
बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में दोषी को छह महीने से भी कम समय में सजा हो जाए, यह किसी ने सपने में भी न सोचा होगा। लेकिन यह सपना नहीं, हकीकत है। हरियाणा में नए आपराधिक कानूनों की बदौलत एक नाबालिग के बलात्कार के मामले में सिर्फ 140 दिनों के भीतर दोषी को मौत की सजा सुनाई गई है।
इसके अलावा, कई अन्य आपराधिक मुकदमे भी 20 दिनों से कम समय में पूरे हुए हैं। उच्च प्राथमिकता वाले चिन्हित अपराध के मामलों में, कई जिलों में सजा दर 95 फीसदी से ज्यादा हो गई है। इसके अलावा, चिन्हित अपराध पहल के जरिए, 1,683 जघन्य मामलों को सख्ती से फास्ट-ट्रैक किया गया है और उच्चतम स्तर पर निगरानी की गई है। यह सब हरियाणा की त्वरित, कुशल और पारदर्शी न्याय दिलाने की क्षमता का जीता जागता सबूत है।

दिल्ली सरकार द्वारा भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित तीन नए आपराधिक कानूनों पर एक प्रदर्शनी में हरियाणा की अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह विभाग, डॉ. सुमिता मिश्रा ने भाग लिया। इसके पश्चात मीडियाकर्मियों से बातचीत करते हुए, गृह विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा ने बताया कि आधुनिक प्रौद्योगिकी, उन्नत फोरेंसिक बुनियादी ढांचे और नए आपराधिक कानूनों के तहत गहन प्रशिक्षण की बदौलत, हरियाणा ने केवल राष्ट्रीय मानक स्थापित किए हैं बल्कि देश की न्याय सुधार मुहिम में भी अग्रणी बनकर उभरा है। समग्र और प्रौद्योगिकी-संचालित प्रदेश के इस मॉडल की बड़े पैमाने पर सराहना हुई है।
उन्होंने कहा कि विशाल क्षमता निर्माण पहल हरियाणा के सुधारों की रीढ़ है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) के सूक्ष्म प्रावधानों में 54,000 से अधिक पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया है। इस प्रशिक्षण के दौरान न केवल कानूनी समझ बल्कि पीड़ित-संवेदी जांच, डिजिटल एकीकरण और आधुनिक साक्ष्य प्रबंधन पर भी बल दिया गया। राज्य पुलिस बलों के बीच कानूनी शिक्षा को बढ़ावा देने के मकसद से, 37,889 अधिकारियों को आईजीओटी कर्मयोगी प्लेटफॉर्म पर डाला गया है।
डॉ. मिश्रा ने बताया कि ई-समन और ई-साक्ष्य जैसे प्लेटफार्मों के सफल कार्यान्वयन के बल पर हरियाणा ने डिजिटल पुलिसिंग में लंबी छलांग लगाई है। अब 91.37 फीसदी से अधिक समन इलेक्ट्रॉनिक रूप से जारी किए जाते हैं, जबकि शत-प्रतिशत तलाशी और जब्ती डिजिटल तरीके से दर्ज की जाती हैं। उल्लेखनीय है कि 67.5 प्रतिशत गवाहों और शिकायतकर्ताओं के बयान ई-साक्ष्य मोबाइल एप्लीकेशन के जरिए दर्ज किए जा रहे हैं। इससे न केवल साक्ष्य संग्रह का मानकीकरण हो रहा है बल्कि जांच में पारदर्शिता भी बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि गुरुग्राम, फरीदाबाद और पंचकूला में पॉक्सो अधिनियम के तहत फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों के मार्फत राज्य के लिंग-संवेदी न्याय के दृष्टिकोण को मजबूती मिली है। इससे महिलाओं और बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराधों में तेजी से सुनवाई सुनिश्चित हो रही है।
गृह विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. मिश्रा ने बताया कि नए आपराधिक कानूनों के तहत, गवाहों की जांच अब पारंपरिक अदालतों से आगे बढ़ चुकी है। गवाहों की जांच अब ‘निर्दिष्ट स्थानों’ पर की जा सकती है। इन ‘निर्दिष्ट स्थानों’ में सरकारी कार्यालय, बैंक और सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाने वाले अन्य स्थान शामिल हैं। प्रदेश के सभी जिलों में ऑडियो/वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से गवाहों की जांच के लिए 2,117 ‘निर्दिष्ट स्थान’ बनाए गए हैं, जिससे पहुंच और सुविधा में काफी वृद्धि हुई है। इसके अलावा, सभी जिलों में महिलाओं/कमजोर गवाहों के लिए विशेष रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग रूम/सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
राज्य ने अपने फोरेंसिक बुनियादी ढांचे का भी विस्तार किया है। हर जिले में मोबाइल फोरेंसिक वैन और बड़े जिलों में दो वैन तैनात की गई हैं। इसके अलावा, 68.70 करोड़ रुपये की लागत से आधुनिक साइबर फोरेंसिक उपकरण खरीदे गए हैं। राज्य सरकार ने 208 नई फोरेंसिक पदों को मंजूरी दी है। इसमें 186 पद भरे जा चुके हैं, जिससे सघन जांच को और मजबूती मिली है।
वर्कफ्लो में ट्रैकिया और ‘डमकस्म्ंच्त्‘ (मेडिकल लीगल एग्जामिनेशन एंड पोस्ट मॉर्टम रिपोर्टिंग) जैसे प्लेटफॉर्म का सहज एकीकरण किया गया है। इसके माध्यम से पोस्टमार्टम और मेडिकल जाँच रिपोर्ट अब सात दिनों के भीतर डिजिटल रूप से दर्ज की जाती हैं, जिससे चार्जशीट दाखिल करने और केस के फैसले में तेजी आई है। क्राइम-ट्रैकिंग सिस्टम को मजबूत करने के लिए, हरियाणा नेशनल ऑटोमेटेड फिंगरप्रिंट आइडेंटिफिकेशन सिस्टम (नफीस) और चित्रखोजी जैसे बायोमीट्रिक और डिजिटल पहचान उपकरणों का भी बखूबी लाभ उठा रहा है।
डॉ. सुमिता मिश्रा ने बताया कि करनाल में ‘न्याय श्रुति’ पायलट प्रोजेक्ट के माध्यम से न्यायिक पहुँच को आधुनिक बनाया गया है। वहाँ पर पाँच जिला न्यायालय अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग क्यूबिकल से सुसज्जित हैं। अब 50 फीसदी से अधिक पुलिसकर्मी और 70 फीसदी आरोपी न्यायिक कार्यवाही में वर्चुअली भाग ले रहे हैं। इससे आरोपियों को न्यायालय लाने-ले जाने से जुड़ी चुनौतियों में काफी हद तक कमी आई है। साथ ही, समय और सार्वजनिक संसाधनों की भी बचत हुई है।