इंदौर। इंदौर संभागायुक्त दीपक सिंह ने आज एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए धार जिले के धरमपुरी तहसील के ग्राम पटलावद में स्थित श्रीराम मंदिर माण्डव की भूमि कब्जेदारों से मुक्त कराकर श्रीराम मंदिर माण्डव महंतमान संस्थान माण्डव के नाम अभिलेख में दर्ज करने के आदेश दिये है। उन्होंने अपने आदेश में कहा है कि प्रत्यर्थी का नाम कम किया जाकर प्रश्नाधीन भूमि ग्राम पटलावद सर्वे क्रमांक क्रमशः 43, 134 रकबा 2.491 व 1.379 हेक्टेयर कुल रकबा 3.870 हेक्टेयर पर पूर्ववत “श्रीराम मंदिर माण्डव महंतमान संस्थान माण्डव” का नाम अभिलेख में दर्ज किया जाये एवं मंदिर के हित में प्रश्नाधीन भूमि का तत्काल कब्जा दिलवाया जाये।
उल्लेखनीय है कि इस भूमि के संबंध में पिछले कई वर्षों से राजस्व न्यायालयों में मामला चल रहा था। अनुविभागीय अधिकारियों और तहसीलदारों ने अलग-अलग समय में अलग-अलग आदेश दिये। जिससे व्यथित होकर आवेदक ने संभागायुक्त न्यायालय में अपील दायर की थी। इस अपील पर आज संभागायुक्त श्री दीपक सिंह ने फैसला सुनाया।
ग्राम पटलावद में स्थित राम मंदिर माण्डव के स्वामित्व की कृषि भूमि सर्वे क्रमांक क्रमशः 43, 134 रकबा 2.491 व 1.379 हेक्टयर कुल रकबा 3.870 हेक्टेयर मंदिर के स्वामित्व की होकर प्रत्यर्थी के पिता राम पिता जगन्नाथ जो कि मूल निवासी इंदौर के थे, उन्होंने माण्डव महंत से सांठ-गांठ कर राम मंदिर की संपत्ति अपने नाम से नियम के विरूद्ध करवा ली, जबकि शासकीय रेकार्ड के अनुसार 1963-64 से 1968 तक राम मंदिर माण्डव के नाम थी, जिसे धोखाधडी और कपटपूर्वक राम पिता जगन्नाथ ने अपने नाम करवा ली। सर्वे क्रमांक 43 में से कुछ जमीन प्लाट के रूप में बेच दी गई तथा राम पिता जगन्नाथ स्वयं श्रीराम मंदिर ट्रस्ट संस्थान माण्डव का सचिव बन बैठा। संभागायुक्त श्री सिंह द्वारा उक्त प्रकरण में श्रीराम मंदिर की संपत्ति कब्जेदारों से मुक्त कराकर श्रीराम मंदिर ट्रस्ट संस्थान माण्डव के नाम से वापस दर्ज करने के आदेश दिये गये।
उल्लेखनीय है कि प्रश्नाधीन भूमि खसरा वर्ष 1958-59 के अनुसार “श्रीराम मंदिर माण्डव महंतमान संस्थान, माण्डव” के भूमि स्वामी स्वत्व पर दर्ज रही होकर श्रीराम मूर्ति की भूमि को “नाबालिग” की भूमि माना जाता है, “नाबालिग” की भूमि कभी भी हस्तांतरित नहीं होती है, हमेशा भूमि “श्रीराम मंदिर मूर्ति नाबालिग” के स्वामित्व पर रहती है। ट्रस्ट डीड पंजीयन दिनांक 11.12.1972 से किया गया है, उस मान से भी नायब तहसीलदार कब्जे के आधार पर प्रत्यर्थी को नामांतरण नहीं किया जा सकता था।