गर्मी के मौसम में पानी की किल्लत से जूझते ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के लिए एक राहतभरी खबर सामने आई है। जिले में जल संकट से निपटने और बच्चों व महिलाओं को स्वच्छ जल की सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एक नई योजना की शुरुआत की गई है, जिसके तहत 500 आंगनबाड़ी केंद्रों पर वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम स्थापित किए जाएंगे।
इस महत्वाकांक्षी पहल के अंतर्गत प्रत्येक केंद्र पर लगभग ₹1.60 लाख की लागत से यह व्यवस्था तैयार की जाएगी। योजना का मूल उद्देश्य वर्षा जल का संरक्षण कर उसे भूजल पुनर्भरण और दैनिक उपयोग में लाना है।

बारिश के पानी से मिलेगा स्थायी समाधान
इस परियोजना के तहत छतरपुर जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों की छतों पर गिरने वाले वर्षा जल को पाइपलाइन और फिल्टरिंग सिस्टम के माध्यम से भूमिगत जलाशयों या टैंकों में एकत्रित किया जाएगा। संचित जल का उपयोग पेयजल, हाथ धोने, खाना पकाने और पौधों की सिंचाई जैसे कार्यों के लिए किया जाएगा। जिला कार्यक्रम अधिकारी राजीव सिंह के अनुसार, यह योजना एक वर्ष के भीतर पूर्ण कर ली जाएगी और विशेषकर उन इलाकों में बेहद कारगर साबित होगी, जहां गर्मियों में जल स्रोत पूरी तरह सूख जाते हैं।
पोषण वाटिकाओं से बच्चों को मिलेगा हरा और पोषणयुक्त आहार
इस योजना को जल संरक्षण के साथ पोषण सुरक्षा से भी जोड़ा गया है। हर आंगनबाड़ी केंद्र पर एक पोषण वाटिका विकसित की जाएगी, जिनमें हरी सब्जियां, औषधीय पौधे और स्थानीय जलवायु के अनुसार उपयोगी पौधे उगाए जाएंगे। ये वाटिकाएं बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने में सहायक होंगी। एक वाटिका पर करीब एक लाख रुपये की लागत आएगी और ग्राम पंचायत की निगरानी में इनका निर्माण व रखरखाव किया जाएगा।
पुरानी चूक से सबक, नई निगरानी प्रणाली
हालांकि पहले भी 75 सामुदायिक पोषण वाटिकाएं बनाई गई थीं, लेकिन रखरखाव की कमी के कारण वे उपेक्षित रह गईं। अब विभाग ने यह सुनिश्चित किया है कि हर नई वाटिका की नियमित निगरानी और प्रबंधन की व्यवस्था की जाएगी ताकि पिछली गलतियों की पुनरावृत्ति न हो। इसके लिए स्थानीय स्तर पर एक पारदर्शी और प्रभावी निगरानी तंत्र तैयार किया जा रहा है।
स्थानीय भागीदारी से बढ़ेगा आत्मनिर्भरता का भाव
इस पूरी परियोजना की सबसे खास बात यह है कि यह स्थानीय सहभागिता पर आधारित है। ग्राम पंचायतों को निर्माण कार्य की निगरानी और क्रियान्वयन की जिम्मेदारी दी गई है, जिससे स्थानीय समुदाय की भागीदारी और स्वामित्व की भावना को बल मिलेगा। इससे न केवल जल और पोषण सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ेगी, बल्कि ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनने का भी अवसर मिलेगा। साथ ही, परियोजना से जुड़ी एजेंसियों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि कार्य की गुणवत्ता और पारदर्शिता से कोई समझौता न हो।