हिंदू पंचांग में भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसे जलझूली एकादशी या डोल ग्यारस भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में शयन अवस्था में करवट बदलते हैं और देवशयनी काल का नया अध्याय आरंभ होता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के अनेक जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सुख-समृद्धि, धन-धान्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
विशेषकर जिनके जीवन में अशांति और अस्थिरता बनी रहती है, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत के साथ दान-पुण्य करना अनिवार्य है क्योंकि यही व्रत को पूर्णता प्रदान करता है।
दान का महत्व
धर्मशास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि “दानं पुण्यस्य कारणम्” अर्थात दान ही पुण्य का मूल कारण है। एकादशी व्रत के पारण के बाद जब व्रती दान करता है, तभी उसका व्रत संपूर्ण माना जाता है। विभिन्न प्रकार के दानों के अलग-अलग फल बताए गए हैं, जो न केवल सांसारिक जीवन को सुखमय बनाते हैं बल्कि आत्मा को शांति और मुक्ति भी प्रदान करते हैं।
अन्न दान
परिवर्तिनी एकादशी पर भूखों, साधु-संतों और जरूरतमंदों को अन्न दान करना सबसे श्रेष्ठ माना गया है। महाभारत और पद्म पुराण में वर्णन मिलता है कि अन्न दान करने वाला व्यक्ति इस लोक और परलोक दोनों में सुख प्राप्त करता है। इस दान का फल है – दरिद्रता का नाश, घर में अन्न की भरपूरता और अकाल जैसी विपत्तियों से रक्षा।
वस्त्र दान
गरीबों, असहाय लोगों या ब्राह्मणों को वस्त्र दान करना भी इस दिन अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि इससे पितृदोष शांत होता है और ग्रहों के दुष्प्रभाव कम होते हैं। वस्त्र दान न केवल पापों का नाश करता है बल्कि व्यक्ति के जीवन में सुख, स्वास्थ्य और आत्मबल की वृद्धि भी करता है।
स्वर्ण-रजत दान
शास्त्रों में स्वर्ण और रजत दान को अक्षय दान कहा गया है। यह दान इतना पुण्यकारी है कि इससे धन-धान्य की वृद्धि, यश, मान-सम्मान और लक्ष्मी कृपा सदैव बनी रहती है। ऐसे लोग जिनके जीवन में आर्थिक अस्थिरता रहती है, उनके लिए यह दान विशेष रूप से लाभकारी माना गया है।
धूप-दीप, पात्र और शैय्या दान
विष्णु पुराण में उल्लेख है कि दीप, धूप, पात्र या शैय्या (बिस्तर) का दान करने वाला व्यक्ति स्वर्गलोक का अधिकारी बनता है। विशेषकर शैय्या दान से मृत आत्मा को शांति प्राप्त होती है और पितरों की तृप्ति होती है। इसका फल है मोक्ष और आत्मा की मुक्ति।
भूमि दान
धर्मशास्त्रों में भूमि दान को सबसे बड़ा और महान दान बताया गया है। इसका प्रभाव जन्म-जन्मांतर तक रहता है और यह सभी पापों का नाश कर देता है। यदि भूमि दान संभव न हो तो खेती योग्य भूमि में बीज या पौधे बोने का दान भी उतना ही शुभ फलदायी माना जाता है। यह दान मनुष्य को स्थायी पुण्य का अधिकारी बनाता है।
जलपात्र या घड़ा दान
मिट्टी का घड़ा यानी मटका जल और जीवन का प्रतीक माना गया है। परिवर्तिनी एकादशी पर लाल कपड़े में लपेटकर घड़ा दान करना विशेष शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह दान जीवन में स्थिरता लाता है, मानसिक तनाव और पारिवारिक कलह को दूर करता है। लोक मान्यता है कि इस दान से घर में जल की तरह सुख-समृद्धि और शांति का प्रवाह सदैव बना रहता है।
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