इंदौर के जंगल से छेड़छाड़? निगम बनाएगा मानव निर्मित वन, रहवासी बोले – ‘प्रकृति को बर्बाद न करें’

इंदौर नगर निगम ने पोलोग्राउंड क्षेत्र में 36 एकड़ में फैले 'भारत वन' और एक तालाब के निर्माण की योजना बनाई है, जिसे शहर के हरित फेफड़ों के रूप में विकसित किया जाएगा। हालांकि, इस प्रस्ताव के विरोध में स्थानीय रहवासियों ने पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने की आशंका जताते हुए आपत्ति दर्ज कराई है।

Abhishek Singh
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इंदौर नगर निगम ने पोलोग्राउंड क्षेत्र में ‘भारत वन’ और एक बड़ा तालाब विकसित करने की योजना प्रस्तावित की है। महापौर पुष्यमित्र भार्गव के अनुसार, यह वन लगभग 36 एकड़ में फैला होगा और इसे शहर के बीचोंबीच एक हरित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाएगा, जो न केवल पर्यावरण को स्वच्छ बनाएगा बल्कि इंदौर के “फेफड़ों” की तरह कार्य करेगा। इस परियोजना के तहत पूरे क्षेत्र को हरियाली से आच्छादित किया जाएगा और कान्ह नदी के तट पर एक विशाल जलाशय भी बनाया जाएगा। हालांकि, महापौर द्वारा इस योजना की घोषणा और स्थल का निरीक्षण किए जाने के बाद स्थानीय रहवासियों ने इसका विरोध जताना शुरू कर दिया है।

प्रकृति के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं

पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. दिलीप वाघेला का कहना है कि यह संपूर्ण क्षेत्र स्थानीय पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके कारण आसपास का तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है और वायु की गुणवत्ता भी बेहतर बनी रहती है। ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। वहीं, अनुराग फड़के ने बताया कि आज कई कॉलोनियों के निवासी एकजुट होकर विरोध दर्ज कराने पहुंचे हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि इस क्षेत्र में किसी भी तरह की छेड़छाड़ स्वीकार्य नहीं होगी।

रहवासियों ने दिखाई एकजुटता

समर्थ मठ पंत वैद्य कॉलोनी में विभिन्न कॉलोनियों के निवासी एकत्रित हुए और निगम की प्रस्तावित योजना के खिलाफ सामूहिक रूप से विरोध दर्ज कराया। इस बैठक में जती कॉलोनी, रामबाग, नारायण बाग, तिलक पथ और आसपास के क्षेत्रों के रहवासियों ने भाग लिया और एक स्वर में इस परियोजना का कड़ा विरोध जताया।

नेहरू पार्क और कान्ह नदी का हश्र सामने, फिर क्यों दोहराएं गलती?

नगर निगम न तो रीजनल पार्क, मेघदूत गार्डन और नेहरू पार्क का समुचित रखरखाव कर पाया है, और न ही कान्ह नदी की सफाई में सफलता मिली है। ऐसे में 38 एकड़ क्षेत्र में फैली सघन हरियाली को हटाकर वहां नया पौधारोपण करने की योजना किस आधार पर उचित मानी जाए? इस क्षेत्र के निवासी स्वयं वर्षों से इस प्राकृतिक वन में वृक्षारोपण करते आ रहे हैं। पुराने, परिपक्व वृक्षों को उखाड़कर नए पौधे लगाना न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि इसका कोई पर्यावरणीय औचित्य भी नहीं है। वृक्ष पुनर्स्थापन की सफलता दर मात्र 5% के आसपास होती है, ऐसे में निगम का यह दावा भी अस्थिर और खोखला प्रतीत होता है। अशोक पाटणकर, नेताजी मोहिते, नितीन शुक्ल, अनिल मोढक, सुधीर दांडेकर, सुबोध काटे, वैशाली खरे, रवि आयंगर, शुभांगी काटे और स्वाती बोरगांवकर सहित कई अन्य नागरिकों ने अपने विचार रखते हुए इस योजना का तार्किक विरोध किया।