदौर में अपनी पसंद का ही महापौर बनवाने में सफल रहेंगे!