यूपी में 1 अप्रैल 2005 से नई पेंशन योजना लागू हुई। इसमें शिक्षक और कर्मचारी के वेतन से ₹10 फीसदी की कटौती की जाती है और 10 फीसदी ही राज्यांश होता है। लेकिन वर्तमान की बात करे तो अब राज्यांश से 10 से बढ़ाकर 14% कर दिया है। वही जो धनराशि जमा होती है, उसे पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण के माध्यम से 33 फीसदी एलआईसी और 33 फीसदी एसबीआई एवं 33 यूटीआई में लगाया जाता है। पेंशन के लिए जो खाता खोला जाता है उसे परमानेंट अकाउंट नंबर कहते हैं।
वर्तमान में शिक्षक के अंश की धनराशि परिवार को लौटाई जाएगी और पुरानी पेंशन परिवार को दी जाएगी। शिक्षक और कर्मचारियों की यदि सेवाकाल में मृत्यु हो जाती हैं तो इस मामले में एनपीएस के नियम अलग हैं। लेकिन पूर्व नियमों के तहत जो भी धनराशि एनपीएस में काटी गई है उसे परिवार को सरेंडर करना होता हैं। इसके बाद परिवार को पुरानी पेंशन के दायरे में लाया जाता है।
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लेकिन अगर रिटायरमेंट के बाद शिक्षक और कर्मचारी की कुल जमा धनराशि 5 लाख है तो वह पूरी धनराशि वापस ले सकता हैं और पेंशन बनवाने से मना कर सकता है। यदि यह धनराशि अधिक है तो कुल जमा का 60 फीसदी ही वापस मिलता है और 40 फीसदी के बांड शिक्षक को खरीदने होते है। शिuक्षक को यह भी बताना होता है कि उसे कितने समय तक पेंशन चाहिए। इस आधार पर ही धनराशि निर्धारित की जाती हैं। विभाग के स्तर से कोई कमी नहीं हैं। राज्यांश का प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है लेकिन खातों में धनराशि तब ही दिखेगी जब राज्यांश मिल जाएगा।
न्यू पेंशन स्कीम जब से लागू हुई है तबसे पेंशनरों पर बड़ी समस्या आ गई है। कई शिक्षक रिटायर हुए और उनकी भी पेंशन नहीं बन पाई है। ऐसे में कई दिवंगत शिक्षकों के परिवार को भी लाभ नहीं मिला है। वर्ष 2005 से 2016 तक के राज्यांश के लिए 50 करोड़ का प्रस्ताव भी नहीं भेजा गया। वहीं वर्ष 2016 के बाद से 2020 तक केवल 40 फीसदी शिक्षकों के खातों में धनराशि पहुंच पाई है। लेकिन 2020 से अब तक किसी शिक्षक के खाते में फिंडिंग नहीं हो पाई।