राहुल की घेराबंदी में सरकार, नेता भूले राजनीतिक शिष्टाचार

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नितिनमोहन शर्मा

वो तो आपके लिए ‘पप्पू’ है न। जिसे कुछ आता जाता नही। उसकी हर अदा तो आपके लिए हंसी ठिठोली ओर मिम्स का मजा है न? आप तो उसे अपना स्टार प्रचारक कहकर मजे लेते हो न? फिर इतना भय क्यो? आने देते न उसे सहजता से ओर उसी सहजता से जाने देते। जैसे आंध्रप्रदेश ने किया। जो तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र ने किया। इन राज्यों में भी गेर कांग्रेसी सरकारें थी। वहां की सरकारोँ ने इस नेशनल मूवमेंट के प्रति वो ही राजनीतिक सौजन्यता दिखाई, जो भारतीय लोकतंत्र की धरोहर है। राजनीतिक शिष्टाचार है।

फिर क्या कारण रहा कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत जोड़ो यात्रा के अध्यक्ष दिग्विजयसिंह को कल निगमायुक्त प्रतिभा पाल से मिलने जाने का अचानक निर्णय लेना पड़ा? क्यो उन्हें कहना पड़ा कि हम भी सत्ता में रहे लेकिन हमने कभी भी ऐसी ओछी हरकत प्रतिपक्ष के किसी आयोजन को लेकर कभी नही की। यात्रा के ठीक पहले तक होर्डिंग्स पोस्टर बेनर उतारने वाली गैंग क्यो घूम रही थी? क्या इस शहर में अब कभी ऐसे पोस्टर बेनर होर्डिंग्स नही लगने दिए जाएंगे? 10-12 घण्टे का ही तो काम था न? क्या आजकल में ही प्रवासी भारतीय सम्मेलन होने जा रहा था?

यात्रा मार्ग के चौराहों पर लगे हाईमास्ट लाइटिंग तय समय पर क्यो रोशन नही हुए। अंबडेकर जन्मस्थली पर बिजली गुल। यात्रा ओर यात्रियों को देवी अहिल्या की नगरी में ठहरने, विश्राम के स्थान से बार बार बेदखल क्यो होना पड़ा? वैष्णव कालेज के पड़ाव को अंडे मांस मछली का हवाला देकर रोकने वाले कौन थे? चिमनबाग मैदान के सामने के डिवाइडर भी तब ही तोड़ना थे, जब यात्रा का रात्रि विश्राम यहां तय हो गया? राजबाड़ा पर सभा का मंच वहां दिया गया, जहा आज तक कभी कोई सभा नही हुई। सिवाय डोल ग्यारस ओर गोगा नवमी के मंच के वहा कभी मंच भी नही लगता।

यात्रा मार्ग तक पहुंचने वाले रास्तों पर वक्त से कई घण्टे पहले ट्रेफ़िक रोकने से क्या हासिल हुआ? जनता राहुल की यात्रा को कोसे? पर वो तो गाड़ी एक तरफ लगाकर यात्रा के साथ हो ली। अब क्या? पप्पू है न वो? तो फिर शिवराज सिंह से लेकर ऋषि खनूजा तक क्यो सक्रिय रहे। वीडी शर्मा से लेकर राजेश सोनकर तक मैदान में क्यो उतर आए? जयराम नरेश वीडियो को दोपहर में फर्जी बताते हुए कानूनी कार्रवाई का ट्वीट तक कर देते है।

फिर भी इसी मूददे पर प्रदेश अध्यक्ष शर्मा जोरशोर से प्रेस कांफ्रेंस करते है? जैसे बहुत बड़ा मुद्दा मिल गया। वह भी उसी दिन शाम को जिस दिन ट्वीट हुआ। सुमीत मिश्रा से लेकर गोविंद मालू तक सवालों की फेहरिस्त लेकर मैदान में क्यो उतर गए? मंत्री उषा ठाकुर राहुल को तिरंगा देने क्यो जाना चाहती थी? भोपाल से इंदौर तक बयानों की झड़ी लगा दी गई। जैसे एक होड़ सी मची थी राहुल और यात्रा विरोध की जिसमे कोई पीछे नही रहना चाहता।

गुजर जाने देते ने यात्रा को वैसे ही जैसे वो दुसरो राज्य से निकलकर आपके आँगन तक आई थी। आप तो पीछे ही पड़ गए। प्रदेश के प्रवक्ताओं ने भी अपनी ‘बौद्धिकता’ उस व्यक्ति पर क्यो खर्च कर दी, जो आपके मुताबिक आपके ‘ मेंटल लेवल’ का नही है तो? सावरकर का साहित्य राहुल को देने की जिद क्यो की गई? आपने तो चाणक्य की उक्ति भूल गए कि विरोधी को आंख से दूर ओर दिमाग से दूर रखना पहली जीत है। आपने तो इतना शोर मचा दिया कि जिन्हें नही पता था वो भी जान गए कि राहुल गांधी आ रहे है। आपने तो यात्रा का मुफ्त प्रचार कर दिया। यात्रा को लेकर कांग्रेसियों से ज्यादा तो जनाब आपके बयान छप ओर गूंज रहे थे कि ये नही करने देंगे, वो नही करने देंगे।

खेर.. कुछ देर में यात्रा सांवेर तक पहुंच जाएगी लेकिन आपके शहर और प्रदेश से क्या सन्देश लेकर गई ये यात्रा? ओर यात्रा के साथ चल रहे देशभर के यात्री? वक्त मिले सत्ताधीशों तो इस पर विचार करना जरूर कि आपकी इस सब एक्सरसाइज से आपको लाभ मिला या नुकसान? इंदौर आप भी विचार करना…आप तो मेहमाननवाजी वाला शहर हो न…??

सोशल मीडिया से ठीक उलट छवि

सोशल मीडिया से ठीक उलट छवि के साथ कल सबने राहुल के दीदार किये। पप्पू की छवि देखने गए लोगो को भी उस वक्त निराशा हाथ लगी जब उन्होंने राहुल को एंग्री यंग मेन की भूमिका में देखा। चुस्त दुरुस्त ओर तन्दरुस्त राहुल का फुर्तीला अंदाज देखते ही बन रहा था। वर्कआउट से फिट की गई बॉडी ओर उसकी लेंग्वेज सोशल मीडिया पर गड़ी छवि से ठीक उलट थी। लोग एल झलक के लिए साथ साथ दौड़ लगा रहे थे।

राहुल की चाल ऐसी की दौड़ना पड़ा

राहुल की चाल ऐसी की साथ वालो को चलना नही दौड़ना पड़ रहा था। कहँने को पदयात्रा है ये लेकिन राहुल की कदमताल का मुकाबला साथ चलने वाले नही कर पा रहे है। वे सरपट चल रहे है। साथ चलने वाले दौड़ लगाते रहते है। इसमें सुरक्षाकर्मी भी शामिल है।

टाइम मैनेजमेंट गजब का, महज 10 मिनीट देर हुई

राहुल की यात्रा का टाइम मैनेजमेंट गजब का है। इसके सूत्रधार भी स्वयम राहुल ही है। महू से भी वे तय समय पर रवाना हुए और वक्त से पहले राउ पहुंचे। राउ के पहले पड़ाव स्थल पर भी आधा घण्टा पहले पहुंचे। जब राजेंद्रनगर आए, तब माणिकबाग तरफ़ लगा कि अभी देर होगी लेकिन राहुल झटपट चलते चोइथराम मंडी चोराहे पहुंच गए। उनकी गति ऐसी थी कि पलभर में ही वे गुलज़ार कालोनी पहुंच गए। राजबाड़ा आने का वक्त 6 30 था। वे 6 39 पर राजबाड़ा आ गए। महज 9 मिनिट विलम्ब। वो भी हजारों की भीड़ की बावजूद।

सरल-सौम्य-सहज छवि ने मोहा

देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने से जुड़े होने के बाद भी जब राहुल को सड़क पर कदमताल देखी तो लगा ही नही ये गांधी परिवार के वो वारिस है जिनके बारे में विदेश यात्राओं के किस्से प्रचारित होते है। राहुल सहजता से सबसे मिल रहे थे। जब वे राजबाड़ा पहुंचे तो वे भीड़ के बीच से ही मंच तक गए जबकि वे झेड श्रेणी कैटेगरी में आते है। वे मंच पर भी ऐसे चढ़े, जैसे कोई आम आदमी चढ़ता है। मंचासीन होने के बाद भी वे मंच पर किसी के लिए भारी साबित नही हुए और ऐसे घुलमिल गए जैसे इंदौरी हो।