हिस्से का आसमाँ

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By Shraddha PancholiPublished On: June 16, 2022

चाहते बड़ी थीं
हिस्से का आसमाँ छोटा
बहुत चाहा
समेट लूँ हसरतों को
बिखरने से पहले
क्योंकि हकीकत की
ज़मी बहुत ही
पथरीली है
वो नहीं देखती
कोमल भाव या
आँखों के कोर को
हाँ समेट जरूर लेती है
अपनी खुरदरी
आँचल में ।
और फिर
एक पुख्ता आसरा
मिल जाता है टूटती
चाहतों को
एक बार फिर वो
तैयार होती है
नई जमीन पर पनपने
के लिए
और फिर वज़ह मिल
जाती है जिंदगी को
जीने के लिए।

डॉ श्वेता दीप्ति
काठमांडू, नेपाल