बाएं हाथ से प्रसाद लेना क्यों माना जाता हैं वर्जित? जानें क्या हैं इसके धार्मिक कारण

हिंदू धर्म में प्रसाद को दाहिने हाथ से ग्रहण करना शुभ और धार्मिक रूप से उचित माना गया है, क्योंकि यह हाथ सूर्य, शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। वहीं, बाएं हाथ को अशुद्ध माना जाता है, जिससे पूजा जैसे पवित्र कार्यों में इसका प्रयोग वर्जित है।

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हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक परंपराओं का विशेष महत्व होता है। इन्हीं परंपराओं में एक महत्वपूर्ण नियम यह भी है कि प्रसाद केवल दाहिने हाथ से ही ग्रहण किया जाना चाहिए। अक्सर लोग अनजाने में या जल्दबाजी में इस नियम का पालन नहीं करते, लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से यह नियम बहुत ही सार्थक और शक्तिशाली माना गया है।

प्रसाद को सिर्फ एक मिठाई या खाद्य सामग्री नहीं बल्कि भगवान का आशीर्वाद माना जाता है, इसलिए इसे प्राप्त करने का तरीका भी पवित्र और सम्मानपूर्ण होना चाहिए।

दाहिने हाथ का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

हिंदू मान्यताओं में दाहिना हाथ शुभता, सूर्य और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है। यही कारण है कि पूजा, हवन, आरती, दीप प्रज्वलन और भोग अर्पण जैसे सभी धार्मिक कार्य दाहिने हाथ से किए जाते हैं। जब कोई व्यक्ति भगवान का प्रसाद लेता है, तो यह क्रिया भी एक धार्मिक कृत्य मानी जाती है। दाहिने हाथ से प्रसाद ग्रहण करने का अर्थ है ईश्वर की कृपा को पवित्रता और श्रद्धा के साथ स्वीकार करना।

बायां हाथ क्यों माना जाता है अशुद्ध?

बाएं हाथ का उपयोग सामान्यतः शरीर की सफाई और निजी कार्यों में किया जाता है, जैसे शौच आदि। इसलिए हिंदू धर्म में इसे अशुद्ध और अनचाहा माना गया है। धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र कार्यों में बाएं हाथ का प्रयोग वर्जित माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति अनजाने में भी बाएं हाथ से प्रसाद ग्रहण करता है, तो यह धार्मिक नियमों के विरुद्ध माना जाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति पहले अपने हाथों को धोकर, भगवान को प्रणाम कर, फिर दाहिने हाथ से ही प्रसाद ले।

सूर्य और चंद्रमा से जुड़ा है ऊर्जा का सिद्धांत

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, दाहिना हाथ सूर्य और जीवनदायी ऊर्जा का प्रतीक है, जबकि बायां हाथ चंद्रमा और गुप्त ऊर्जा से जुड़ा होता है। पूजा-पाठ जैसे कार्यों में सकारात्मक और दिव्य ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो दाहिने हाथ से जुड़ी होती है। अतः जब आप दाहिने हाथ से प्रसाद लेते हैं, तो यह केवल एक परंपरा नहीं बल्कि ऊर्जा को सही रूप में आत्मसात करने का माध्यम होता है।

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