भारत के युवा चेस खिलाड़ीयों में रमेशबाबू प्रज्ञानानंद का नाम सबसे ऊपर आता है। जो चेस गेम के मास्टरमाइंड माने जाते है। उन्होंने चेस में दुनिया भर में अपना नाम प्रसिद्ध किया है। रमेशबाबू ने इस क्लासिकल चेस में इतिहास रच दिया है। 18 वर्षीय भारतीय ने विश्व के नंबर 1 खिलाड़ी के शुरुआती विकल्प और कैंसल न करने के निर्णय के बाद राउंड 3 नॉर्वे शतरंज स्टैंडिंग में बढ़त हासिल की। 18 वर्षीय आर प्रज्ञानानंद की पांच बार के विश्व चौंपियन मैग्नस कार्लसन पर पहली क्लासिकल जीत दर्ज की हैं।
कार्लसन : ‘इन खिलाड़ियों को हराने के लिए अपना सर्वश्रेठ प्रदर्शन करना होगा’
यह जीत नॉर्वे के दक्षिण-पश्चिमी बंदरगाह शहर स्टावेंजर में नॉर्वे शतरंज के राउंड 3 में आई और कार्लसन अंतिम क्षणों में अपनी हथेली को अपने माथे पर दबाए बैठे थे, जबकि भारतीय खिलाड़ी बिजनेस सूट पहने और संतुष्ट मुस्कान के साथ अपनी कुर्सी पर घूम रहे थे। शास्त्रीय प्रारूप में, प्रज्ञानानंद ने अपने नवीनतम परिणाम से पहले कार्लसन के खिलाफ तीन ड्रॉ और एक हार का सामना किया था। कार्लसन ने कहा कि मुझे लगता है मेरे पास इस स्तर पर पर्याप्त अनुभव है। मुझे इन खिलाड़ियों को हराने के लिए अपना सर्वश्रेठ प्रदर्शन करना होगा।
प्रज्ञानानंद 10 वर्ष में चेस के इंटरनेशनल मास्टर…
कार्लसन को इस बार टूर्नामेंट की शुरुआत में हार का सामना करना पड़ा। प्रज्ञानंद अब ओपन स्टैंडिंग में सबसे आगे हैं, जबकि उनकी बहन वैशाली तीन राउंड के बाद महिला वर्ग में शीर्ष पर हैं। हार हो या जीत। प्रज्ञानंद ने अपनी किशोरावस्था से आगे की बुद्धिमानी को बताते हुए कहा, ‘मैं कोशिश करता हूं, लेकिन कभी-कभी संघर्ष करता हूं। प्रज्ञानानंद अपनी 10 वर्ष की आयु में चेस गेम्स के इंटरनेशनल मास्टर बन गए और ऐसा करने वाले वह उस समय सबसे कम उम्र के थे। दिग्गज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद ने ही उनका मार्गदर्शन किया है। वहीं 12 साल की उम्र में प्रज्ञानानंद ग्रेंडमास्टर बने।