एक मित्र सायकिल की दुकान पर मिल गए। बाहर उनकी चमचमाती कार खड़ी थी। मैंने पूछा-यहां कैसे? वो बोले- डाक्टर ने कहा सायकिल से चला करिए सो सायकिल से बचपन शुरू हुआ और अब बुढापा भी। दूकान वाले ने दार्शनिक अंदाज में कहा- क्या करियेगा ये जिंदगी भी रिसाइकिल है। आदमी घूम फिरके वहीं आता है। जैसे उडि जहाज के पंछी पुनि जहाज में आवे।
मुझे उस साधूबाबा की कहानी याद आ गई जिसने चूहे को शेर बनाया और फिर चूहा। आदमी भी अत्ति करेगा तो भगवान उसे फिर बंदर बना देगा। पुरानी कहानियां गहरा अर्थ लिए रहती हैं। सच पूछिये तो वे अपने लिए ही होती हैं। आदमी पैदल चलते चलते थक गया। भगवान से कहा- प्रभू कुछ ऐसा इंतजाम करिए कि चलना न पड़े। भगवान ने सायकिल दे दी। पायडल मारते-मारते कुछ दिन बाद सायकिल से भी आजिज आ गया। फिर भगवान से फरियाद करते हुए कहा- कुछ ऐसा क्यों नहीं करते कि पायडल भी न मारना पडे़।
दीनदयाला प्रभु ने सायकिल में मोटर साज दिया,अब तो खुश..। कुछ दिन बाद आदमी मोटरसायकल के फर्राटे से भी तंग आ गया। प्रभु से बोला -ये भी कोई इंतजाम हुआ। बरसात में भीग जाता हूँ, गर्मी में धूप लगती है। हवा से जूझना पड़ता है। कृपालु प्रभु ने उसे मोटरकार, फिर हवाई जहाज, फिर राकेट जेट, एक,एक करके सब दे दिया। आदमी अपने में मस्त हो गया। इस बीच प्रभु भी भूल गए। पर प्रभु तो प्रभु, नेकी कर दरिया में डाल। लंबे अरसे बाद आदमी फिर से उन्हें ढूंढते हुए पहुंचा।
भगवान बोले- अब क्या हुआ? आदमी ने कहा- प्रभू ये पूछिए कि क्या नहीं हुआ। पाँव जकड़ गए, गठिया हो गया। दिल कभी तेज, कभी धीरे धड़कता है। शूगर की बीमारी हो गई। सांस फूलने लगती है। क्या क्या बताएं…? आपइ कुछ कर सकते हैं।
भगवान बोले पैदल चला कर। पैदा होकर जमीन में आया है न जमीन में ही रह, ज्यादा न उड़।
पैदल से रकेट तक पहुंचा आदमी फिर पैदल आ गया। ऐश्वर्य का बोझ भी एक हद के बाद असहनीय हो जाता है। भगवान ने मनुष्य को अगं-प्रत्यंगों के साथ इसीलिए भेजा कि वह सबसे बराबर काम लिया करे। जिस अंग का कोई काम नहीं उसे वह धीरे धीरे छीन लेता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि पहले आदमी के बंदरों जैसी पूंछ हुआ करती थी। जब वह किसी काम की नहीं बची तो उसे छीन लिया। अब जिस भी अंग से आप काम नहीं लेंगे वह छिन जाएगा।
वैज्ञानिक कहते हैं कि आदमी के पास सिर्फ़ सिर होगा। हाथ पांव छोटे होंगे, फिर लुप्त हो जाएंगे। सिर के भीतर उसका खुराफाती दिमाग सुरक्षित रहेगा। सिर्फ़ उसका दिमाग चलेगा। एलियंस मनुष्य के रूप की भावी छवि हैं। आदमी को आदमी बने रहना है या फिर उसे भविष्य में एलियन में बदलना है। प्रकृति और विज्ञान के बीच यही बड़ा द्वंद्व है। यह आदमी पर निर्भर करता है कि वह किसे चुने।
पर यह सुनिश्चित है कि वह प्रकृति को छोड़ेगा तो प्रकृति उसे नहीं छोड़ेगी। प्रकृति का घोडा़पछाड़ दांव विज्ञान को कब पटखनी दे दे न किसी ज्योतिषी का लेखा बता सकता है न ही किसी वैज्ञानिक की गणना। ऊंची अट्टालिकाएं तान ली। पैंटहाउस में ऐश ही कर रहे थे कि धरती काँपी और सेकडों में सब कुछ ध्वस्त। तूफान आया ऐश के सामान तिनके के माफिक उड़ गए। बाढ़ आई सब सिराजा बिखरकर सैलाब में बह गया।
प्रलय कभी एक साथ नहीं आता। वह किश्तों में स्थान-समय और लक्ष्य चुनकर आता है। सबको अपने-अपने अपने हिस्से का प्रलय भोगना पड़ता है। सृष्टि और प्रलय है क्या..? जन्मते ही मनुष्य ने पलकें खोली यह उसके हिस्से की सृष्टि है..और पलक मुँदी, श्मशान पहुँचा यह उसके हिस्से का प्रलय। प्रलय मतलब प्रकृति में लय हो जाना.।
सो यह सोचना कि सब के साथ एक सा होना है तो फिर मैं ही क्यों करू, यह आदमी का सबसे बड़ा मुगालता है। जो दुनिया का सबसे बड़ा ध्रुव सत्य है, आदमी मौत के कुछ पल पहले तक मौत को मिथ्या मानता।
हम प्रकृति से हैं, उसी ने हमें गढा है इसलिए मिट्टी में मिला देने का सास्वत् अधिकार भी उसी का है।
प्रकृति है क्या ..यही तो ईश्वर की माया है। ईश्वर की पलक के खुलने और मुंदने में लय और प्रलय है। इसीलिये जिसे वह राकेट तक पहुंचाता है उसे ही लाकर जमीन में पटक देता है। भक्त कवियों ने एक स्वर से कहा..सबहिं नचावत राम गुंसाई। और इतना सब लिखने के बाद अपन तो यही कहेंगें कि..समझने वाले समझ गए और जो ना समझे वो अनाडी़ है।
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