गुमास्ता नगर के हीरा थे (कमल)

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इंदौर : जब भी कोई शहर में गुमास्ता नगर का नाम लेता था, तो दो बातें सामने आती थी। एक तो लड्ढा परिवार और उसके मुखिया कमल लड्ढा का नाम सामने आता था। उसके बाद कमल लड्ढा का वह मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई देता था जो नाम के अनुरूप था। हमेशा कमल की तरह वे खिले रहते थे। लंबे समय से सक्रिय रूप से समाज सेवा करने के साथ ही भाजपा से भी जुड़े थे। गुणावद से इंदौर आया यह परिवार अपने कर्म के कारण से सबसे ज्यादा जाना जाता था। कमल लड्ढा के पिता प्रहलाददास लड्ढा ने क्लाथ मार्केट के गुमस्ताओं के लिए यह कॉलोनी काटी थी। उस जमाने में नाम मात्र के रेट पर लोगों को बुला बुलाकर प्लॉट दिए थे। आज यह कॉलोनी इस क्षेत्र की सबसे पॉश कॉलोनी कहलाती है। इस कॉलोनी में अस्पताल, मंदिर से लेकर बाग बगीचे तक है। कमल लड्ढा की भाजपा में सक्रिय राजनीति होने के कारण पहले उनकी भाभी लता लड्ढा को पार्षद का टिकट दिया, जिसमें वे चुनाव जीती। उसके बाद अभी दोबारा वहां से लड्ढा परिवार के ही कमल को टिकिट मिला। वो अपनी सक्रियता के कारण नगर निगम चुनाव में पूरे मध्यप्रदेश में सर्वाधिक वोट से जितने वाले पार्षद थे। कई बीमारियों से घिरने के बावजूद कभी अपनी परवाह नहीं करते थे। माहेश्वरी समाज का मामला हो, गुमास्ता नगर की समस्याओं की बात हो या किसी के भी सुख दुख की समस्या का मामला हो। कमल लड्ढा वहां पर हमेशा दिखाई देते थे।

मुझे याद है कोरोनाकाल के दौरान सबके मना करने के बावजूद वे नही माने और पहले दौर में ही उन्होंने गरीबों के लिए अपने सहयोगियों के साथ मिलकर भोजन के पैकेट बनवाना शुरू किए। गुमास्ता नगर मुकुट मांगलिक भवन कमल लड्ढा के कारण ही जाना जाता था। समाज में भी वे इतने ज्यादा सक्रिय थे कि वे अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा में भी थे, तो माहेश्वरी सहकारी पीढ़ी में भी वे थे। इंदौर की सबसे अच्छी क्लॉथ मार्केट कॉपरेटिव बैंक के संचालक भी रहे। वार्ड में गुमास्ता नगर के अलावा स्कीम नंबर 71 हो या सुदामा नगर। साफ सफाई की बात हो या सीवरेज लाइन की या सड़कों का मामला हो। कमल लड्ढा शिकायत मिलते ही वे तत्काल वहां पहुंच जाते थे। कई बार हमने उनको देखा है कि वो सफाई कर्मचारी को अपनी स्कूटर पर बैठाकर ही मौके पर ले जाते थे, कि यहां पर परेशानी है।

नर्मदा लाइन का मामला हो या सीरवेज लाइन की बात। पूरे इलाके को चमन करने में उनका बड़ा योगदान रहा। कुछ समय पहले वे बीमार हुए तो लगा कि हमेशा की तरह वे फिर ठीक हो जाएंगे। लेकिन लंबे समय तक इंदौर के बॉम्बे अस्पताल में और उसके बाद मुंबई में भी उनका इलाज चला। अब वह हमारे बीच में नहीं रहे। कमल लड्ढा ने अपनी विरासत को संभाल रखा था। भरा पूरा परिवार उनके साथ था। रोज रात को उनके घर पर महफिल सजती थी, जिसमें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बात होती थी। वो हमेशा अपने घर आने वालों को केसर की चाय बनवाकर पिलाते थे। सुबह हो, दोपहर हो या शाम। कोई सा भी समय हो उनके घर जो जाता था वो केसर की चाय पिए बिना वापस नहीं आता था। इंदौर में इस परिवार की अपनी अमीट छाप रही। कमल लड्ढा जब राजनीति में आए तो वहां भी उनकी ईमानदारी और सक्रियता की पहचान कायम रही।

असल में तो वे शिव भक्त भी थे। रोजाना पूजा पाठ करवाना, कई भंडारे का आयोजन उन्होंने किया। गुमास्ता नगर के हर रहवासी उनको अपने यहां का डायमंड यानी कि हीरा कहते थे। कमल लड्ढा के जाने से पूरा इलाका स्तब्ध है। भारतीय जनता पार्टी को भी ऐसे कार्यकर्ता बड़ी मुश्किल से मिल पाते है जो बरसों तक बिना पद के पार्टी का काम करते रहे। कमल लड्ढा के बारे में कहा जाता था कि किसी के यहां भी भोजन बनाने के जवाबदारी हो, तो कमल लड्ढा उस काम को ले लिया करते थे। गुमास्ता नगर के पूरे इलाके के रहवासियों में शोक की लहर छा गई। ऐसे कमल लड्ढा जैसे सक्रिय व ईमानदार नेता बहुत कम होते है। उनके श्री चरणों में विनम्र श्रद्धांजलि।

(राजेश राठौर)