‘ॐ नमः शिवाय’ — यह सिर्फ एक मंत्र नहीं, बल्कि भगवान शिव की आराधना का पंचाक्षरी महा-मंत्र है. हर शिवभक्त इसे सुबह-शाम श्रद्धा से जपता है. लेकिन हाल ही में प्रसिद्ध संत श्री प्रेमानंद जी महाराज का एक बयान चर्चा का विषय बन गया है. उन्होंने कहा है कि “हर कोई ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप नहीं कर सकता, और ना ही उसे करना चाहिए.” यह बात सुनकर कई भक्त हैरान हैं. आखिर क्यों एक सार्वभौमिक रूप से प्रसिद्ध और लोकप्रिय शिव मंत्र को लेकर ऐसा कहा गया? इसके पीछे की आध्यात्मिक व्याख्या जानना बेहद जरूरी है.
क्या कहा प्रेमानंद महाराज ने?
प्रेमानंद जी महाराज ने एक प्रवचन के दौरान स्पष्ट किया कि “‘ॐ नमः शिवाय’ एक बेहद शक्तिशाली और जाग्रत मंत्र है. यह मंत्र ब्रह्मांड की ऊर्जा को सीधे आकर्षित करता है. लेकिन हर साधक का मन, शरीर और चित्त उस ऊर्जा को संभालने के लिए तैयार नहीं होता.” उन्होंने कहा कि बिना उचित विधि, शुद्धता और गुरु की आज्ञा के इस मंत्र का अनियमित या गलत उच्चारण आध्यात्मिक असंतुलन पैदा कर सकता है.
क्यों नहीं करना चाहिए हर किसी को यह जाप?
ऊर्जा का असंतुलन: इस मंत्र से निकलने वाली शक्ति अत्यधिक सूक्ष्म और तेज होती है. अशुद्ध मन या विकृत मानसिकता इस ऊर्जा को सही दिशा में नहीं साध पाती, जिससे उल्टा प्रभाव पड़ सकता है.
गुरु दीक्षा का महत्व: प्रेमानंद जी मानते हैं कि शिव मंत्र की दीक्षा गुरु के माध्यम से होनी चाहिए, क्योंकि गुरु ही यह देख सकता है कि कौन साधक इस मंत्र को साधने योग्य है.
आध्यात्मिक अनुशासन जरूरी: यह मंत्र सिर्फ जप का माध्यम नहीं, बल्कि एक गहरी साधना का द्वार है, जो संयम, सात्त्विकता और तपस्या की मांग करता है.
क्या करें आम भक्त?
यदि आप सामान्य रूप से भगवान शिव की भक्ति करना चाहते हैं, तो प्रेमानंद जी ने “हर हर महादेव”, “शिव शिव”, या “शंकर शरणं” जैसे सरल मंत्रों के जप की सलाह दी है. ये मंत्र भी प्रभावी होते हैं और किसी विशेष दीक्षा की आवश्यकता नहीं होती.
संतों और शास्त्रों की क्या राय?
सनातन परंपरा में भी यह मान्यता है कि कुछ मंत्र गुरु मुख से ही प्राप्त करने योग्य होते हैं. विशेष रूप से बीज मंत्र या पंचाक्षरी मंत्र जैसे ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप अनुशासन और नियमों से जुड़ा हुआ होता है.