घर में मंदिर बनाने से पहले जान लें ये जरूरी बातें, वास्तु के इन उपायों से मिलेगा शुभ फल

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By Swati BisenPublished On: July 24, 2025
Vastu Tips

वास्तु शास्त्र में घर में मंदिर की स्थापना को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि यह न सिर्फ ईश्वर से जुड़ाव बढ़ाता है, बल्कि घर में सकारात्मक ऊर्जा के संचार में भी मदद करता है। वास्तु के अनुसार, मंदिर के लिए उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण सबसे उत्तम मानी जाती है।

यह दिशा देवताओं की मानी जाती है, और यहां मंदिर रखने से पूरे घर में सुख-शांति और सौभाग्य का वास होता है। मंदिर का मुख यानी द्वार पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए, ताकि पूजा करते समय सूर्य की ऊर्जा सीधे मंदिर तक पहुंचे।

पूजा के समय दिशा का विशेष महत्व

जब हम ईश्वर की आराधना करते हैं, तो केवल भावनाएं ही नहीं बल्कि दिशा भी विशेष मायने रखती है। पूजा करते समय व्यक्ति का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। यह साधारण नियम है जो मानसिक एकाग्रता और सकारात्मक ऊर्जा के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में जातक की जन्म कुंडली और अष्टकवर्ग के अनुसार उपयुक्त दिशा तय की जा सकती है। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उग्र देवताओं की मूर्तियां मंदिर में दक्षिण दिशा की ओर स्थापित की जाएं।

मंदिर कहां न बनाएं? जानिए कुछ जरूरी सावधानियां

मंदिर की स्थापना के साथ-साथ कुछ नियमों का पालन न करना नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। पूजा स्थान को कभी भी रसोई के स्लैब पर, बेडरूम के भीतर या ऐसी दीवार से सटा कर नहीं बनाना चाहिए जो बाथरूम से जुड़ी हो। पूजा स्थान और टॉयलेट का दरवाजा आमने-सामने नहीं होना चाहिए। इससे घर की ऊर्जा बाधित होती है।

मूर्तियों से जुड़ी वास्तु नियमावली

घर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों की ऊंचाई दो से दस इंच के बीच होनी चाहिए। एक ही भगवान की दो मूर्तियां एक साथ मंदिर में नहीं रखनी चाहिए और त्रिकोणीय या खंडित मूर्तियों का प्रयोग न करें। मंदिर में केवल वही मूर्ति रखें जिसे विधिवत प्रतिष्ठित किया गया हो, कहीं से उठाकर लाई गई मूर्ति नहीं। साथ ही मूर्तियों को आमने-सामने न रखें। हां, दीवारों पर भगवान के कैलेंडर या तस्वीरें आमने-सामने हो सकती हैं।

घर के प्रवेश द्वार पर गणेश जी की मूर्ति कैसे लगाएं?

घर के मुख्य दरवाजे पर गणेश जी की दो मूर्तियां इस प्रकार लगानी चाहिए कि उनका मुख बाहर की ओर हो और उनकी पीठ घर की तरफ न हो। ऐसा माना जाता है कि गणेश जी की पीठ पाताल लोक की ओर संकेत करती है, जबकि मुख से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है। इसलिए ‘बैक टू बैक’ गणेश जी की स्थापना करनी चाहिए, जिससे घर के भीतर और बाहर दोनों दिशाओं में सकारात्मकता का संचार हो सके।

पूजा की शुद्धता और व्यक्तिगत स्वच्छता का महत्व

मंदिर में प्रवेश करने से पहले शरीर की शुद्धता का ध्यान रखना आवश्यक है। यदि पूर्ण स्नान संभव न हो, तो कम से कम पैर अवश्य धोने चाहिए। सीधे हाथ से जल डालें और बाएं हाथ से पैर धोकर पहले एड़ी और फिर पंजा साफ करें। अंत में सिर पर जल छिड़कें, जिससे शरीर मानसिक व आध्यात्मिक रूप से पवित्र हो जाए।

मंदिर में क्या रखें और क्या नहीं?

पूजा के स्थान पर केवल पूजा की आवश्यक सामग्री ही रखें। अनावश्यक वस्तुएं जैसे अनपढ़ी पुस्तकें, कपड़े, या अन्य वस्तुएं नहीं होनी चाहिए। यदि धार्मिक पुस्तकें मंदिर में रखी गई हैं तो उन्हें भी ईशान कोण में ही रखें। पूजा सामग्री के लिए तांबे का पात्र सर्वोत्तम होता है, और यदि उपलब्ध न हो तो स्टील का उपयोग किया जा सकता है।

रंग और वातावरण का विशेष प्रभाव

मंदिर के वातावरण को शांतिपूर्ण और सात्विक बनाए रखने के लिए रंगों का चयन भी सोच-समझकर करें। दीवारों का रंग हल्का नीला या हल्का पीला होना चाहिए, जो मानसिक शांति को बढ़ावा देता है। मंदिर में प्रयुक्त पत्थर सफेद रंग का हो तो वह और भी शुभ माना जाता है। साथ ही मंदिर के पास अलमारी हो तो उसे दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखें।

पूर्वजों की तस्वीरें कहां लगाएं?

घर में पितरों की तस्वीरें लगाने के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यदि यह दिशा उपलब्ध न हो, तो दक्षिण दिशा में भी तस्वीरें लगाई जा सकती हैं। पूर्वजों की फोटो को पूजा स्थान में न रखें, बल्कि उन्हें अलग स्थान पर सम्मानपूर्वक लगाएं।


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