ऐसी दीवानगी देखी नहीं कभी

Deepak Meena
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कल 1 नम्बर विधान सभा से सम्बंधित भाजपा प्रत्याशी का नाम घोषित होते ही लगभग 50 व्हाट्सएप ग्रुप्स की फिंगर टच स्क्रीनिंग करने के बाद जो मीडिया की राजनेताओ के प्रति दीवानगी को जैसा देखा, पढा और महसूस किया उससे यह तो साबित हो गया कि, अपना भारतीय मीडिया राजनेताओ और राजनीति के बिना लगभग शून्य है।

कभी कभी लगता है राजनेताओ को अब मीडिया की उतनी जरूरत नही है, जितनी राजनीति और राजनैतिक क्षत्रपों की जरूरत अपने मीडिया को है। आखिर वो दिन कब आएगा, जब मीडिया में राजनेताओ और राजनीति की खबरे 3 नम्बर पेज के बाद के पन्नो पर होंगी। टीवी पर 24 घण्टे राजनीति की बजाय सामाजिक सरकारों से सम्बंधित खबरे दिखाई जायँगी।

जितना इंटरेस्ट यानी जितनी तलब हम इन नेताओं और राजनीति में रखते है और कई बार तो आपसी सम्बन्धो को तिलांजली तक दे चुके होते है। काश….काश….इतनी ही शिद्दत से अगर हम चर्चा या सकारात्मक बहस अपने शहर, अपने प्रदेश और अपने देश मे लगातार बढते अपराधों के ग्राफ पर करते। देश से लेकर प्रदेश पर हर पल बढ़ते कर्ज पर बहस करते । देश की बढ़ती आबादी के साथ, औद्योगिक क्षेत्रो के विकास और हर साल बढ़ती सेंकडो रहवासी कालोनीयो बहुमंजिला इमारतों के चलते लगातार घटते कृषि भूमि के रकबे के बारे में सोचते।

हर साल सिकुड़ते वन्य क्षेत्रो के कारणों पर स्वस्थ बहस करते। हर दिन हर पल देश पर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है आखिर कार इसका अंतिमअंजाम क्या होगा, इस पर मंथन कर चर्चा करते। जहरीला जातिवाद अलगाववाद लगातार बढ़ रहा है। अंदर ही अंदर सामाजिक मर्यादाओं नैतिकताओं की टूटन में हद से ज्यादा बढोत्तरी हो रही है। संस्कारो का स्खलन और रिसाव जारी है। कोटा की कोचिंग क्लासों में हर माह इतने बच्चे आत्महत्या क्यो कर रहे है। आखिरकार परिवार सहित लोग सामूहिक खुदकुशी क्यो कर रहे है। स्कूल कॉलेज और, डॉक्टर की फीस लगातार क्यो बढ़ रही है। शिक्षा और इलाज इतना महंगा क्यो हो रहा है। सरकारी स्कूल, कॉलेज,अस्पतालों का स्तर क्यो नही सुधर रहा है।

आखिर राजनेताओ और व्यापारियों और पूंजीपतियों के बच्चे कभी सेना में क्यो नही जाते। आख़िरदेश की सुरक्षा की जिम्मेदारी गरीब और मध्यम परिवार पर ही क्यो। सँविधान में सभी जाती के गरीबो के लिए समान व्यवस्था क्यो नही है कुछ विशेष जातियों के गरीबो पर ही सरकारी खजानो की मेहरबानी क्यो। आखिरकार गुंडे बदमाशो बलात्कारीयो अशिक्षितो अनपढों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध क्यों नही लगता। इन सभी मुद्दों पर हम व्हाट्स ग्रुप पर चर्चा क्यो नही करते। आखिर इन ज्वलंत मुद्दों पर हम कभी उतनी जिज्ञासा क्यो नही दिखाते या, इन मुद्दों पर उतनी चर्चा अथवा बहस क्यो नही करते जितनी चर्चा हम उन नेताओं के बारे में करते है जो पांच साल में 1 बार याद करने के अलावा कभी भूले से भी याद नही करते।

चुनाव के बाद जिनका हम से कंही से कंही तक कोई भी सरोकार नही है। अक्सर नजर आता है कि हर मीडिया से सम्बंधित व्हाट्सएप ग्रुप में तो हर राजनीतिक दल के नेता होते है मगर कभी भी किसी पार्षदों के व्हाट्सएप ग्रुप से लेकर विधायको अथवा सांसदों ,मंत्रियों या राजनीतिक संगठनों के सोशल मीडिया व्हाट्सएप ग्रुप में किसी मीडिया वालों की मौजूदगी नही होती। कभी नेताओ को मीडिया वालों को अपने व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल करते देखा या सुना है क्या। नही न.. तो फिर सबसे ज्यादा हमारी चर्चा और बहस का मुद्दा अथवा विषय , यह निगोड़ी राजनीति और यह नेता ही क्यो। जिस दिन हम राजनीतिक दलों और राज नेताओ को छोड़ कर जन जीवन से जुड़े, आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर चिंतन- मनन कर के नेताओ पर बहस करने की बजाय नेताओ अथवा जन प्रतिनिधियों से सवाल जवाब करने लगेंगे उस दिन से हमारे राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्रों में हम और हमारे असली मुद्दे मौजूद हुआ करेंगे।@ एक मीडिया कर्मी