नई दिल्ली। देश में सरकार के तीन कानून के खिलाफ चल रहे विरोध के चलते अब कांग्रेस भी किसानों के समर्थन में जुट गई है। इसी कड़ी में कांग्रेस ने कहा है कि नये कृषि कानूनों के विरोध में आठ दिसंबर को किसान संगठनों की ओर से आहूत भारत बंद का पार्टी समर्थन करेगी और उसके कार्यकर्ता इसे सफल बनाने के लिए काम करेंगे। वही, दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि, 8 दिसंबर को किसानों ने भारत बंद का आह्वान किया है। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सभी आप पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से भारत बंद का समर्थन करने का आह्वान किया है।
रविवार को संवाददाता सम्मेलन में कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि, किसानों के भारत बंद को सफल बनाने के लिए पार्टी के कार्यकर्ता देश भर में तहसील तहसील स्तर पर काम कर इस आयोजन को सफल बनाने के लिए किसानों के साथ खड़े रहेंगे। उन्होंने आगे कहा कि, कांग्रेस किसानों के साथ खड़ी है और उनके साथ होने वाले किसी भी अन्याय के खिलाफ सभी प्रदेशों के मुख्यालयों, जिला मुख्यालयों तथा तहसील मुख्यालयों पर किसानों के साथ प्रदर्शन करेंगे और भारत बंद को सफल बनाने के लिए पुरजोर प्रयास करेंगे।

पवन खेड़ा ने कहा कि, आंदोलनरत किसानों के साथ सरकार कई दौर की वार्ता कर रही है और दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वार्ता शुरू होने से दो दिन पहले वाराणसी में घोषणा कर रहे हैं कि किसान जिन कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, उन्हें वापस नहीं लिया जाएगा। प्रवक्ता ने कहा कि, प्रधानमंत्री की इस घोषणा से यह साफ हो जाता है कि सरकार के किसानों के साथ वार्ता के दरवाजे बंद है और वह उन्हें सिर्फ गुमराह करने का प्रयास कर रही है। उनका कहना था कि जब उनकी मांग पर विचार ही नहीं करना है तो फिर वार्ता का स्वांग क्यों किया जा रहा है।
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प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि, किसानों के साथ सरकार जिस तरह का बर्ताव कर रही है, उससे स्पष्ट है कि उनके लिए दिल्ली के सारे दरवाजे बंद कर दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन को लेकर दुनिया में तरह-तरह की बात की जा रही है और इससे देश की छवि खराब हो रही है इसलिए सरकार को जग हंसाई कराने की बजाय किसानों से तत्काल बातचीत कर उनकी बात माननी चाहिए।