सावन का महीना जैसे ही आता है, हर ओर हरियाली, बारिश और भक्ति का माहौल बन जाता है. मंदिरों में गूंजते ‘बोल बम’ के जयकारे, हरे रंग की चूड़ियों से सजी महिलाएं, और गांवों-शहरों में झूलों की रौनक — यह सब सावन की पहचान बन जाता है.
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि महिलाएं सावन में झूला क्यों झूलती हैं? ये सिर्फ मस्ती या परंपरा नहीं, बल्कि इसके पीछे हैं गहरे सांस्कृतिक, धार्मिक और मानसिक कारण.
महिलाएं सावन में झूला क्यों झूलती हैं?

1. मां पार्वती और शिव से जुड़ी पौराणिक कथा- सावन मास को शिव और पार्वती के पुनर्मिलन का महीना माना जाता है. लोककथाओं के अनुसार, इस महीने में मां पार्वती ने कठोर तप कर शिवजी को पाया था. कहा जाता है कि मां पार्वती अपनी सखियों के संग झूला झूलती थीं और यही परंपरा कन्याओं और विवाहित महिलाओं द्वारा झूला झूलने में बदल गई.
2. सावन का झूला – स्त्रियों की आजादी और उल्लास का प्रतीक पुराने समय में महिलाएं सालभर घरेलू जिम्मेदारियों में बंधी रहती थीं. सावन के महीने में उन्हें सखियों संग मिलने, गीत गाने और झूला झूलने का अवसर मिलता था. यह समय होता था मन की खुशी, मेलजोल और आत्मिक ऊर्जा बढ़ाने का.
3. मानसिक तनाव कम करता है झूला झूलना- विज्ञान भी मानता है कि झूला झूलने से शरीर में डोपामिन और एंडोर्फिन नामक हार्मोन रिलीज़ होते हैं, जो मन को प्रसन्न रखते हैं. बरसात और उमस भरे माहौल में झूला झूलना शरीर को हल्का और ताजगी भरा महसूस कराता है.
4. प्रकृति से जुड़ने का अवसर- सावन हरियाली और वर्षा का मौसम है. पेड़ों पर लगे झूले, कच्ची मिट्टी की महक और खुला आसमान — यह सब महिलाओं को प्रकृति के और करीब लाता है. झूला झूलते समय स्त्रियां पारंपरिक गीत गाती हैं जो मौसम, प्रेम, विरह और भक्ति से जुड़े होते हैं.
5. स्वास्थ्य और फिटनेस से जुड़ा पक्ष- झूला झूलना केवल खेल नहीं, बल्कि एक प्रकार का हल्का व्यायाम भी है. इससे रीढ़ की हड्डी में लचीलापन, पेट की मांसपेशियों में हलचल और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है.
6. श्रृंगार और सांस्कृतिक सौंदर्य का उत्सव- सावन में महिलाएं हरी चूड़ियां, हरी साड़ियां, मेहंदी और फूलों का गजरा पहनती हैं. झूला झूलना इन सभी श्रृंगारों के साथ एक समर्पण, आस्था और आत्म-सुख का अनुभव होता है.
7. व्रत और भक्ति के बीच उल्लास- सावन में महिलाएं सोमवार व्रत, मंगला गौरी व्रत आदि करती हैं। इन कठिन नियमों के बीच झूला झूलना उन्हें उत्साह और आनंद का भाव देता है. यह भक्ति और आनंद का संतुलन बनाने में मदद करता है.