छांगुर बाबा केस में बड़ा खुलासा: प्रशासनिक अफसरों की संदिग्ध भूमिका, STF जांच में चौंकाने वाली सच्चाई

उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण में लिप्त रहे छांगुर बाबा उर्फ जलालुद्दीन के मामले ने नया मोड़ ले लिया है। रिपोर्ट के अनुसार, बलरामपुर जिले में तैनात एक एडीएम, दो सीओ और एक इंस्पेक्टर की भूमिका इस नेटवर्क में संदिग्ध पाई गई है।

Dileep Mishra
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उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण और देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहे छांगुर बाबा उर्फ जलालुद्दीन के मामले ने नया मोड़ ले लिया है। अब यूपी एसटीएफ की गोपनीय जांच में चौकाने वाले खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, बलरामपुर जिले में तैनात एक एडीएम, दो सीओ और एक इंस्पेक्टर की भूमिका इस नेटवर्क में संदिग्ध पाई गई है। आरोप है कि इन अधिकारियों ने न सिर्फ छांगुर को संरक्षण दिया, बल्कि कई मौकों पर उसकी गतिविधियों को नज़रअंदाज़ भी किया।

सत्ता के साये में धर्मांतरण?

जांच में सामने आया है कि वर्ष 2019 से 2024 के बीच ये अधिकारी बलरामपुर में तैनात थे। यही वह समय है जब छांगुर बाबा का नेटवर्क तेजी से फैल रहा था। आरोप है कि ये अफसर छांगुर बाबा के संकेत पर कार्रवाई करते थे। सरकारी जमीनों पर कब्जों में मदद कर रहे थे। उसकी गिरफ्तारी से बचाव के लिए दस्तावेजों में हेरफेर करवाते थे। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इन नामों का खुलासा छांगुर की चाल है या इनकी संलिप्तता सच में है। जांच एजेंसियां साक्ष्य एकत्र कर रही हैं और आरोप पुख्ता पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी।

धर्मांतरण नेटवर्क का मास्टरमाइंड छांगुर

UP ATS और STF की रिपोर्ट के अनुसार, छांगुर बाबा ने नेपाल सीमा से सटे 46 गांवों में गहरी पैठ बना ली थी। वह धार्मिक जलसों के ज़रिये युवाओं को प्रभावित करता और उनमें कट्टरता की भावना पैदा कर रहा था। खासकर उन युवाओं को निशाना बना रहा था जो आर्थिक रूप से कमजोर थे। धार्मिक रूप से भ्रमित थे। जिहादी मानसिकता के करीब थे। उन्हें आर्थिक सहायता, मोबाइल फोन, मोटरसाइकिल और नकदी के लालच देकर धर्मांतरण की ओर मोड़ा जा रहा था। रिपोर्ट्स के अनुसार, करीब 10 करोड़ रुपये की विदेशी फंडिंग इस नेटवर्क को चलाने के लिए जुटाई जा रही थी।

कहां से आया इतना पैसा?

छांगुर का सफर 2015 में पुरानी बाइक से अंगूठी-नग बेचने वाले व्यक्ति से शुरू हुआ। लेकिन 2020 के बाद उसकी आर्थिक स्थिति में असामान्य उछाल देखा गया। छांगुर के पास से लक्जरी कारें, शहर में फ्लैट, गांवों में संपत्तियां, लाखों की नगदी और लेनदेन मिली है। ATS की जांच में सामने आया कि पिछले चार वर्षों में उसकी संपत्ति हजारों गुना बढ़ी है। अब जांच एजेंसियां उसकी विदेशी फंडिंग के स्रोत और मनी ट्रेल को खंगाल रही हैं। साथ ही, 14 अन्य सहयोगियों की भी तलाश की जा रही है, जो इस नेटवर्क का हिस्सा बताए जाते हैं।

सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा

छांगुर बाबा ने तहसील कर्मियों और राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से कई बेशकीमती जमीनें अपने नाम करवाईं। इसमें उतरौला, चपरहिया, बनघुसरा, लालगंज जैसे इलाके प्रमुख हैं। एक करोड़ की तालाब वाली जमीन को उसने नीतू उर्फ नसरीन रोहरा को बेच भी दिया था। छांगुर की नजर खासकर उन जमीनों पर थी जो विवादित थीं, जिनके मालिक नहीं थे, सरकारी रजिस्टर में अस्पष्ट दर्ज थीं। ऐसी जमीनों पर वह कब्जा कर धर्मस्थल और जलसे आयोजित करता था, जिससे उसकी धार्मिक पहचान मजबूत हो और स्थानीय समर्थन मिले।

फंडिंग को लेकर बढ़ी दरार

छांगुर और उसकी करीबी नीतू उर्फ नसरीन के बीच फंडिंग के बंटवारे को लेकर टकराव हो गया था। इसके पीछे मुख्य कारण था। छांगुर ने अपने बेटे महबूब को फंडिंग का इंचार्ज बना दिया। नसरीन खुद फंड को नियंत्रित करना चाहती थी। विदेश से आए पैसे का हिसाब न मिलने पर दोनों के रिश्ते बिगड़े। इस बीच, महबूब की गिरफ्तारी के बाद छांगुर विदेश भागने की तैयारी कर रहा था। उसने कुछ स्थानीय लोगों के बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर किए थे, जिनकी जांच अब यूपी एटीएस कर रही है।

क्या होंगे अगले कदम?

फिलहाल जांच एजेंसियों ने एडीएम, सीओ और इंस्पेक्टर की भूमिका की विस्तृत छानबीन शुरू कर दी है।
तहसील और राजस्व रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं। छांगुर के सहयोगियों की मनी ट्रेल और कॉल डिटेल रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं। फंडिंग के विदेशी स्रोतों पर कड़ी निगरानी है। एनआईए भी इस केस में इंटेलिजेंस सहयोग दे रही है। छांगुर बाबा का मामला अब सिर्फ धर्मांतरण या स्थानीय नेटवर्क तक सीमित नहीं रहा। सिस्टम में मौजूद कुछ भ्रष्ट अफसरों की भूमिका सामने आना सरकारी ढांचे की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करता है। अगर छांगुर जैसे लोगों को प्रशासनिक संरक्षण मिलता रहा, तो देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए यह खतरे की घंटी है। STF और ATS की अगली रिपोर्ट इस केस को और गहराई तक ले जा सकती है, और कई चौंकाने वाले नाम सामने आ सकते हैं।