Indore: विश्व एलर्जी संगठन के अध्यक्ष प्रोफेसर मोटोहिरो इबिसावा ने डॉ. झंवर को किया सम्मानित

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इंदौर। लम्बी चलने वाली जानलेवा बीमारियों में से छठा प्रमुख कारण एलर्जी है और यह खान – पान, सांस लेने यहाँ तक कि किसी अवांछित चीज़ के स्पर्श से भी हो सकती है। एलर्जी की प्रतिक्रिया खाँसी, छींकने, पित्ती, चकत्ते, खुजली वाली आँखें, बहती नाक और खराश वाले गले का कारण बन सकती है। गंभीर मामलों में, यह लो ब्लड प्रेशर, सांस लेने में तकलीफ, अस्थमा के दौरे और यहां तक कि अगर तुरंत इलाज न किया जाए तो मृत्यु का भी कारण बन सकती है।

यह कहना है वर्ल्ड एलर्जी कांग्रेस टर्की से लौटकर आये शहर के चेस्ट एवं एलर्जी रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद झंवर का. वे इस्तांबुल में 13-15 अक्टूबर को आयोजित हुई, विश्व की सबसे बड़ी एलर्जी कांफ्रेंस शामिल होने गए थे, जिसे विश्व एलर्जी संगठन द्वारा तुर्की सोसाइटी ऑफ एलर्जी एंड क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी के सहयोग से किया गया।

डॉ. झंवर ने बताया कि एलर्जी देश की सबसे आम, लेकिन अनदेखी, बीमारियों में से हैं। ऐसा माना जाता है कि एलर्जी का कोई इलाज नहीं है; सिर्फ रोकथाम और उपचार के साथ एलर्जी का प्रबंधन कर सकते हैं, परन्तु समय पर पहचान हो जाने पर आधुनिक पद्धतियों से इलाज भी संभव है।

कोविड महामारी के बाद यह पहली एलर्जी कांग्रेस रही जिसमें साईंटिफिक कार्यक्रम एलर्जी विज्ञान और क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी में विश्व विशेषज्ञों द्वारा बनाया गया है, इसे बनाने में जापान के प्रोफेसर मोटोहिरो इबिसावा और तुर्की के प्रोफेसर मुबेकेल अकदिस मुख्य तौर पर शामिल रहे।

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इस एलर्जी कांग्रेस में 52 देशों के 900 से अधिक विषय विशेषज्ञ इकट्ठे हुए, जिनमें भारत से 03 डॉक्टर्स थे. इसमें शहर के चेस्ट फिसीशियन एलर्जी विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद झंवर ने विभिन्न कार्यशालाओं और परिचर्चाओं में भाग लेते हुए फ़ूड एलर्जी, नासोब्रोंकल एनाफाईलेक्सिस, सब लिंगुअल थेरेपी पर अपने विचार रखे. कांफ्रेंस के दौरान विश्व एलर्जी संगठन के अध्यक्ष प्रोफेसर मोटोहिरो इबिसावा द्वारा डॉक्टर झंवर को सम्मानित भी किया गया।