इतराते शब्दों और इठलाते रंगों की जुगलबंदी

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कीर्ति राणा 

ऐसा बहुत कम होता है जब पत्रकार, कवि के साथ चित्रकार भी उतना ही बेहतर हो। रवींद्र व्यास इन सारे पैमानों पर खरे साबित हुए हैं, विश्वास ना हो तो एक बार आप भी उनकी नुमाइश ‘शब्द चित्र’ को देख लीजिए।कवि जब लिखता है तो शब्द कतारबद्ध प्रतीक्षा करते हैं कि कलम उनका चयन कर ले, इसीलिये जिस कविता में शब्द समाहित हो जाते हैं तो उनका इठलाना स्वाभाविक है।वही कवि यदि चित्रकार भी हो तो रंगों के इंद्रधनुष भी इंतजार करते हैं उसके केनवास पर खिलने का-उनके चित्रों में खास तौर पर हरा रंग अन्य रंगों के साथ इठलाता नजर आता है।

कवि-कलाकार के विषय में तय माना जाता है कि वह आम इंसान की ही तरह प्रकृति से भी उतना ही प्रेम करता है। प्रकृति को एक शब्द में देखना हो तो हरा रंग पर्याप्त है।’शब्द चित्र’ में तेल चित्र, एक्रेलिक, और वाटर कलर में बनाए 25 से अधिक चित्रों में पेड़ झरने, पहाड़ को देखते हुए यह हरापन सम्मोहित करता है।

चौथा संसार से पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले रवींद्र व्यास साहित्य-संस्कृति की खबरें देखते, कहानियों का रेखांकन करते हुए देवलालीकर कलावीथिका में डीजे जोशी, बेंद्रे, देवलालीकर जैसे महान कलाकारों से प्रभावित हुए और रामजी वर्मा, प्रभु जोशी, ईश्वरी रावल की संगति में रंगों की भाषा समझने और प्रिय कवि चंद्रकांत देवताले को पढ़ते-बतियाते अपने मन की भावनाओं को शब्द और चित्रों में व्यक्त करने लग गए।

यह पहला अवसर है जब उनके चित्रों की यह एकल प्रदर्शनी लगी है। इससे पहले सामूहिक प्रदर्शनी में देवलालीकर कला वीथिका, दुआ सभागृह, मालवा उत्सव, सयाजी क्लब में उनके चित्र प्रदर्शित हो चुके हैं।हार्ट एंड आर्ट (प्रदीप कनिक) संस्था और आर्ट क्यूरेटर भाविका बदलानी ने सयाजी क्लब में जो समूह चित्र प्रदर्शनी 2008 में आयोजित की थी, तब उनकी 5-6 पेंटिंग पहले दिन ही बिक गई थी।इंदौर से पहले अहमदाबाद, जयपुर, भोपाल और खजुराहो में होने वाले इंटरनेशल फेस्टिवल में उनके चित्र प्रदर्शित हो चुके हैं। अमेरिका, रूस और इटली के तीन इंटरनेशनल आर्ट अवार्ड भी उनके नाम हैं, उनसे पहले इंदौर के ही (स्व) प्रभु जोशी को ये अवार्ड मिल चुके हैं। एबी रोड पर सी-21 मॉल के सामने प्रिसेंस बिजनेस स्कॉय पार्क की आर्ट पेसेज गैलरी में मर्म कला अनुष्ठान द्वारा आयोजित इस नुमाइश में 31 मई तक सुबह 10 से रात 8 बजे तक उनके कला कर्म को देखा जा सकता है।

हरियाली के जंगल से गुजरते वक्त बरबस रोक लेती हैं कविताएं –

इस हरियाली के बीच से गुजरते हुए जब उनकी कविताओं पर नजर पड़ती है तो बरबस कदम ठिठक जाते हैं।नवजात की पगथलियां, पेड़, एक दिन मां बिना कुछ कहे चली गई कविता हो या नवजात की साईकिल को पढ़ते हुए उनके चित्रों-कविता में साम्य नजर आता है। अपनी इस कविता में वह लिखते हैं
अपने दूध की दोनों कटोरिया लिए
नवजात पर वह ऐसे झुकती है
कि वह पैडल मारने लगता है
दिन का चंद्रमा भी प्रकट होकर
कामना करता है
उसके दूध की कटोरियां कभी ना सूखे
उधर, गोद की पृथ्वी पर
नवजात पैडल मारता
चलाता रहता है अपनी साइकिल।

चित्रों में हरा रंग ही प्रधान क्यों….

इस सवाल के जवाब में रवींद्र कहते हैं बारिश मेरे लिए शरण स्थली है…बारिश के बाद हरे रंग में पनाह लेता हूं…मेरे चित्र बारिश के रहस्य हैं, बारिश के बाद फैले हरे रंग में। जहां जाकर में अपने दुख, तनाव अवसाद भूल जाता हूं। 2002 में पिता (स्व सखाराम व्यास) बीमार पड़ गए, मैं अपने चित्र जब उन्हें दिखाता तो उनकी आंखों की चमक देख कर लगता था यह रंग पिता को सुकून पहुंचा रहे हैं। 500 से ज्यादा चित्र हरे रंग में बना डाले।

प्रदर्शनी के औपचारिक उदघाटन में रवींद्र व्यास को पुष्प भेंट करते हुए इतिहासकार राजेंद्र सिंह और (अंकित एड एजेसी के) राजेश शर्मा पप्पू।बाकी चित्रों में अवलोकन करते कला प्रेमी।