सावन का महीना आते ही देशभर में भगवान शिव की भक्ति का माहौल बन जाता है. खासकर सोमवार के दिन शिवभक्त व्रत रखते हैं और मंदिरों में बेलपत्र, जल, दूध और धतूरा चढ़ाया जाता है. लेकिन इस पूरे महीने में एक खास बात ये है कि कुंवारी लड़कियां सावन सोमवार के व्रत को बड़े श्रद्धा से करती हैं. सवाल यह उठता है कि आखिर लड़कियां ही इस व्रत को लेकर इतनी उत्साहित क्यों रहती हैं? इसके पीछे की वजह धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक तीनों ही दृष्टिकोण से बेहद दिलचस्प है.
क्या है सावन सोमवार व्रत की मान्यता?
हिंदू धर्म में भगवान शिव को आदर्श पति माना जाता है. देवी पार्वती ने उन्हें पाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तप और व्रत किया था. ऐसा कहा जाता है कि देवी पार्वती ने सावन में ही भगवान शिव को पाने का संकल्प लिया था और अंततः उन्हें शिव जैसा वर मिला. इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कुंवारी कन्याएं सावन के सोमवार को व्रत रखती हैं ताकि उन्हें भी शिव जैसा गुणवान, स्थिर और आदर्श जीवनसाथी मिले.
कैसे करती हैं लड़कियां ये व्रत?
सावन के हर सोमवार को निर्जला व्रत रखा जाता है या कुछ लोग फलाहार करते हैं. सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, और अक्षत चढ़ाकर पूजा की जाती है. इस व्रत में खासतौर पर “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करने और शिव पार्वती की कथा सुनने की परंपरा है.
क्या है वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक पहलू?
ये व्रत सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी गहरा होता है. जब कोई लड़की इस व्रत को पूरे विश्वास और श्रद्धा से करती है, तो उसमें आत्मनियंत्रण, आस्था और सकारात्मक सोच का विकास होता है. साथ ही, यह व्रत तनाव घटाने और मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है, जो रिश्तों के लिए जरूरी गुण हैं.
आज के दौर में क्या है इसका महत्व?
आधुनिक समाज में जहां रिश्ते जल्दी बनते और जल्दी बिगड़ते हैं, वहीं ऐसे व्रत लड़कियों को धैर्य, प्रतिबद्धता और एक स्थिर सोच सिखाते हैं. यही कारण है कि आज की पढ़ी-लिखी लड़कियां भी इस परंपरा को निभा रही हैं, और अपने सपनों जैसा जीवनसाथी पाने की कामना के साथ यह व्रत रखती हैं.