सावन सोमवार को इस खास समय पर करें रुद्राष्टक का पाठ, कंगाली होगी दूर

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By Pinal PatidarPublished On: July 20, 2021
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सावन का महीना 25 जुलाई 2021 से शुरू हो रहा है। श्रावण मास भगवान महादेव को बेहद प्रिय होता है। हालांकि इस महीने में विवाह, मुंडन और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य तो स्थगित रहते हैं परंतु इसके बावजूद सावन मास में धार्मिक कृत्य होते रहते हैं। सावन का महीना हिंदू धर्म में सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने में भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती है। साथ ही इस महीने में भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

सावन सोमवार को इस खास समय पर करें रुद्राष्टक का पाठ, कंगाली होगी दूर

माना जाता है। सावन के हर दिन भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। सावन में भोलेनाथ अपने हर भक्त से प्रसन्न रहते हैं। शास्‍त्रों के मुताबिक सोमवार को पहला सावन सोमवार हैं और यह दिन भगवान शिव को समर्पित है। भोलेनाथ को खुश करने के लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती बल्कि केवल एक खास स्तोत्र का पाठ करने से आप भगवान शिव को शांत और खुश कर सकते हैं।

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इस स्त्रोत के पाठ से भगवान शिव भक्तों की सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी करते हैं और कहा जाता है कोई भी जातक अगर भगवान शिव का ध्यान करते हुए रामचरित मानस से लिए गए निम्न लयात्मक स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है, तो वह शिव जी की कृपा का पात्र बन जाता है।

सावन सोमवार को इस खास समय पर करें रुद्राष्टक का पाठ, कंगाली होगी दूर

रुद्राष्टक का करें पाठ

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌ ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌ ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌ ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्‌ ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌ ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्‌ ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्‌ ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्‌ ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।

॥ इति श्रीगोस्वामीतुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥