साल के आखरी और दिसंबर माह का पहला प्रदोष व्रत । प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती हैं। वही इस व्रत की ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी मनुष्य अपने सच्चे दिल से अपनी पूरी भक्ति भावना से ये प्रदोष व्रत करता है, भगवान शिव उस मनुष्य की सारी मनोकामना को पूर्ण करते हैं और वही भक्त के द्धारा पूर्ण भक्तिभाव से की गयी पूजा से प्रसन्न होकर उसके जीवन के समस्त दुखों का भी नाश करते हैं और उसके समस्त पापो को भी हर लेते हैं। आइए जानते हैं कि सोम प्रदोष व्रत की पूजन विधि और शुभ मुहूर्त
प्रदोष व्रत को त्रयोदशी व्रत भी कहा जाता है प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत भी कहते हैं। हिंदी पंचांग के द्धारा ये व्रत एक माह में दो बार आता है. इस बार सोम प्रदोष व्रत मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाएगा। इस बार सोम प्रदोष व्रत 05 दिसंंबर 2022 को रखा जाएगा। पुराणिक मान्यताओं के अनुसार ये व्रत अच्छी सेहत के लिए भी रखा जाता है. सोमवार के दिन प्रदोष व्रत रखने से मनुष्य की सारी मनोकामना पूरी होती है. इसलिए इसे सोम प्रदोष या चंद्र प्रदोष या चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। प्रदोष व्रत में भगवान् शिव जी और माता पार्वती की पूजा की जाती हैं।
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हिंदू पुराणिक मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत को सभी विशेष व्रतों में से एक बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि जो भी मनुष्य इस दिन सच्ची श्रद्धा भाव से उपवास रखता है। भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करता है, उसे समस्त परेशानियों और कष्टों से मुक्ति मिलती है सब पापों का नाश होता है और उन्हें मृत्यु के पश्चात मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. और प्राणी शिवधाम को प्राप्त करता हैं।
हिंदू पंचांग के द्धारा , इस बार सोम प्रदोष व्रत मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाएगा। सोम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त 05 दिसंबर 2022 को सुबह 05 बजकर 57 मिनट पर शुरू होगा और इसका समापन 06 दिसंबर 2022 को 06 बजकर 47 मिनट पर होगा।
व्रत वाले जातक को सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाना चाहिए, स्नान करने के पश्चात् पूजा के स्थान को साफ कर लेना चाहिए। इस दिन की पूजा में बेल पत्र, अक्षत, धूप, गंगा जल आदि अवश्य ही शामिल करना चाहिए। सब चीजों से भगवान शिव की पूजा करें। इस दिन निर्जला व्रत रखना चाहिए। इस तरह पूरे दिन व्रत करने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले यानी शाम के समय फिर से स्नान से निवृत होकर पूजा करें। पूजा वाली जगह को जल से शुद्ध करें। इसके बाद भगवान शिव के मंत्र ‘ऊं नमः शिवाय’ का जाप करते हुए भगवान शिव को जल चढ़ाएं पंचामृत से अभिषेक करे. और व्रत की पूजा करें ओर कथा भी सुने।