Navratri 2023 : इन मंदिरों में आज भी होती है तंत्र साधना, दर्शन मात्र से ही दूर हो जाती है सभी परेशानियां

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जैसा की हम सभी जानते है कि चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। आज दुनियाभर में भक्त मां की आराधना में लीन दिखाई दे रहे हैं। भक्त शक्तिपीठों में जाकर मां से शक्ति और भक्ति की विनती कर रहे हैं। ऐसा ही एक शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के आगर मालवा में भी है। जिले के नलखेड़ा में मां बगलामुखी शक्तिपीठ है। यह शक्तिपीठ चारों ओर से श्मशान से घिरा हुआ है। ऐसी हिंदू मान्यता है कि मां का आशीर्वाद मिलने के बाद किसी भी प्रकार का शत्रु उनके भक्‍तों के आस पास भी नहीं फटकता हैं।

 

उज्जैन के विश्वप्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर से लगभग सौ किलोमीटर दूर ईशान कोण में आगर मालवा जिला है। जिला मुख्‍यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर नलखेडा में लखुन्दर नदी के तट पर पूर्वी दिशा में स्थित है मां बगलामुखी। मंदिर के लिए नजदीकी हवाई मार्ग इंदौर है। इसकी दूरी उज्जैन से होते हुए आने पर 160 किमी पड़ती है। इसके अतिरिक्त नलखेड़ा पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन उज्जैन का है। यहां से मंदिर की दूरी 100 किमी है। आगर मालवा जिला इंदौर और उज्जैन के अतिरिक्त भोपाल, कोटा और अन्य शहरों से भी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।

 कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने करने के लिए कहा था. उस वक्त मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजित थी. पांडवो ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपत्तियों से मुक्ति पाई और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया.

वैसे नवरात्रि में मां बगलामुखी के मंदिर का महत्व काफी ज्यादा बढ़ जाता है। यहां हवन करने से शत्रुओं पर विजयी प्राप्‍त होती है, और साधक के जीवन की समस्त बाधाएं दूर होती हैं। संभवतः भारत में यह एकमात्र ऐसा अद्भुत मंदिर है, जहां माता की स्वयंभू मूर्ति में तीन देवियां समाहित हैं। मध्य में माता बगलामुखी, दाएं भाग में मां लक्ष्मी और बाएं भाग में मां सरस्वती विराजित हैं। माता बगलामुखी को महारुद्र (मृत्युंजय शिव) की मूल शक्ति के रूप में जाना जाता है। प्राचीन काल में यहां बगावत नाम का गांव हुआ करता था। यह विश्व शक्ति पीठ के रूप में भी काफी प्रसिद्ध है।

 मां बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं मिलता. लेकिन, किवंदिती है कि यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है. काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है. प्राण तोषिणी, तंत्र विद्या पर आधारित एक पुस्तक है. इसमें मां बगलामुखी की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है. कहा जाता है कि सतयुग में एक ऐसा विनाशकारी तूफान आया, जिसमें सम्पूर्ण विश्व का नाश करने की क्षमता थी. इस तूफान को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने सौराष्ट्र क्षेत्र में हरिद्रा सरोवर के पास तपस्या की. उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर चतुर्दशी तिथि को माता बगलामुखी प्रकट हुईं और उस विनाशकारी तूफान से विश्व की रक्षा की.

आपको बता दें, चुनावों के समय भी मां बगलामुखी की विशेष पूजा आराधनाकी जाती हैं। यहां पर बड़े-बडे़ नेता और उनके परिजन मंदिर में माथा टेकते और हवन करते हुए सरलता से देखे जा सकते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि उनकी श्रद्धा के अनुसार न सिर्फ उन्हें टिकट मिलता है, बल्कि वे चुनाव भी जीत जाते हैं। इसके अतिरिक्त व्यवसाय, चुनाव, कोर्ट कचहरी के मामले में विजय प्राप्त करने और अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए लोग देश के कोने-कोने से यहां माथा टेकने आते हैं।

माता बगलामुखी नलखेड़ा की कथा एवं पूजा विधि, कैसे पहुंचे | MATA BAGULAMUKHI NALKHEDA KI PUJA VIDHI,

यहां पर हमने बड़े ही अद्भुत और आलौकिक मंदिर के विषय में बात की जहां देवी मां अपने भक्तों पर दया कर उन्हें अपना आशीर्वाद और वरदान देती हैं। जिससे भक्तों में माता को लेकर इस अद्भुत मंदिर में एक अनोखी ही भक्ति देखने को मिला हैं।

उज्जैन का विश्व प्रसिद्ध गढ़कालिका देवी मंदिर

 

इस मंदिर को लेकर हिन्दू धर्म के अनुसार यह मान्यता है कि जहां-जहां सती देवी के शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। यह शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए है। उन्ही शक्तिपीठों में से एक उज्जैन नगरी में स्थित गढकालिका धाम जहां महाकवि और नाटककार कालिदास को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

महाकवि कालिदास की आराध्य देवी है मां 'गढ़कालिका', दशहरे के दिन बटता है नींबू का प्रसाद | Ujjain Mother Gadkalika is adorable goddess of great poet Kalidas on day of Dussehra lemon

वैसे तो संपूर्ण उज्जैन क्षेत्र ही तंत्र साधकों और सिद्धियों के लिए गढ़ माना जाता है लेकिन यहां का गढ़ कालिका इसके लिए विश्व प्रसिद्ध है। नवरात्रि के दिनों में यहां देशभर से कई साधक तंत्र और मंत्र की साधना के लिए आते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। इसलिए तांत्रिकों और तंत्र साधकों के लिए भी उज्जैन एक महत्वपूर्ण और प्रमुख तीर्थ माना गया है।

यहां पर देवी मां काली को कपड़े के नरमुंड चढ़ाए जाते हैं

Tarun Solanki on Twitter: "Without her you can't be profound in anything Shri Gadkalika Mata at Gadkalika Temple, Ujjain....Jai Mata Di 🌺🙏 https://t.co/ppcpqqPFTv" / Twitter

गढ़कालिका का मंदिर शक्तिपीठ में सम्मिलित नहीं है, परंतु उज्जैन क्षेत्र में मां हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस क्षेत्र का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यता है कि आज भी यहां कपड़े के बनाए गए नरमुंड चढ़ाए जाते हैं और प्रसाद के रूप में दशहरे के दिन नींबू बांटा जाता है। मान्यता है कि घर में ये नींबू रखने से सुख शांति बनी रहती है। इस मंदिर में तांत्रिक क्रिया के लिए कई तांत्रिक मंदिर में आते हैं। इन नौ दिनों में माता कालिका अपने भक्तों को अलग-अलग रूपों में दर्शन देती हैं।