इंदौर में असफल ऑपरेशन सूरत..भाजपाई भी भौंचक, लालवानी अलग नुकसान में..दागदार रहेंगी जीत

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By Deepak MeenaPublished On: April 30, 2024

भाजपा के मजबूत गढ़ इंदौर में ऐसी क्या मजबूरी थी जिसके चलते कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय बम का नामांकन फॉर्म वापस करवाते हुए भगवा दुपट्टा ओढ़ाया..? भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी की जीत पहले दिन से सुनिश्चित थी और चर्चा सिर्फ ये थीं कि कितने मतों से जीतने का रिकॉर्ड बनेगा… दरअसल ये पूरी कवायद इंदौर में ऑपरेशन सूरत दोहरा कर दिल्ली दरबार में नम्बर बढ़वाने की थीं मगर अक्षय बम के अलावा कुछ ही उम्मीदवारों ने नाम वापस लिए…

चूंकि कामरेड और संघ के पूर्व प्रचारक से नामांकन वापस करवाने में सफलता नहीं मिल सकी , नतीजतन भाजपा उम्मीदवार को सूरत की तर्ज पर निर्विरोध जितवाने का दांव धरा रह गया और 13 उम्मीदवार मैदान में बच गए… दूसरी तरफ लालवानी का फायदा होने की बजाय उल्टा नुकसान हो गया, क्योंकि अब वे भले ही कितने लाख मतों से चुनाव जीतें, उनकी जीत चमकदार नहीं बल्कि दागदार होकर इंदौर के चुनावी इतिहास में इसी रूप में दर्ज हो जायेगी… इसकी बजाय वे अगर कांग्रेस उम्मीदवार से मुकाबला कर , रिकॉर्ड मतों से जीतते तो अवश्य कलगीदार साफा पहनते … अब चूंकि मैदान ही पूरा खाली है तो कितने भी चौके-छक्के मार लो, क्या फर्क पड़ता है..

इंदौर में असफल ऑपरेशन सूरत..भाजपाई भी भौंचक, लालवानी अलग नुकसान में..दागदार रहेंगी जीत

यहीं कारण है कि अधिकांश भाजपाई भी इस निर्णय पर भौंचक हैं , उनका मानना है कि जहां हज़ार फीसदी जीत तय थी वहां ऐसे सर्कस की क्या जरूरत थी… बजाय इसके अब तक के सबसे कमजोर कांग्रेस उम्मीदवार को बुरी तरह परास्त कर इंदौर भाजपा जीत का नया रिकॉर्ड बना सकती थी…भाजपाइयों के अलावा तमाम बुद्धिजीवियों , राजनीतिक चिंतकों, मीडिया सहित सामान्य मतदाता को भी ये बेतुका फैसला रास नहीं आया और इसे लोकतंत्र के नाम भद्दा मजाक अलग निरूपित किया गया… बम परिवार को अवश्य इससे फायदा हुआ है…

क्योंकि सालों पुराने मामले में पहले तो अक्षय बम के खिलाफ धारा 307 का प्रकरण दर्ज करवाया… फिर उनके खिलाफ़ कथित यौन उत्पीडऩ आरोप के अलावा छात्रवृत्ति और जमीनी विवाद के उछलने का खतरा था… इतना ही नहीं होप टैक्सटाइल मिल जमीन को लेकर बम परिवार का सरकार के साथ सालों से विवाद अलग चल रहा है… जो सम्भव है अब भविष्य में सुलटता दिखे… मगर भाजपा को इससे क्या लाभ हुआ, ये समझ से परे है और जनमानस में भी इसका कोई अच्छा संदेश नहीं गया …! @ राजेश ज्वेल