सियासत ने समाज में पैदा किया ऐसा समाज, जो दिलों में नफ़रत लिए फिरता – अन्ना दुराई

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अन्ना दुराई। वाक़ई अहले सियासत ने आज समाज में एक वर्ग ऐसा पैदा कर दिया है जो हमेशा अपने दिलों में नफ़रत लिए फिरता है। यह वर्ग धीरे धीरे इतना कट्टर हो चला है कि यदि उनसे भाईचारे की बात करो तो वह बात करने वालों की ही हँसी उड़ा देता है। समाज में इन दिनों ऐसे स्लीपर सेलों की तादाद बढ़ती जा रही है जिन्हें यह पता नहीं होता कि वे कितना बड़ा गुनाह कर रहे हैं। जैसे जैसे चुनाव नज़दीक आते हैं, सोशल मीडिया पर नफ़रत भरे संदेशों की बाढ़ सी आ जाती है। ये संदेश आपके या हमारे द्वारा गढ़े गए नहीं होते। ऐसे संदेश सियासत की फै़क्ट्री से बनकर निकलते हैं, धीरे धीरे आगे बढ़ते हैं और फिर नासमझ स्लीपर सेलों की मदद से पूरे देश में तेज़ी से फैल जाते हैं।

दिल में नफरतें हैं
जुबां से बातें प्यारी प्यारी करते हैं,
इस शहर के कुछ लोग भी
क्या ख़ूब अदाकारी करते हैं…

देश की गलत चिंता भी सही नहीं

हमारे यहाँ गन्दा बोलने वाले को सजा का प्रावधान है लेकिन ख़ामोशी से गंदगी फैलाने वाले बेख़ौफ़ नज़र आते हैं। ऐसा करने वालों की सोचने समझने की शक्ति ही ख़त्म हो जाती है। उन्हें ऐसा लगने लगता है कि जो वे कर रहे हैं उसी में देश की भलाई है। कोई उन्हें ग़लत करने से रोके तो वे रोकने वाले को ही कोसने लग जाते हैं। बग़ैर पड़ताल के झूठे और नफ़रत भरे संदेशों को आगे बढ़ाने में अपनी शान समझते हैं। अपने बाल बच्चों की चिंता हो ना हो, ये हमेशा देश की चिंता में डूबे रहते हैं।

देश की चिंता ग़लत नहीं हैं लेकिन ग़लत चिंता भी सही नहीं हैं। उनसे तर्क करने जाओ तो झूठे सन्देशों की आड़ लेकर आप पर ही हावी हो जाते हैं। स्वयं को ज्ञानी और दूसरों को अज्ञानी समझते हैं। ख़ुद डरते हैं और दूसरों को भी डराते हैं कि मानों पता नहीं क्या क्या हो जाएगा। आज वातावरण ऐसा बन गया है कि नफ़रत की बात करो तो अच्छाई नज़र आती है लेकिन गलती से यदि कोई प्यार की बात कर ले तो उसे बुरा करार दिया जाता है। सोचने का विषय तो है।

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इन दिनों राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मध्य प्रदेश में हैं। नफ़रत के ख़िलाफ़ वातावरण निर्मित करने के लिए क़दमताल कर रही है इसलिए ऐसे मुद्दे पर चर्चा और भी लाज़मी है। वैसे शासन प्रशासन के लिए तो यह बाएँ हाथ का खेल है जिस दिन वो ठान ले ऐसे स्लीपर सेलों पर लगाम अपने आप लग सकती है। चौराहे पर यदि एक जवान खड़ा हो तो यातायात नियंत्रित रूप से चलने लगता है, ठीक ऐसे ही आज सोशल मीडिया पर भी ऐसे ही जवानों की ज़रूरत है जो स्लीपर सेलों को झूठा प्रचार करने या नफ़रत फैलाने से रोक सकें।

शाखें तराशने से ना बनेगी कोई बात,
नफ़रत के सारे पेड़ जड़ों से उखाड़ दो….